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________________ १५० नाथद्वारा पधारते समय कोठारिया गांव में तपस्वी श्री बालजन्दजी महाराज को अशाता वैदनी कर्म के उदय से अचानक लकवा हो गया । कुछ मुनिराजों ने जिनमें हमारे चरितनायकजी भी सम्मिलित उन्हें उठाया और नाथद्वारा में ले आये । नाथद्वारा में तपस्वी श्री बालचन्द्रजी महाराज की हमारे चरितनायकजी ने अपूर्व सेवा की । उस समय इनकी सेवावृत्ति को देखकर दूमरा नन्दिषेणमुनि की उपमा से उपमित किया । नाथद्वारा में कुछ दिनों तक पूज्यश्री तथा अन्य स्थविर सन्तों की सेवा का लाभ प्राप्त करके आपने अपने गुरुदेव के साथ विहार कर दिया । राजनगर, कांकरोली, कुमारिया, मावली, आदि स्थानों को पावन करते हुए आप गुरुदेव के साथ उंडाला पधारे । उंठाला से बेहारकर आप पूज्य श्री श्री लालजी महाराज की सेवा में पुनः उदयपुर पधारे । उदयपुर में आचार्य श्री की कुछ दिन तक सेवा कर के पंडित प्रवर श्री जलाहरलालजी महाराज सा एवं बडे चान्दमलजी महाराज ठाने २ ने झाडोल की ओर विहार किया । हमारे चरितनायकजी आचार्य श्री की सेवामें ही कुछ दिन तक रहें । और उनसे शास्त्रों का अध्ययन करते रहे । आचार्य श्री ने हमारे चरितनायकजी के साथ नाथद्वारे की ओर विहार किया । नाथद्वारा पहुँचने के बाद पंडित प्रवर श्री जवाहरलालजी महाराज भी झालावाड के क्षेत्रों में शसन की अपूर्व प्रभावना करते हुए नाथद्वारा पधारे । नाथद्वारा में कुछ दिन तक आचार्य श्री की सेवा कर आप गुरुदेव श्री जवाहरलालजी महाराज के साथ गंगापुर पधारे। गंगापुर में गुरुदेव श्री जवाहरलालजी महाराज का तेरह पंथियों के साथ शास्त्रार्थ हुआ । इस शास्त्रार्थ को सुनने का भी अपूर्व अवसर आपको मिला गुरुदेव ने तेरह पन्थी श्रावकों का अनेक शास्त्रीय प्रमाणों से शंका समाधान किया। फल स्वरुप अनेक श्रावकों ने शुद्ध सम्यक्त्व ग्रहण किया । इस शास्त्रचर्चा में आपको अनेक नई बाते जानने को मिली । गंगापुर से पोहना, पूर, भीलवाड़ा बेगूं, खदवासा, होते हुए आप गुरुदेव के साथ सिंगोली पधारे सिगोली मुनिश्री मोतीलालजी महाराज को जन्म भूमि है । महाराज श्री के पदार्पण से यहां के विज्ञ श्रावकों के हर्ष की सीमा न रही । गुरुदेव जैसे अमूल्य निधि को वे चिन्तामणि रत्न के समान समझते थे । इसलिए हाथ में आये हुए इस अमूल्य निधि को विना कुछ आत्मिक लाभ प्राप्त किये हाथ से बाहर नहीं जाने देना चाहिए । ऐसा विचार करके श्रावकों ने मासकल्प त यहीं विराजने को प्रार्थना की । श्रावकों की श्रद्धा के आधीन होकर महाराज श्री ने मासकल्प यहीं व्यतीत किया । सिंगोली से विहार कर बेगूं होते हुए पारसोली पधारे । पारसोली के रावजी ने गुरुदेव का प्रवचन सुन कर जीव हिंसा का त्याग किया । वहां से आप गुरुदेव के साथ चित्तौड़ पधारे । चित्तौड़ से राशमी, अरणिया, खांखला, पोटला, गंगापुर, साहडा, कोशीथल देवरिया, और मोकुन्द होते हुऐ आप अपने गुरुदेव के साथ आमेट पधारे । आमेट से झिलुरा, देवगढ, मदोरिया, निम्बाहडा वोराणा होते हुए रायपुर पधारे । रायपुर में कुछ दिन तक विराजने के बाद गुरुदेव के साथ गंगापुर पधारे । वि. सं. १९६३ का पांचवां चातुर्मास गंगापर वि. सं. १९६३ का पांचवां चातुर्मास गंगापुर में ही अपने गुरुदेव के साथ व्यतीत किया । इस चातुर्मास में महान तपस्वी मुनिश्री मोतीलालजी म. ने ३३ दिन की दीर्घं तपस्या की । मुनिश्री पन्नालालजी महाराज ने भी बड़ी लम्बी-लम्बी तपस्याएँ की चरितनायक श्रीघासीलालजी म. सा. ने भी छुटकर तपस्याएँ की । तपस्या के साथ साथ आपका अध्ययन भी चलता रहा । इस चातुर्मास के बीच आपने अमरकोष सम्पूर्ण रूप से याद कर लिया और साथ ही साथ आचारांग सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध भी अर्थसहित कण्ठस्थ कर लिया । बुद्धि की अत्यन्त तीव्रता और स्मरण शक्ति की प्रखरता के कारण आपकी अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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