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________________ १४७ श्लोक को याद करने में आपके दो-दो दिन बीत जाते थे वहाँ एक बार ध्यान पूर्णक पढ़कर ही आप उसे याद कर लेते थे । आप अपने गुरुजनों के प्रति अति विनम्र थे आपकी बुद्धि की वृद्धि में यह भी एक खास कारण था । वि. सं. १९५९ का प्रथम चातुर्मास जोधपुर में दीक्षा लेने के पश्चात मारवाड़ के विविध क्षेत्रों को पावन करते हुए आपने प्रथम चतुर्मास पूज्य गुरुदेव श्री जवाहरलालजी महाराज श्री के साथ व्यतित किया । इस चतुर्मास में तपस्वी मुनि श्री मोती लालजी महराज साहेब भी आप के साथ थे । तपस्वी श्री मोतिलालजी महराज सा. ने इस चतुर्मास के बीच दीर्घ तपस्या की थी । तपस्या के पूर के अवसर पर त्याग प्रत्याख्यान अच्छी मात्रा में हुए । बालक मुनि श्रीघासीलालजी म. ने भी उपवास आयंबिल उनोदरि आदि तप किये । तपस्या के साथ साथ आप गुरुदेव की सेवा में बैठकर अध्ययन भी करने लगे । सेवाभावी बाल मुनि पर गुरुदेव की पूर्ण कृपा थी इसके अतिरिक्त पूर्व संचित पुण्योदय के कारण आपके ज्ञानावरणीय कर्मो का ऐसा क्षयोपशम हुआ था कि जिस पाठ को आप सुनते उसे तुरत याद कर लेते मानो उस पाठ को आपने पहले ही पढ़ रखा हो । गुरूदेव के मुख से जैसा उच्चारण सुनते वैसा ही आप स्पष्ट उच्चारण भी कर लेते थे । अनेक जन्मों के अभ्यास के बाद मनुष्य विद्वान होता है । "बहूनां जन्मनांमते विवेकी जायते पुमान् इस प्रकार अनेक जन्मों तक निरन्तर विद्याभ्यास करने के पश्चात आपने ऐसी निर्मल बुद्धि प्राप्त की थी । फलस्वरूप आपने चातुर्मांस काल में दशवैकालिक सूत्र को उत्तराध्ययन सूत्र प्रारंभ किया । कंठस्थ कर लिया । और जोधपुर का चातुर्मास समाप्त कर आप पू० गुरुदेव के साथ विहार करते हुए समदडी पधारे । समदडी से विहार कर आप गुरुदेव के साथ बालोतरा पधारे । उन दिनों में तेरापन्थ संप्रदाय के आचार्य डालचन्दजी स्वामो बालोतरा में विद्यमान थे । वादिगजकेसरी पू. जवाहरलालजी महाराज सा० के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ । इस शास्त्रार्थ को सुनने का अवसर आपको भी प्राप्त हुआ । वादिगजकेसरी पू. गुरु देव के अकाट्य तर्क व आगमोचित उत्तर के सामने आ. डालचन्द जी के तर्क निःप्रभ दुए ओर वे शास्त्रार्थ को लम्वा न कर तुरत वहां से विहार कर गये । बालोतरा से विहार करके आप गुरु देव के साथ पंचपद्रा समदडी गढ सिवाना पाली सोजत ब्यावर आदि क्षेत्रों को पालन करते हुए अजमेर पधारे । वि. सं. १९६० का द्वितीय चातुर्मास ब्यावर अजमेर क्षेत्र को पावन कर हमारे चरितनाया जी का चातुर्मास पूज्य गुरुदेव के साथ ब्यावर हुआ आपने इस चतुर्मास की समाप्ति तक 'उत्तराध्ययन' सूत्र भी सम्पूर्ण कण्ठस्थ कर लिया । चातुर्मास समाप्ति के बाद आपने पूज्य गुरुदेव की सेवामें रहकर अनुत्तरोववाई ओर अंतगड सूत्र भी याद कर लिया आप को पढने की बड़ी लगन थी । रात्रि के समय चन्द्रमा के प्रकाश में घण्टों तक पढ़ा करते थे । अध्ययन के साथ साथ तपस्वी एवं वृद्ध सन्तों की ग्लानि रहित भाव से खूब सेवा करते थे । बालमुनि होने के नाते सब साथी सन्तों की कृपा आप को प्राप्त थी । आप को सन्तो की सेवा में बडा आनन्द आता था ब्यावर का चातुर्मास समाप्त कर आप गुरुदेव के साथ जयतारण पधारे । जयतारण में तेरापन्थ संप्रदाय के साधु फोजमलजी के साथ पू० जवाहरलालजी महाराज का एक मास तक शास्त्रार्थ चला । इस शास्त्रार्थ में फौजमलजी की हार हुई | शास्त्रार्थ को सुनने का आप को भी अच्छा अवसर मिला । शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त करके पूज्य जवाहरलालजी म. सा. ने अपनी मुनि मण्डली के साथ विहार कर दिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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