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________________ भी छोटी छोटी घटनाओं का योग ही है । कईबार छोटी छोटी घटनाऐं अपना स्थाई प्रभाव छोड जाती है । पेड़ से फल गिरते सभी ने देखा था । किन्तु उस छोटी सी घटना ने महान वैज्ञानिक न्यूटन के सामने एक नया सिद्धान्त उपस्थित कर दिया पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण । हमारे चरितनायकजी के जीवन में भी इस घटना का बहुत ही स्थायी प्रभाव पड़ा। वे घर आये और प्रातः काल की घटित घटना का अथ से इति तक सेठ से कही। ठाकुर के इस व्यवहार से सेठ अत्यन्त क्रूद्ध हुए और उन्होंने उसे सजा देने का निश्चय किया ठाकुर का नाम जानकर वे उसे पकड़ने के लिए घर से निकले तो हमारे चरितनायक ने उन्हें रोक दिया और कहा-सेठ साहब ! अब उस ठाकुर को पकडकर सजा देने का कोई अच्छा परिणाम नहीं निकलेगा। इस से वैर की परम्परा बढेगी और मेरे कारण आप व्यर्थ की परेशानी में फँस जाऐंगे। दूसरी बात यह है कि अब मैं यहां नहीं रहना चाहता । मैं अन्य किसी गांव में जाकर अपना जीवन निर्वाह करूँगा। सेठ ने बहुत समझाया और उसे अपने घर पर ही रहने का आग्रह किया। समझाने पर भी चरितनायक को अपने घर रखने में असमर्थ पाया तो उन्होंने उन्हें जाने की आज्ञा दे दी। वीर पुरुष जब अपने मन में निश्चय कर लेता है तो असंभव को भी संभव कर दिखाता है। संसार की विघ्न बाधाएँ कितनी ही क्यों न अडी खडी हो उसे अवरुद्ध नहीं कर सकती। सेठ से आज्ञा प्राप्त कर वे एक अज्ञात दिशा की ओर चल दिये । चलते चलते वे रावलियां पहुंचे। रावलियां गांव अरावलि की छोटी २ पहाडी के बीच बसा हुआ एक छोटा गांव है यहा प्रायः किसानों की बस्ती ज्यादा है। कुछ समय तक एक सेठ के घर रहे वहां भी जब मन नहीं लगा तो वे वहां से चल दिये और वापिस जसवंतगढ (तरावली का गढ) आ गये । वहाँ श्रीमान् देवीचन्दजी सा. बोल्या के घर रहने लगे। उन दिनों में पूज्य आचार्यम० श्री जवाहरलालजी महाराज सा. तपस्वीजी श्री मोतीलालजी महाराज आदि सन्त उदयपुर का अपना प्रभावशाली चातुर्मात पूर्ण कर विचरते हुए तरपाल पहुँचे । तरपाल जसवंतगढ से नजदीक ही बसा हुआ एक छोटासा गाँव है । पूज्यश्री का आगमन सुन कर आस पास के गाँव वाले सैकड़ों की संख्या में पूज्य श्री के दर्शनार्थ तरपाल पधारे । जसवंत गढ का श्रावक समूह भी पूज्य श्री के दर्शनार्थ तरपाल पहुँचा। इसमें हमारे चरितनायकजी भी थे । सबके साथ ये भी पूज्य श्री का प्रवचन सुनने व्याख्यान मण्डप में पहुँचे । व्याख्यान चल रहा था। उस समय व्याख्यान में सूत्र कृतांग सूत्र की निम्नलिखित गाथा पर विवेचन चल रहा था-- एवं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसइ किंचणं । अहिंसा समयं चेव, एयावतं वियाणिया ॥१॥ पूज्य श्री के मुख से इस गाथा या सरल व्यापक एवं रहस्य पूर्ण अर्थ सुनकर चरितनायक जी के हृदय पर गहरा प्रभाव पडा । ज्ञान प्राप्त करने का एक मात्र साधन अहिंसा है। अहिंसा का पालन करने से अपने आप सब गुणों की प्राप्ति हो जाती है । अहिंसा का अर्थ है किसी भी प्राणी को मन वचन और काया से कष्ट न देना । संसार में रहते हुए सम्पूर्ण अहिंसा का पालन गृहस्थ के लिए अशक्य है । क्योंकि गृहस्थ जीवन में छोटे बडे ऐसे अनेक कार्य स्वयमेव हो जाते हैं, जिनमें हिसा अनिवार्य होती हैं इसलिए संपूर्ण अहिसा का पालन करना हो तो इस ससार को छोडकर अनगारव्रत धारण कर निराकुल भाव से अहिंसा का पालन करना चाहिए । अनगार जीवन में ही व्यक्ति तीन करण तीन योग से अहिंसा का संपूर्ण पालन कर सकता है। यह श्री वीतराग प्रभु की देशना है। भगवान की यह वाणी सुनने का बार बार सुअवसर प्राप्त नहीं हो सकता। अनेक जन्मों की तपश्चर्या के बाद हमे यह मानव जीवन प्राप्त हुआ है। भगवान श्रीमहावीर ने कहा है-- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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