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बाद मुनिश्री ने चरितनायक से पूछा-क्या ? तुम इन सर्व आचारों का पालन कर सकते हो ?
श्रीघा पीलालजी ने तत्काल उत्तर दिया--मैं तो इससे भी कठिन आचरण करने की इच्छा रखता हूँ। चाहे मुझे उसके लिए कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पडे । कर्म र हत अवस्था प्राप्त करना अपने हाथ की बात है। संयम किसी भी प्रकार दुःखप्रद नहीं वरन् सुखदायक है। विवेकपूर्वक संयम का पालन किया जाय तो संयम इस लोक में भी सुखदायक है और परलोक में भी ।
संयम को इस लोक और परलोक में आनन्द माननेवाले श्री घासीलालजी को अपने शुभ संकल्प में अत्यन्त दृढ पाया तो मुनिश्री ने उसे कुछ दिन तक अपने पास रखने की अनुमति दे दो ।
श्री. घासीलालजी के साथ मुनिश्री की बात चीत हो हो रही थी कि श्रावक समुदाय भी मध्याह्न का प्रवचन सुनने मुनिश्री की सेवा में उपस्थित हो गया । मुनिश्री ने समय होते ही प्रवचन के बीच स्थित श्रावकों से मुनिश्री ने कहा--जसवंतगढ के निवासी श्री देवीचंदजी सा. बोल्याके घर रहनेवाला भाई घासीलाल मेरे पास दीक्षा लेने का विचार कर रहा है।
___ मुनिश्री की अचानक इस घोषणा से उपस्थित श्रावक समुदाय में सनसनी फैल गई। जिस किसी ने सुना उसका हृदय भक्ति के आवेस से उसकी अर आकर्षित होने लगा । व्याख्यान समाप्ति के बाद सब ने घासीलाल को मनाने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु इसके वैराग्य रंग के सामने सबको झुकना पडा । प्रारम्भिक कुछ विरोध के बाद इसे दीक्षा देने का निश्चय किया। प्रश्न यह आया कि इसे दीक्षा की आज्ञा कौन प्रदान करें । सब इस बात से आशकित थे कि इसे दीक्षा देने के बाद इसके कुटुब का कोई व्यक्ति उपस्थित होकर उपद्रव करेगा तो उसका जवाब कौन देगा?
अन्त में जसवन्तगढ के श्रावक घासीलाल को दीक्षा देने के लिए राजी हुए। श्रावकों ने जसवंत मट पधारने की मुनिश्री से प्रार्थना की। श्रावकों के आग्रह पर तपस्वी मुनिश्री मोतीलालजी महाराज पं. श्री जवाहरलालजी महाराज एवं अन्य मुनिगण जसवंत गढ पधारे । साथ में वैरागी घासीलालजी भी थे नरावली गढ (जसवंतगढ) पधारने के बाद मुनिश्री ने घासीलालजी को दोक्षा तिथि निश्चित की। दीक्षा काल भो समीप ही आ पहुँचा जिसकी घासीलाल कुछ समय से प्रखर प्रतीक्षा कर रहा था। उस विक्रम संवत १९५८ मिति माघ शुक्ला तेरस गुरुवार पुष्य नक्षत्र का शुभ दिन उदय हुआ। उसी दिन और उसी समय मोटेगाव (गोगुन्दा) में मन्दिर का ध्वजा रोहन होनेवाला था। सभी लोग उसी उत्सव में
ले जो टीक्षा में आनेवाले थे वे भी नहीं आये और ध्वजा रोहन महोत्सव में चले लग गये। बाजे वाले जो दीक्षा में आनेवाले थे वे भी नहीं आगे : गये। परिणाम यह आया कि दीक्षा का जो समय निश्चित किया था वह टल गया। अन्त में सोना ही प्रतीक्षा करते करते शाम के चार बज गए । ध्वजा रोहन विधि समाप्त होते ही लोग दीक्षा समारोह
नाभी आ गये। और बडे समारोह के साथ घासीलालजी की दीक्षा में उपस्थित हए । बाजे वाले भी आ गये। और बडे मासे सम्पन्न बुई। प्रथम परीक्षा
दीक्षा सम्पन्न होते हो नियमानुसोर नव दीक्षित के साथ मुनिश्री ने विहार कर दिया। तीन चार मोल का विहार करने के बाद जब सूर्यास्त होने आया तो पास ही में एक पहाड की सूनी चौकी में मनिश्री ने निस किया। रात्रि के समय कुछ लुटेरे मुनिश्री के निवास स्थान पर आये। उस समय नव दीक्षित घामोलालजी महाराज ने नवीन वस्त्र धारण किये थे। लुटेरों ने सोचा होगा ? ये बनियों के गुरु है। वणिक धनवान होते हैं तो गुरु के पास भी खूब धन होगा। भेट सौगात में इन्होंने काफी
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