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________________ इस चतुर्मास में नौ सन्तों में से छ सन्तों ने इस प्रकार की तपस्या की१ तपस्वी श्री मोतीलालजी म. ४१ उपवास २ ,, ,, राधालालजी म. ३० , ३ ,, ,, पन्नालॉलजी म. ६१ छाछ के पानी के आधार ४ ,, ,, धूलचन्दजी म. ३५ ,, ५ , ,, उदयचन्दजी म. ३१ , ६ ,, , मायाचन्दजी म. ४१ ,, इन तपस्वियों की दीर्घ तपस्या का प्रभाव स्थानीय संघ पर अच्छा पडा । फलस्वरुप धर्मध्यान त्याग प्रत्याख्यान एवं छोटी बडी तपस्याएँ आशातीत हुई ? तपस्या के पूर ते दिन अगता पाला गया और सारे शहरों में जीव हिंसा बन्द रही । बालमुनि श्री घोसीलालजी महाराज ने भी इस अवसर पर छोटी बडी तपस्या की तपस्या के साथ साथ आपका अध्ययन भी चल ही रहा था । चातुर्मास काल में हमारे चरितनायकजी ने पण्डित प्रवर गुरुदेव के समीप व्यवहारसूत्र की वांचना ली और उसे कण्ठस्थ भी कर लिया । व्यवहार सूत्र की सम्पूर्ण वांचना के बाद बहदकल्पसूत्र भी प्रारंभ किया और उसे भी चातर्मास की समाप्ति तक अर्थ सहित कण्ठस्थ कर लिया । ____ इस प्रकार उदयपुर का यह महत्व पूर्ण चातुर्मास अपने गुरुदेव के साथ पूर्णकर गुरुदेव के साथ वहां से विहार कर दिया । अनेक स्थानों में धर्मामृत बरसाते हुए आप गुरुदेव के साथ नाथद्वारा पधारे। नाथद्वारा में आचार्य श्री श्रीलालजी महाराज का भी मुनि मण्डली के साथ आगमन हुआ सब मनिवरों ने आचार्य प्रवर के सामने जाकर दर्शन किये और परमानन्द का अनुभव किया । हमारे चरितनायकजी को पूज्यश्री श्रीलालजीमहाराज जैसे महापुरूष के दर्शन नाथद्वारा में हुए श्रद्धेय पूज्य श्री श्रीलालजी महाराज स्वभाव के बडे शान्त स्वभावी एवं मृदुप्रकृति के एक महान आचार्य थे। समस्त मनि मण्डल आचार्य श्री के सुयोग्य शासन में अत्यन्त शान्ति और सौजन्य का अनुभव करता था । ___ हमारे चरित नायक आचार्य श्री के दर्शनपाकर अत्यन्त ही प्रसन्न हुए । उनकी गम्भीर मुखमुद्रा उनका गम्भीर शास्त्रज्ञान उनकी प्रभावडालनेवालीगम्भीरवाणी चरितनायकजी केलिए अनुपमआकर्षण पैदा करने लगी। चरितनायक जब इस महापुरुष के संपर्क में आये तो सहसा उनकी मधुर कृपा के पात्र बनगये । ससकी भविष्य की और झांकने वाली आंखों ने लघुमुनि में विलक्षण प्रकाश जगमगाता पाया चारित्रनायक की विनयभावना विलक्षणप्रतिभा वाकचातुरी और विवेकशीलता को देखकर अत्यंत मुग्ध हो गये। उन्होंने एक दिन पं. मुनि श्री जवाहरलालजी महाराज से कहा-“तुम बडे भाग्यशाली हो तुम्हें योग्य शिष्य मिला है । देखना अच्छी तरह से इसकी सार संभार रखना और पढा कर योग्य बनाना । यह एक दिन हमारे सम्प्रदाय के भाग्याकाश का उज्ज्वल नक्षत्र बनेगा।" आचार्य श्री का यह आशीर्वाद; चरित्तनायकजी के लिए महान वरदान बन गया इतना आशिर्वाद ही इनके लिए कम नहीं था। ईन्हें अपनी योग्यताकाअभिमान नहीं हुआ प्रत्युत अधिक विनम हो अपनीसादना में जुटगये। गुरु सेवा और शास्त्रों का अध्ययन इनके जीवन के मुख्य अंग बनाये उस समय नाथद्वारे में शाँतस्वभावि शास्त्रज्ञ पू. पं. रत्नमुनिश्री मन्नालालजी महाराज भी विराजमान थे। बाल मुनि श्रीघासीलालजी मा. वन्दना के लिए उनके बास पहुंचे। भव्य ललाट, गौरवपूर्ण गठिल इला और सुन्दर शरीर वाले इस बाल मुनि को देखकर बडे प्रभावित हुए । उन्होने सहज भाव में बालमुनि की ओर दृष्टि डाल कर कहा-घासीलाल । तेरा भविष्य बडा उज्वल हे । आ.नी योग्यता बुद्धि चतुर्थ से तु शासन प्रभावना के अनेक कार्य करेगा । मुनिश्री जवाहरलालजी बडे भाग्यशाली है कि तुझ जैसा सयोग्य शिष्य रतका उन्हें योग मिला है। कुछ समय तक नाथद्वारे में पण्डित प्रवर श्री जहाजी हाराज आचार्य श्री की सेवा में रहै । उस समय नाथद्वारे में २६ मुनिराज बिराजमान थे। हमारे चरित्नारव जी को इन विशाल सन्त समुदाय के दर्शन का उनके ज्ञान और अनुभव का अपूर्व लाभ प्राप्त हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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