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सिद्ध कर दिया है कि जैनधर्म की उत्पत्ति न तो श्रीमहावीर के समय और न श्रीपार्श्वनाथ के समय में हुई किन्तु इससे भी बहुत पहले भारतवर्ष के अति प्राचीन काल वह अपने अस्तित्व का दावा करता है । उन्होंने अपने भाषण में कहा था" जैनधर्म एक मौलिक धर्म है यह सब धर्मों से सर्वथा अलग और स्वतंत्र धर्म है । इसलिए प्राचीन भारत वर्ष के तत्त्वज्ञान और धार्मिक जीवन के अभ्यास के लिए यह बहुत महत्त्व का है । "
कइ विद्वानों का यह भ्रमपूर्ण मत है कि जैन धर्म वेद धर्म की ही शाखा है । और उसके आदि प्रवर्तक श्रीपार्श्वनाथ या श्रीमहावीर स्वामी थे । इस भ्रमपूर्ण मान्यता का खण्डन हम वेदों, पुराणों और अन्य ग्रन्थों के प्राचीनतम उद्धरण देकर करेंगे ।
दुनियां के अधिकांश विद्वानों की मान्यता है कि आधुनिक उपलब्ध समस्त ग्रन्थों में वेद सबसे प्राचीन है । अतएव अब वेदों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न करेंगे कि वेदों की उत्पत्ति के समय जैनधर्म विद्यमान था । वेदानुयायियों की मान्यता है कि वेद इश्वर प्रणीत हैं । यद्यपि यह मान्यता केवल श्रद्धा गम्य ही है तदपि इससे यह सिद्ध होता है कि सृष्टि के प्रारंभ से ही जैन धर्म प्रचलित था क्योंकि ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के अनेक मंत्रों में जैन तीर्थकरों के नामों का उल्लेख पाया जाता है । ऋग्वेद में भगवान श्रीऋषभदेव को पूर्वज्ञान का प्रतिपादक और दुःखों का नाश करनेवाला बतलाते हुए कहा है- असूत पूर्वा वृषभो ज्यायनिमा अरय शुरुधः सन्ति पूर्वी । दीवो न पाता विदधस्य धीभिः क्षत्रं राजाना प्रतिबोदधाये ॥ ऋग्वेद ।। २ । ३४ । २ ॥
जैसे जल से भरा मेघ वर्षा का मुख्य स्त्रोत है, जो पृथ्वी की प्यास को बुझा देता है, उसी प्रकार पूर्वी ज्ञान के प्रतिपादक श्री ऋषभ देव महान है। उनका शासन वर दें । उनके शासन में ऋषि परम्परा से प्राप्त पूर्व का ज्ञान आत्मा के शत्रुओं - क्रोधादि का विध्वंसक हो । दोनों संसारी और मुक्त आत्माएँ अपने आत्मगुणों से चमकती है । अतः वे राजा है - वे पूर्णज्ञान के आगार है और आत्म-पतन नहीं होने देते । ( पूर्व ज्ञान के लिए देखिये आगे का टिप्पण)
चौदह पूर्व :
तीर्थ का प्रवर्तन करते समय तीर्थंकर भगवान जिस अर्थ का गणधरों को पहले पहल उपदेश देते हैं, अथवा गणधर पहले पहल जिस अर्थ को सूत्र रूप में गूंथते हैं, उन्हें पूर्व कहा जाता है । पूर्व चौदह है— (१) उत्पाद पूर्व - इस पूर्व में सभी द्रव्य और सभी पर्यायों के उत्पाद को लेकर प्ररूपण की गई । उत्पाद पूर्व में एक करोड पद हैं ।
(२) अग्रायणीय पूर्व - इस में सभी द्रव्य, सभी पर्याय और सभी जीवों के परिमाण का वर्णन है । अग्रायणीय पूर्व में छियानवें लाख पद हैं ।
(३) वीर्यप्रवाद पूर्व — इसमें कर्म सहित और बिना कर्मवाले जीव तथा अजीवों के वीर्य (शक्ति) का वर्णन है । वीर्य प्रवाद पूर्व में सत्तर लाख पद हैं ।
(४) अस्तिनास्तिप्रवाद - संसार में धर्मास्तिकाय आदि जो वस्तुएँ विद्यमान हैं तथा आकाशकुसुम गैरह जो अविद्यमान हैं, उन सब का वर्णन अस्तिनास्ति प्रवाद में हैं । इस में साठ लाख पद है ।
(५) ज्ञानप्रवाद पूर्व — इसमें मतिज्ञान आदि ज्ञान के पांच भेदों का विस्तृत वर्णन है । इसमें एक करोड पद है ।
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