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________________ १५२ वाल, देसाई, कानून नागादा आदि क्षेत्रों को फरसते हुए धार पधारे । प्रखर वक्ता पं.जवाहरलालजी महाराज का आगमन सुन कर धार की जनता ने सन्तों का भव्य स्वागत किया। प्रतिदिन पंडित मुनिवर्य के विविध विषयों पर प्रभावशाली प्रवचन होने लगे। धार रिसायत के उच्च अधिकारी भी प्रतिदिन मुनिश्रेष्ठ का प्रवचन सुन हर्षित होते थे और मुनि श्री के त्याग वैराग्य की भूरि भूरि प्रशंसा करते । धार से विहार कर मुनि श्री बाजना पधारे । यहां मुनि श्री के उपदेश से हजारों लोगों ने विविध त्याग ग्रहन किये । सैकड़ों भीलों ने मांसाहार का त्याग किया । बाजना से विहार कर शिवगढ होते हुए रतलाम पधारे । प्रसिद्ध वक्ता पं. जवाहरलालजी म. सो. के प्रवचनों को सुनने का अवसर हमारे चरित नायकजी कभी हाथ से जाने नहीं देते। उनके प्रवचन को सदैव हृदयंगम करते । गुरुदेव के निरन्तर सानिध्य में रहने के कारण आपका ज्ञान कोष बढ़ता ही जाता था। उन्ही दिनों रतलाम में श्री श्वे. स्था. जैन कान्फरन्स का दूसरा अधिवेशन था। भारतवर्ष के विभिन्न पान्तों से हजारों गण्य मान्य सज्जन क्रान्फरन्स में सम्मलित होने आये थे। इस अधिवेशन में वाडीलाल मोतीलाल शाह. मोरवी नरेश एवं राजस्थान मध्यभारत के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थि थे। हमारे चरितनायकजी को भी इस अवसर पर समाज के गण्य-मान्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिलने का और उनसे विचारों का आदान प्रदान करने का अवसर मिला। रतलाम से विहार कर आप गुरुदेव के साथ सैलाना पधारे। वहां प्रवचन पीयूण से भव्य जनों को लाभान्वित करते हुए पंचेड नामली, शिवगढ, रावटी करवड पेटलावद आदि गांवों को पावन कर थांदला पधारे। वि. सं. १९ ६५ का सातवां चातुर्मास थांदला में इस बर्ष का चामुमास चरितनायकने पूज्य गुरुदेव के साथ थादला में ही व्यतीत तिया । इस चातमांस के बीच आपको गुरुदेव के सानिध्य में विविध बाते जानने को मिली । इस चातुर्मास में तपस्वी मनि श्री मोतीलालजी म.ने एवं तपस्वी श्री राधालालजी महाराज ने ४२-४२ दिन की लम्बी तपश्चर्या की। तपस्या के अवसर पर बहुत उपकार हुए । कई खंद हुए। बहुत से अजैन भाईयों ने मांस मदिरा शिकार आदि का त्याग किया । मच्छीमारों के १६ घर थे । वे श्रावकोंके सम्पर्क से प्रतिदिन पूज्य गमदेव के पवचन मनने आते थे । प्रवचन का प्रभाव उन पर अच्छा पड़ा फल स्वरुप उन्होने चार मास तक मच्छी मारने का त्याग किया । स्थानीय संघ ने इनके खाने पोने का प्रबन्ध किया । समाज सुधार के कई कार्य हुए। __ चातुर्मास की समाप्ति के बाद आप गुरुदेव के साथ रंभापुर पधारे । रंभापुर में पुज्य गरुदेव श्री जवाहरलालजी महाराज अचानक अशाता वैदनी कर्म के कारण बीमार पड गये। १५० तक दस्तें और के (वमन) होगई थी। रंभापुर के श्रावकों ने गुरुदेव के जीवन को आशा छोड दी थी । अंत में श्रावकों के सतत प्रयत्न से और सन्तों की सेवा से गुरुदेव ने पुनः स्वास्थ प्राप्त कर लिया । स्वास्थ ठीक होने पर वहाँ से विविध क्षेत्रों को पावन करते हुए आप गुरुदेव के साथ ब्यावर पधारे । ब्यवार में आचार्य श्री श्रीलालजी महराज के दर्शन किये । कुछ दिन तक आचार्य श्री की सेवा में रह कर आगामो चातुर्मास के लिए आप गुरुदेव के साथ जावरा पधारे । वि. सं. १९६५ का सातवां चातुर्मास जावरा में जावरा मालव प्रान्त में स्थानकवासी जैन समाज एक श्रेष्ठ क्षेत्र माना जाता है । प्रखरवक्ता पंडितरत्न श्री जवाहरलालजी महराज सा. एवं चरितनायकजी श्रीघासीलाल जो म. सा. जैसे प्रभावशाली मनीयों - के चातुर्मास से समस्त संघ में धर्म ध्यान और उत्साह का सागर उमड पडा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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