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भीमराजजी कोठारी और सूरजमलजी साहेब इन दो व्यक्तियोंने पूर्ण वैराग्य भावसे भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा महोत्सव बडी धूम धामसे हुआ लगभग दो हजार व्यक्ति भागवति दीक्षा महोत्सव में सम्मलित हुए थे। दुष्काल में सहायता
उन दिनों दक्षिण प्रांत में भयंकर दुष्काल पड गया । और साथ ही इन्फलुंजा का भी प्रकोप हो गया । प्रतिदिन अनेक व्यक्ति भूख तथा इन्फलुजा से मरने लगे । उनकी करुण कथा प्रतिदिन मुनिश्री के कानों में पड़ने लगी । पूज्य श्री जवाहिरलालजी महाराज एवं मुनि श्री पन्नालालजी महाराज को छोड़कर नौ
त बिमार पड़गये जिसमें हमारे चरितनायकजी भी थे । स्वस्थ होते ही ये अन्यसन्तों की सेवा में जुड गये । हृदय विदारक घटना
हिवडे के पास ही एक छोटे से गांव में एक परिवार रहता था । उसमें दो भाई माता बडे भाई की स्त्री तथा तीन बच्चे थे । भाइयों में अनबन होने के कारण बडा भाई बच्चों के साथ अलग रहता था
और छोटा भाई अपने मां के साथ रहता था । उसके पास खाने को अनाज था । किसी प्रकार की तंगी ने थी स्त्री और बच्चों के खर्च के कारण बडे भाई का हाथ सदा तंग रहता था । दुष्काल पडने पर वह भयंकर मुसीबत में पड गया । कुछ दिन तो घर की चीजे बेचकर गुजारा किया मगर अन्त में वे भी समाप्त हो गई । बेचारा चिंता में पड़ गया ।
घर में बड़ी मुश्किल से दो चार दिन गुजारे के लिए भी अन्न न था। खाने वाले पांच थे । सभी का पेट प्रतिदिन मांगता था। हारकर वह मजदूरी ढूंणने के लिए गांव छोडकर चला गया । सोचता था कहीं से कुछ मिलने पर वापस चला आउंगा। ____ घर में बहुत थोडा अनाज वचा था । पति को न लौटा देखकर स्त्री ने स्वयं भोजन करना बन्द कर दिया । उस अनाज से बच्चों का पेट पालने लगी । उन्हें रोटी खिला देती और स्वयं भखी सो रहती । इस प्रकार तीन दिन बीत गए । पतिदेव फिर भी न लौटे घर में एक भी अनाज का टाटा बाकी न रहा । बच्चे फिर खाने को मांगने लगे किन्तु माँ के पास अब कुछ भी न था। अब स्वयं तीन दीन से भूखी थी । उसे अपनी भूख की अपेक्षा बच्चों की भूख अधिक तर सता रही थी । किसी प्रकार दो पहर तक समझा बुझाकर बच्चों को चुप क्यिा । किन्तु भूखे बच्चे कब तक चूप रहते ? वे बिल बिला कर रोटी मांगने लगे मां भी उन्हीं के साथ रोने लगी । किन्तु मां का रुदन बच्चों की भूख न मिटा सकता था । मां का हृदय फटा जा रहा था । किन्तु कोई चारा न था ।
देवर और सास से अनबन होने पर भी वह इस आपत्ति के समय वहां जा पहुंची । उस समय देवर घर पर नहीं था। बच्चों की करुण कथा सुनकर सास का हृदय द्रवीत हो गया। उसने एक सेर बाजरी उधार दे दी। बाजरी लेकर वह अपने घर आई और आटा पीसकर रोटी बनाने लगी। इतने में छोटा भाई अपने घर आया । बाजरी देने के अपराध में उसने मां से बहुत कहा सुनी की और वहाँसे दौडा हुआ बडे भाई के घर पहुँचा ।
उस समय एक रोटी अंगारे पर थी । एक तवे पर सीक रही थी एक पोई जा रही थी। बोकी आटा कठौती में था । तीनों बच्चे अंगारों पर सिकती हुई रोटी की आशा में बैठे थे । इतने में वह वह नर पिचास जैसा आ पहुंचा और भाभी पर बाजरी ठगलाने के इल्जाम लगाकर गालियों की बौछार करने लगा हल्ला सुनकर पडोसी इकट्ठे हो गये । बच्चों पर दया करने के लिये उसे बहुत समझाया किन्तु उसने
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