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वह हृदय धाम कर रह गया । यह दुःखद समाचार जब हमारे चरितनायकजी तक पहुँचा को उनके हृदय पर तीव्र आधात लगा। क्योंकि पूज्यश्री श्रीलालजी महाराज की इन पर विशेष कृपा दृष्टि थी। पूज्य श्री के स्वर्गवास के समाचार सुनकर आप स्तब्ध रह गये । पहले तो आपको इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ । फिर इस घटना के आघात से कुछ देरतक चुप रहे । बाद में स्थानीय श्रीसंघ के सामने आपश्री ने भावप्रवण अत्यन्त मार्मिक शब्दों में अपने ये उद्गार प्रकट किये।
'सन्त विश्व की एक महान् विभूति है । वे गुमराहियों के लिए पथ प्रदर्शक है । विषमता में समता का सुमधुर संगीत सुनाने वाले अमरगायक है । वे परमात्मा के सगुण रूप है, धर्म के सन्देश वाहक है। श्रद्धेय आचार्यश्री श्रीलालजी महाराज अपने युग के सन्तों में एक अनुपम तथा विशिष्ट सन्त रत्न थे । आपका ओजस्वी जीवन एवं महान् वैराग्य तथा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व जैन समाज के लिए गौरव का विषय था । ज्ञान और चारित्र का आपके जीवन में पूर्ण सामञ्जस्य था । कथनी और करणी में एकता थी। पूज्यश्री का यह आकस्मिक स्वर्गवास स्थानकवासी समाज के लिए एक बहुत बडी क्षति है, जिसको निकट भविष्य में पूर्ति होना असंभव है । साथी मुनियों के प्रति समवेदना प्रकट करते हुए चरितनायकजी ने आशा प्रकट की कि हम सब उनके बताए हुए पथ पर चलकर संघ को यशस्वी बनायेंगे ।
___ चरितनायकजी ने गुरुदेव की सेवा में समवेदना का सन्देश भेजा । और उनकी याद में १७५ श्लोकों की रचना कर गुरुदेव की सेवामें भेजा । उन श्लोंकों के कुछ नमुने ये हैं
श्री सन्दोहलसत् स्वरूप विभया योमोदयन्मेदिनि । लावलावमलीलवल्लवमपि क्रोधादिकर्मोद् भवम् ।। लङ्कानिर्दहनोपमं च मदनं योऽधाक् त्रिदुःखच्छिदे । मुक्तं पादचतुष्टया देचरमैवर्णेरमुं स्तोम्यहम् ।।१।।
जिन्होंने शोभा समूह से देदीप्यमान आकृति की प्रभा द्वारा संसार को प्रसन्न किया क्रोधादि कर्मों के कारणों को एक एक करके काट दिया एवं जिस प्रकार हनुमान ने लङ्का का दहन किया था। ठीक वैसे ही जरा जन्म मरण रूप दुःखों को मिटाने के लिए जिन्होंने काम को नष्ट कर दिया शरीर से मुक्त उन पूज्य श्री श्रीलॉलजी मुनि की इस पद्य के चारों चरणों के आद्यन्त अक्षरों से वन्दना पूर्वक मैं स्तुति करता हूं । लंका दहन की उपमा लोकोक्ति हैं
कल्याणमन्दिरनिभात्सुस्मंदिरस्थात् । श्रीलालपूज्यकरुणाबरुणालयाच्च ॥
कल्याणमन्दिरमवाप्तुमना विनौमि । कल्याणमन्दिरपदान्त समस्यया तम् ॥ कल्याणागर स्वर्गस्थ, करुणानिधि पूज्यश्री श्रीलालजी से अधिक कल्याण प्राप्त करने की इच्छा से ही कल्याणमन्दिरस्तोत्र के पद को अन्तिम समस्या के रूप में लेकर उक्त श्री चरणों को स्तुति करता हूं ।
जन्मान्तरीयदुरितात्तविपत्तिरद्य, सावद्यहृद्यमभिपद्य विपद्यमानः ।
पूज्य ! त्वदीयपदपद्ममहं श्रयाणि । कल्याणमन्दिरमुदारमवद्य भेदि ॥३॥ हे पूज्य ! जन्मान्तर में किये पापों से पीड़ित सम्प्रति भी कुकर्मो को ही ध्येय-ग्राह्य समझ कर अपनाने से उद्विग्न मैं मुनि घासीलाल आप के चरण कमलों का आश्रय लेता हूं। क्योंकि आप के चरण कमल ही सुख निकेतन अत्यन्त उदार एवं पापों के नाशक है ॥
दुःखी स्वदुःखशमनाय सुखी सुखाय, धीमानधियेऽधरदरं सुकृती शमाय ।
यत्ते सुपूज्य ! शुभसद्म तदा स्मराणि । भीताऽभयप्रदमनिन्दितमघ्रियुग्मम् ॥५॥ है सुपूज्य ? आप के जिन चरणों को दुःखी आत्मा सुख की कामना के लिए, सुखी एकान्त सुख के निमित्त बुद्धिमान प्रज्ञावृद्धि के लिए, तथा धार्मिक जन शांति के लिए आत्मसात् करते थे। उन्हीं चरणों का मैं स्मरण करता हूं-कारण कि संसार भयोद्विग्न मनुष्य को वही प्रशस्त चरण अभयदान दे सकते हैं ।
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