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________________ एक न सुनी । तवे तथा अंगारों पर पड़ी हुई रोटीयां तथा सारा आटा उठाकर गालियां देता हुआ वह चला गया । बच्चे अपनी आशा को टुटते देखकर बिलख बिलख कर रोने लगे। मां का हृदय भी टूट गया । वह भी फूट फूट कर रोने लगी । किन्तु भूख की समस्या फिर भी हल न हुई । माता ने आचानक बन्द कर दिया । वह बंद करना रुदन से भी अधिक भयंकर था । उसने बच्चों से कहा "आओ अपन रोटी लेने चलें ।" भोले बालकों को क्या पता था कि उनकी भूख से तंग आकर मां का हृदय त्या करने जा रहा है ! वे साथ हो लिये । बच्चों को लेकर वह गांव से बाहर निकली । थोडी दूर पर जंगल में एक कूआ था । वच्चों को एक वृक्ष के नीचे खडा करके वह बोली-तुम यहीं खडे रहना मैं रोटी लेने जाती हैं। यह कह कर वह कए पर गई और उसमें कद पडी : बच्चों ने समझा मां रोटी लेने गई है । थोडी देर तो वे आशा में खडे किन्तु मां रोटी लेकर न लौटी । वे जोर जोर से रोने लगे और कुए में झांक कर मां मां पुकारने लगे । उन्हें क्या पता था उनकी क्षुधा से तंग आकर माता उन्हें छोडकर किसी दूसरे लोक में पहुंच गई और अब उनका आ क्रन्दन उसके पास न पहुंच सकेगा। उसी समय बड़ा भाई घर लौटा । बेचारा मजदूरी खोजने गया था किन्तु वहां भी भाग्य ने पीछा नहीं छोडा । तीन दिन भटकने पर भी कहीं काम न मिला । भूखा मरता घर लौटा तो किवाड खुले पडे थे। घर में कोई नहीं दिखता था। पडोसियों से सारी कथा सुनकर वह भी उसी ओर चल दिया जिधर उसकी पन्नी गई थी। कूए के पास पहुचने पर उसे रोते हुए बालक दिखाई दिये । पिता को देखते ही वे रोटी रोटी चिल्लाते हुए दौडे । बाप ने झूठी सांत्वना देते हुए पूछा-“मैं तुम्हें अभी रोटी देता हूं। बताओ तुम्हारी मां कहां गई है ? बालकों ने कुए की तरफ इशारा करते हुए कहा यहां मां रोटी लेने गई है ।" उसने कुए पर जाकर देखा तो अभी बुलबुले उठ रहे थे । कई दिन की भूख के कारण वह पहले ही बहत घबराया हुआ था । यह दशा देखकर वह विक्षिप्त सा हो उठा । उसने बच्चों से कहा आओ अपनभी रोटी लेने चलें । यह कहकर एक बच्चे को पीठ से बांध लिया। और दो को बगलों में रख लिया । कए पर चढकर वह भी धम से पानी में कूद पडा । भूख से तंग आकर उसने अपनी तथा बच्चों की जीवन लीला समाप्त लर दी। यह हृदय विदारक घटना मुनि श्री ने सुनी । दुष्काल की यह भयानकता सुनकर मुनि श्री का हृदय दयार्द्र हो उठा । उन्होंने श्रावकों को दान दया का खूब महत्व समझाया परीणाम स्वरुप बोहर से दर्शनार्थ आये हुए तथा स्थानीय श्रावकों ने गरीबों को भोजन देने के लिए हजारों रुपये जमा किये। गांव के बहुत से व्यक्तियोंने दस दस मन जुवार दी । छोटी छोटी बहुत सी सहायताएं प्राप्त हुई नजदूरी करने वाली एक बहन ने अपनी मजदूरी में से चार आने दिये। ___ तदनन्तर मुनि श्री के प्रभावशाली उपदेश से एक विशाल भोजनालय प्रारंभ हो गया । गरीबों को मफ्त भोजन दिया जाने लगा। आस पास के गांवों में इस बात की घोषणा कर दी गई। लगभग दो सो ढाई सो व्यक्तियों को प्रतिदिन दोनों समय भोजन मिलने लगा । उनमें बहुत से व्यक्त ऐसे भी थे जिन्हें एक हफते तक भोजन भी खाने को न मिला था । चातुर्मास समाप्त कर मुनि श्री अपने गुरुदेव के साथ हिवडा से मिरी और मिरी से सोनई पधारे सोनई में अच्छा उपकार हुआ । पूज्य पं० श्री जवाहिरलालजी महाराज ने मालवे की तरफ विहार कर दिया और चरितनायकजी दक्षिण में ही विचरते रहें । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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