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________________ १६६ था | व्याख्यान के समय उनका हृदयकमल विकसित होकर वह ते ओ मय सूर्य की किरणों की तरह आर के उपदेश रूपी ज्ञान के प्रकाश को सर्वात्मभाव से ग्रहण कर अधिकाधिक आनन्द का अनुभव करता था । श्रोतागण आप के अमृतोपम उपदेश को सुनने के लिए भ्रमर की तरह सदैव लालायित रहते थे । किं बहुना, आपके विराजने से जैन धर्म की प्रभावना खूब बढी धर्मध्यान और तपश्चर्या आदि विपुलमात्रा में हुए । इस प्रकार आपका यह प्रथम स्वतंत्र चामुर्मास अत्यन्त सफलता पूर्वक एवं सुशशान्ति पूर्वक व्यतीत हुआ चिंचवड का चातुर्मास सानन्द पूर्ण करके आपश्री ने सातारा की ओर विहार कर दिया। वहाँ से चारोली को पावन कर आपभी का पूनों में आगमन हुआ। यहां कुछ दिन स्थिरता कर पूना से सातारा की ओर विहार हुआ। कात्रज सिंघावाडी, कामथडी किकवी म्हावी आदि क्षेत्रों में धर्म प्रचार करते हुए आप सतारा पधारे । सतारा क्षेत्र में चरितनायकजी का यह प्रथम ही पधारना हुआ। आपभी के शुभागमन के पूर्व ही सारे दक्षिण प्रान्त में आप की कीर्ति व्याप्त हो चुकी थी। जहां कहीं भी आपश्री का शुभागमन होता लोग अपने आप को कृतार्थ समझते थे अनेक जन्मों के पुण्य से ऐसे त्यागी सन्तों का सहवास का सुअवसर जीवन में यह प्रथम बार हुआ था इसलिए आपके व्याख्यान के समय प्रत्येक व्यक्ति रुचि पूर्वक लाभ लेता था । प्रतिदिन व्याख्यान के समय बोधामृत पान करने से वहाँ के श्रावक श्राविकाओं की धार्मिक भावना में विशेष वृद्धि हुई । वि०सं. १९७७ का १९ वाँ चातुर्मास सातारा में आपके प्रवचन सुनते सुनते वहां के मुख्य श्रावकों के हृदय में यह भावना जागृत हुई की ऐसे त्यागी वैरागी और ज्ञानी संत के पास कुछ शास्त्राभ्यास करना चाहिए और ज्ञान की वृद्धि करनी चाहिए । यह सोच कर श्रावकगण हमारे चरितनायकजी की सेवा में उपस्थित हो इस वर्ष का चातुर्मास सातारा में ही व्यतीत करने की प्रार्थना की आवकों का अत्यन्त आग्रह देख मुनिश्री ने स्वीकृति फरमा दी, । चातुर्मास की स्वीकृति से नगर निवासियों के हर्ष की सीमा न रही। उन्होंने सोचा अब ऐसे महापुरुषों का चातुर्मास हमको जितनी लम्बी अवधि तक समागम में रहनेवाले है, इससे बढकर हमारे लिए और क्या सुवर्णावसर हो सकता है ? आसपास के क्षेत्रों को पावन कर चरितनायकजी चातुर्मासार्थ सातारा पधार गये । महाराज श्री का आगमन सुन कर सारे नगर का श्री संघ आपके स्वागतार्थ बहुत दुर तक सामने पहुँचा सैकड़ो व्यक्ति जय घोष की ध्वनि से आकाश को गुंजायमान कर रहे थे। ऐसे लोगों के समूह के साथ आपक्षी का सातारा में सुभागमन हुआ। महाराज श्री के साथ जूलूस का यह दृश्य दर्शनीय था। सातारा में पदार्पण कर श्रीसंघ के विशाल धर्म स्थानक में आप विराजमान हुए। चातुर्मास प्रारंभ होने पर प्रतिदिन व्याख्यान में उत्तरोत्तर श्रोताओं को संख्या बढने लगी धीरे-धीरे लोग इतने अधिक आने लगे की स्थानक खचाखच भर जाता था । व्याखान में आप सूत्रकृतांग सूत्र का वांचन करते थे । आपश्री मधुर अमृत्तों म उपदेश को सुनकर श्रोतागण पुनः पुनः उसे सुनने के लिए इतने अधिक लालायित रहते थे कि उन्हें कभी तृप्ति नहीं होती थी स्थानीय आवक आविकाओं के अतिरिक्त दूर दूर से अनेक लोग व्याख्यान सुनने के लिए आते थे । पर्युषण तथा सांवत्सरिक महापर्व भी विशेष उत्साह के साथ तथा बडि शान्ति पूर्वक सम्पन्न हुआ । यहां आपश्री के समय समय पर जाहिर व्याख्यान भी होते थे । हजारों जैन अजैन आपके प्रवचन सुन कर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव करते थे। श्री संघ ने धर्म-ध्यान तपस्या तथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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