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कम्माणं तु पहाणाए अणुपुब्बी कयाइव्वीं । जीवासोहि मणुपत्ता आययन्ति मणुस्सर्य || अशुभ कर्मों का भार दूर होता है, आत्मा शुद्ध पवित्र और निर्मल बनता है तब कहीं वह मनुष्य की सर्व श्रेष्ठ गति को प्राप्त करता है महा भारत में भी कहा है
"गुह्यं ब्रह्म तदिदं ब्रवीमि नहीं मानुषान् श्रेष्ठवरं हि किंचित "
आओ, मैं तुम्हें एक रहस्य की बात बताऊँ ? यह अच्छी तरह मन में करो कि संसार दृढ़ में मनुष्य से बंढकर और कोई श्रेष्ठ नहीं है। सन्त तुलसीदासजी तुलसीदासजी की यह चौपाइ सर्व जन विश्रुत है बड़े भाग मानुष्य तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्दि गावा " बड़े भर से ही यह मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। जब हमे देव दुर्लभ मनुष्य जन्म मिल ही गया है तो हमें क्षण मात्र का प्रमाद किये बिना अपने जीवन को शुद्ध बनाने के लिए अहिंसा धर्म का पालन करने में लग जाना चाहिए, भगवान ने तो क्षणमात्र का भी प्रमाद न करने की चेतावनी दी है, उत्तराध्यन सूत्र में “समयं गोयम ! मा पमायए" हे गौतम! क्षणमात्र का भी प्रमाद न कर ।
इस व्याख्यान का बालक घासीलाल पर अद्भुत प्रभाव पडा । बैठे बैठे ही मन अनगार व्रत की ओर दौड़ने लगा । त्यागी वैरागी जैनमुनियों के प्रवचन सुनने का इन्हें सर्व प्रथम यही सुअवसर मिला । उस दिन पूज्य श्री ने मानवजीवन और अहिंसा पर इतना अच्छा प्रभाव डाला कि सारी जैन अजैन परिषद वैराग्य रंग में रंग गई। सैकड़ों अजैन व्यक्तिओं ने जीववध का त्याग किया। जैन लोगों ने भी यथाशक्ति त्याग-प्रत्यारूपान ग्रहण किये । व्याख्यान क्या था ? स्वयं मुनिश्री का वैराग्यमय जीवन ही वाणी का रूप धारण कर सामने आया था। उनका जीवन बोल रहा था हृदय को हिलानेवाले उनके इस अमृतमय पवित्र व्याख्यान को सुनकर सब से अधिक सच्चरित्र, सरलहृदय चरितनायक प्रभावित हुए वह वहीं अपनी सुध बुध भूलकर वैराग्य के प्रवाह में बह गए। व्याख्यान समाप्त हुआ । और सब लोग भोजन मण्डप में पहुँचे । सब के साथ चालक घासीलाल भी भोजन मंडप में पहुंचा उस दिन आगन्तुक सज्जनों के आतिथ्य के लिए विविध मिष्ठान्न भोजन का आयोजन किया गया था । बडे प्रेम और सम्मान के साथ स्थानीय जनता ने दर्शनार्थियों को भोजन कराया । चरितनायकजीने भी भोजन किया । सन्तों के प्रति श्रावकों का पूज्य भाव आतिथ्य सरकार एवं जैन मुनियों के त्याग भाव को देखकर घासीलाल बडा प्रभावित हुआ । भोजन करने के बाद सब लोग आराम में लगे हुए थे । समय अकेले ही ये पुज्यश्री की सेवा में पहुँचे। बन्दन कर वे उनके समीप बैठ गये ।
पूज्यश्री ने आगन्तुक बालक से पूछा- तुम्हारा नाम क्या है ? बालक — मेरा नाम घासीलाल है । पूज्यश्री- तुम कहाँ के रहनेवाले हो ? बालक - मेरा जन्मस्थल तो बनोल है किन्तु इस समय जसवन्त गढ में सेठ देवीचन्दजी सा. बोल्या के घर काम करता 1
पूज्यश्री- तुम्हारे माता पिता अभी क्या करते हैं ? बालक मेरे माता पिता का स्वर्गवास हो गया । अब मैं अकेला ही हूँ ।
मुनिश्री व्याख्यान सुना
चरितनायक जी हां, आपका व्याख्यान मुझे बडा प्रिय लगा। आपके व्याख्यान से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि देव दुर्लभ मानव जीवन जब मुझे मिला है तो मैं आपकी तरह उसे सार्थक क्यों न करूँ । क्योंकि यह जीवन पानी के बुलबुले के समान है। हवा का एक हल्का सा झोका उसे समाप्त कर देता है । फिर भी मनुष्य न जाने किन किन आशाओं से प्रेरित होकर ऊंचे ऊंचे हवाई महल बनाता है । मनुष्य का धन, वैभव और अत्यन्त प्रिय जन सभी यहीं रह जाते हैं और हंस निकल चला जाता है। सूर्य प्रातः उदय होकर अन्धकार कालिमा का समूलच्छेद कर संसारमें उज्ज्वल प्रकाश का
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