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________________ १५७ घोडनदि और उसके आसपास के क्षेत्रों में प्लेग फेल गया। प्लेग ने इतना भयंकर स्वरूप किया की सैकडों व्यक्ति प्रतिदिन मरने लगे । परिणाम यह आया कि समस्त गांव खाली हो गया । घोडनदी के समीप ही शिरूर नामका छोटा गांव है। घोडनदी के समस्त निवासी रहने के लिए वहां चले गये । महाराज श्री को भी वहां पधारना पड़ा। कुछ दिन के बाद शिरूर में भी प्लेग फैल गया । किन्तु सन्तों के पुण्य प्रभावसे चातुर्मास निर्विघ्न समाप्त हो गया । चातुर्मास की समाप्ति के बाद आप गणियागांव पधारे । गणिवागांव से धामोरी, खेड आदि क्षेत्रों में विहार करते हुए घोड नदी पधारे। वहां से हिवडा, सोनई, आदि क्षेत्रों को स्पर्शते हुवे चातुर्मासार्थ मिरी पधारे । मनका भूतः - हवा के कारण सिकूडता फैलता एक बार रात्रि को हमारे चरितनायक श्रीघासीलालजी महाराज एक गाँव में एक विशाल मकान में रात्रि के समय मकान के पीछले भाग में सोए हुए थे। सहसा अर्द्धरात्रि को नीन्द खुल गई । और देखते हैं तो अपने पैरों से कुछ दूर ही एक सफेदसा कुछ दिखाई दिया। मुनि श्री विचार में पड गए । देवी देवता, भूत आदि की बाते सारे संसार में विविध रूप से कही जाती है। वे विचारने लगे । आज तो लोकोक्ति सत्य होती दिख रही है । उठ कर भागू तो यह उसी समय धर दबायगा । और रात्रि में जोर से आवाज करना मुनि धर्म में निषेध होने से दूर सोए हुए मुनि को बुला भी नही सकता । अब क्या करना यही सोच रहे थे, वहाँ हृदय की निर्भीक वृत्ति ने कहा- डरने की क्या बात है ! देव हो या भूत हो मैने तो उनको कुछ बिगाडा तो नहीं है, फिर सामने जो भि दिख रहा है उसे ही क्यों न पकड लिया जाय। ऐसा सोच कर उठे और पैरों की नीचली बाजू में जो दिख रहा था उसे ही आपने पकड़ लिया । किन्हीं मुनि ने सायं काल के समय कपडा सूखा रखा था वही रहता था वही हाथ में आया और सारा भ्रम दूर हो गया । था तो कुछ नहीं परन्तु भ्रम जन्य वस्तु दिखाई देने पर भी किसकी हिम्मत होती है कि जो उसके पाश चले जाय ? इस समान्य घटना से मुनि श्री का रहा हुवा भय भी दूर हो गया, वे अपने आप को ही उपदेश देते हुए कहने लगे" घबराना तो कायरता है । सहन शीलता रखना यह वोरता है । यह तो बहुत सामान्य घठना हुई किन्तु इस दीर्घ जीवन में अनेक ऐसे घबराने के प्रंसग आयेंगे । अनेक उलझनों से तुझे लोहा लेना पडेगा । उन उलझनो के प्रसंग चक्र में मत फंस जाना । सोचते रहना उलझने तो जीवन में आति ही रहती हैं। ये तो जीवन की कसोटी है। कंचन जब तक अग्रि में प्रविष्ट हो कर कसौटी पर नहीं कसा जाता, तब तक उसका मूल्य कैसे बढ सकता है? साधना पथ में निरन्तर आगे बढने वाले व्यक्ति के सामने अनेकों मानसिक उलझने आएंगी ही। यातनाएँ भी सहनी पडेगी ही । जो चलेगा, उसको गिरने का भी भय अवश्य होगा । जो साधक इससे कतरा जाता है, उसकी साधना विफल हो जाती है जटिल से जटिल परिस्थिति में जो व्यक्ति पत्र। राता है भयभीत होता है वह व्यक्ति कभी भयानक समस्या को हल नहीं कर सकता । जो उलझनों को मुरझाता है उसे ही आशातीत सफता मिलती है। मुनि तूं सावधान रह। निर्भीकता से आगे चलता चल, इसी में तेरा महत्व है। मुनि श्री ने उस दिन से अपने मन को भय के वातावरण से हटा दिया। परिणाम यह आया कि वे कठिन प्रसंग में भी निर्भीक ही रहें । इसी वर्ष पूज्य श्री श्रीलालजी म सा से मूर्तिपूजक के विद्वान मुनि न्याय तीर्थ न्यायविशारद मुनि श्री न्यायविजयजी ने १०८ प्रश्न पुछे उनसर्व प्रश्नो के पूज्यश्री ने सुन्दर प्रत्युत्तर तो दे दिये परन्तु आवको ने वे प्रश्न पं० मुनिश्री जवाहरलालजी महाराज ने अपने प्रतिभा सम्पन्न शिष्य श्री घासीलालजी महाराज को उन प्रभों के प्रत्युत्तर संस्कृत में लिखकर देने को आज्ञा दी, तदनुसार श्री घासीलालजी महाराज ने उन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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