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जैन संस्कृति परम उदार व्यापक और सार्वजनिक है । यह सर्वजनहिताय और सर्वजन सुखाय है। इसमें संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है, जाति-पाति का कोई भेद नहीं, राजा और रंक का पक्षपात नहीं स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता नहीं । वह मानवमात्र को ही नहीं पशु पक्षियों को भी धर्म का अधिकार प्रदान करता है । आचारांग सूत्र में कहा है
जहा पुण्णस्स कथइ तहा तुच्छस्स कत्थइ ।
जहा तुच्छस्स कथइ तहा पुण्णस्स कथइ । अर्थात् जैनधर्म का उपदेष्टा साधक अनासक्ति पूर्वक जिस वैराग्य भाव से रंक को उपदेश करता है उसी निष्काम भाव से चक्रवर्ती आदि राजाओं को भी उपदेश देता है । अर्थात् उसकी दृष्टि में श्रीमन्त और निर्धन का, राजा और रंक का उंच और नीच का कोई भेद भाव नहीं होता । वह प्रत्येक व्यक्ति को उपदेश का अधिकारी समझता है । जैनधर्म की छत्रछाया का प्रत्येक देश, प्रांत, जाति, वर्ग और श्रेणी का व्यक्ति आश्रय पा सकता है । पतित से पतित व्यक्ति भी इसका अवलम्बन लेकर अपना कल्याण कर सकता है ।
जैनधर्म विश्व शान्ति का शाश्वत स्रोत है । विश्व के प्रांगन में सुख और शान्ति रूपी सुधा का संचार एवं विस्तार करने का सर्वोपरि श्रेय यदि किसी को है तो वह केवल जैनधर्म को ही होसकता है । इस में कोई सन्देह नहीं कि जैनधर्म ने ही सर्व प्रथम विश्व के सामने अहिंसा प्रधान संस्कृति प्रदान की है । जैनधर्म ही अहिंसा प्रधान संस्कृति का आद्य प्रणेता है । अहिंसा के द्वारा ही सच्ची शांन्ति मिल सकती है, यह ध्रुव सत्य है । हिंसा, वैर प्रतिस्पर्धा, और युद्ध की दारुण विभीषिका से भयभीत बने हुए विश्व को इस सत्य की थोडी बहुत प्रतिती होने लगी है । आज सारा विश्व हिंसा और विनाश के साधनों से संत्रस्त है । सारा वायुमण्डल सम्भावित आणविक महायुद्ध के झंझावात में अशांत और विक्षुब्ध हो रहा है । चारों ओर अशान्ति का घोर अन्धकार छा रहा है। ऐसे घोर अन्धकारमय वातावरण में भी जैनधर्म का अहिंसा सिद्धान्त ही दूर-सुदूर तक चमकती हुई प्रकाश किरणों को फेंकने वाले प्रकाश स्तंभ की तरह शांति के मार्ग का निर्देश कर रहा है । जैनधर्म की प्राचीनता
जैनधर्म अत्यन्त प्राचीन धर्म है । इसके आदि काल का पता लगना असम्भवसा है । आधुनिक इतिहास काल जिस समय से प्रारंभ होता है उससे पूर्व जैनधर्म विद्यमान था यह अब इतिहास वेत्ताओं को भलीभांति विदित हो चुका है। इतिहास काल की परिधि चार पांच हजार वर्ष के अन्दर की ही सीमित है । उससे बहुत-बहुत प्राचीन काल में भी जैनधर्म का अस्तित्व था । जैनधर्म बौद्ध धर्म से ही नहीं अपितु वेद-धर्म से भी प्राचीन है । ___प्राचीन भारत में मुख्य रूप से तीन धर्मो का प्रभुत्व रहा है, जैनधर्म वेद धर्म और बौद्ध धर्म । जैनधर्म बौद्ध धर्म से भी प्राचीन है और मौलिक है यह तो निर्विवाद है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक बुद्ध थे और ये भगवान श्रीमहावीर स्वामी के समकालीन । इससे सिद्ध है कि बौद्ध धर्म लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व का है । इससे पहले बौद्ध धर्म का अस्तित्व नहीं था । आज के निष्पक्ष इतिहास वेत्ताओंने यह स्वीकार कर लिया है कि जैनधर्म बौद्ध धर्म से बहुत पहले प्रचलित था जैन और बौद्ध धर्म की कुछ समानता के कारण कतिपय विद्वानों को यह भ्रम हो गया था कि जैनधर्म बौद्ध धर्म की ही शाखा है ।
जर्मनी के प्रसिद्ध प्रोफेसर हर्मन जेकोबी आदि ने जैनधर्म और बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों की बहुत छान बीन की है और इस विषय पर बहुत अच्छा प्रकाश डाला है । इसने अकाट्य प्रमाणों से यह
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