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________________ १५८ प्रश्नों के उत्तर अनेक आगमों के मूल प्रमाणों और टीका के अधार को समक्ष रख कर उन प्रश्नों के उत्तर संस्कृत श्लोकों में तैयार कर भेजे । श्री न्यायविजयजी म० को अपने प्रश्नों के उत्तर संस्कृत श्लोकों में देख कर स्थानकवासी समाज में ऐसे विद्वान मुनि भी है यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ । श्री घासीलालजी म० ने संस्कृत अध्यन में इतनी प्रौढता प्राप्त करली थी कि वे संस्कृत विद्वानों से संस्कृत में वार्तालाप करते थे । इतना ही नहीं संस्कृत श्लोकोद्वारा भी वे बातचित करने में दक्ष हो गये थे । इनकी इस विशेषता पर पं० श्री जवाहरलालजी म० तथा अन्य विद्वद्वर्ग अति मुग्ध थे । वि. सं. १९७४ का सोलहवाँ चातुर्मास मिरी में हिवडा से विहार कर चरितनायकजी अपने गुरुदेव के साथ मिरी गाममें पधारे । सं० १९७४ का चातुर्मास अपने गुरुदेव श्री के साथ में ही व्यतीत किया । चातुर्मास में आपने अपने अध्ययन में अच्छी प्रगती की । संस्कृत, प्राकृत भाषा के साथ साथ आपने उर्दू तथा फारसी भाषा का भी अध्ययन भी अच्छा किया । मराठो भाषा पर भी आपका अच्छा अधिकार हो गया । आप समय समय पर मराठी भाषा में भी प्रवचन देने लगे । आपके प्रवचनों का स्थानीय जनता पर अच्छा प्रभाव पडता था । मिरी के प्रभावशाली चातुर्मास को समाप्त कर आप अपने गुरुदेव के साथ अनेक ग्राम नगरों को पावन करते हुए अहमदनगर पधारे । मुम्बई धारा सभा के भूतपूर्व स्पीकर एवं प्रसिद्ध वकिल श्रीकुन्दनमलजीसा. फिरोदिया एवं समाज सेवक मानकचन्दजी सा मुथा ने एक दिन बात चित के सिलसिले में पं० श्री जवाहरलालजी महाराज सा० से कहा - " आपके दोनोंशिष्य पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज एवं मुनि श्री गणेशीलालजी महाराज लम्बे समय से संस्कृत भाषा का अध्ययन कर रहे हैं । यह आनन्द की बात है किन्तु उनका अध्ययन कितना हुआ है और अध्ययन के विषय में नकी प्रगति कैसी हो रही है यह बात हमें और जनता को कैसे मालूम हो ? यद्यपि मुनियों को परीक्षा देने की और प्रमाण पत्र लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती और न इस ध्येयसे ही वे अध्ययन कर रहें हैं । तथापि समाज की शक्ति का धन का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है और अध्ययन कर्ता मुनि अप्रमत्तभाव से अध्ययन करते हैं या नहीं यह जानने के लिए परीक्षा की आवश्यकता रहती है । उक्त वकिलों का कथन सुन कर पं० मुनि श्री जवाहरलालजी महाराज अपने दोनों प्रतिभासंपन्न शिष्यों को बुलाया और वकिलों की बात कह कर उन से पूछा- क्या ? आप लोगों का परीक्षा देने का बिचार है ? गुरुदेव के इस वचन का आदर पूर्वक दोनों मुनियों ने स्वीकार किया और परीक्षा देने की स्वीकृति दे दी । अहमदनगर में ही दोनों मुनियों की परीक्षा लेने का निश्चय कर लिया । तदनुसार उस समय के प्रसिद्ध विद्वान डा० गुणे शास्त्री M. Ap. HD तथा M. M. अभ्यंकर शास्त्री को परी - क्षक के रूप में नियुक्त किये । श्री संघ और अनेक दर्शकों के बीच बड़े उत्साह के साथ दोनों मुनियों की परीक्षा ली गई । व्याकरण और साहित्य विषयक प्रश्न पुछे गये व्याकरण के विषय में पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने एवं पं० मुनि श्री गणेशीलालजी महाराज ने ८२ ८२ प्रतीशतप्रथम श्रेणी के मार्क प्राप्त किये । साहित्य में पं० मुनि श्री घासीलालजी महाराज ने ७० प्रतिशत एवं पं श्री गणेशोलालजी म० ने ६४ प्रतिशत मार्क प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए मौखिक परीक्षा में पं० मुनि श्री घासीलालजो महाराज ने सौ प्रतिशत मोर्क प्राप्त किये। दोनों मुनियों की इस सफलता पर समाज ने प्रशंसा के फूल बरसायें । मुनि श्री ने वहां से अन्यत्र विहार कर दिया । वि. सं. १९७५ का १७वाँ चातुर्मास हिवडा में इस वर्ष का चातुर्मास आपने पूज्य गुरुदेव के साथ हिवडा में किया । इस चातुर्मास के बीच श्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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