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________________ १४० में अमृत बरसता हैं तो इस संसार में हमारा कोई भी शत्रु शत्रु नहीं रहेगा सभी हमारे मित्र बन मित्र बनाने से नहीं बनते. अपने व्यवहारों से बनते हैं यदि हमारा व्यवहार बरा है हृदय में कुटिलता है वाणी में जहर बरसता है तो इस संसार में हमारे शत्रुओं की कोई कमी नहीं रहेगी । लाख प्रयत्न करने के बाद भी मित्र मिलना हमारे लिए दष्कर होगा ।" मित्र बनाने की सबसे बड़ी अमोघ औषधि है-तुम जो दसरों के लिए करो उसे भूल जाओ और जो दसरों से लो उसे सदा याद रखो । मित्रता की यही जड है। बालक घासीलाल इस बात पर बडे सावधान रहते थे । बिना किसी अपेक्षा के मित्रों की अधिक से अधिक सेवा करना और उनकी हर तरह की सहायता करना अपना कर्तव्य समझते थे । कर्तव्य परायणता व साहस की परीक्षा श्रावण और भाद्रपद मास बीत चुका था । किसानों के खेत अनाज से लहलहा उठे थे । ऐसे समय खेतों की रक्षा अनिवार्य होती है । एक बार मालिक ने घासीलाल को बुलाकर कहा ओज से तुम्हें खेत की देखभाल करनी होगी । मालिक की आज्ञा पाकर घासीलाल खेत पर पहुँचा । और उसकी रक्षा करने लगा। ___ कर्तव्यशील व्यक्ति अपने कर्तव्य पर सदा तत्पर रहता है । उसके जीवन का लक्ष्य अपने कर्तव्य को पूर्ण करने का होता है । वह अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए सभी प्रकार के कष्टों की परवाह न करता हुआ वीरयोद्धा की भांति आगे बढ़ता ही जाता है । कार्य को पूर्ण करते हुए अपना जीवन समर्पित कर देना, यही मार्ग उसके सामने रहता है । वह अपने आत्मबल के आधार पर दूसरों की अपेक्षा नहीं रखता हुआ अपने कार्य को पूरा करता है । वह कभी निराशा का स्वप्न नहीं देखता । उसके जीवन में अपार साहस होता है इसलिए कठिनतम कार्य भी उसके लिए सहज बन जाता है । हमारे चरितनायक को खेती की रक्षा का कार्य सौंपा गया । हाथ में लाठी लेकर रात और दिन बडी सावधानी से वह खेत की रक्षा करने लगे । १४ वर्षीय बालक रात्रि के गहन अंधकार में भी बडी हिम्मत के साथ अकेले खेत में घूमते और निर्भय अकेले ही खेत के मंच पर चढकर सो जाते । कहीं भय का नाम भी इसने नहीं सुना । रात्रि में सुनसान खेत वैसे हो भयावह प्रतीत होता हि है । कृष्णपक्ष की काली रात्रि में उसकी भयावहता तो ओर भी बढ़ जाती है । चारों ओर सन्नाटा रहता है और बीच बीच में सियारों की बोभत्स आवाजें ओर वृक्षों की झुरमुराहट उस सन्नाटे को ओर भी भयावहः बना देते हैं । ऐसी भयावनी रात्रि में भी हमारे चरितनायक निर्भीक और निश्चल भाव से खेत की रखवाली करते थे । रात्रि के गहन अन्धकार व सुनसान जंगल के वातावरण में दो प्रौढ व्यक्ति का भी कलेजा थर्थरा उठता है। तो चालक का कहना ही क्या ? किन्तु बालक घासीलाल का दिल इसबात से निर्भीत था भय स्वयं उनके पास आने में भयभीत होता था । एक दिन एक ठाकुर ने अपने पशुओं को खेत में चरने के लिए छोड दिये । जब चरितनायक को इस बात का पता लगा तो वे हाथ में लाठी लेकर पशुओं को मालिक का नुकसान न हो जाय इसलिये खेतों से उन्हे भगाने लगे, इस घटना से ठाकुर बडा क्रुध हुआ । वह दौडा हुआ चरितनायक के पास आया । और गाली गलोज करने लगा । बात आगे बढ गई । घासीलाल के दोनों पैर रस्सी से बान्ध दिये और घसीटता हुआ कूए पर लेजाकर उन्हें ओंधे मुह कूए में लटका दिया । और वहां से चल दिया । कुछ समय के बाद कुछ बालसाथी उसके खेत पर आये तो उन्हें कुए में किसी के चिल्लाने की आवाज आई । वे तुरत कूए पर पहुंचे तो उन्हें घासीलाल औंधे मुह रस्सी से बन्धे हुए नजर आया । तुरत लड़को ने उन्हें कूए से खीच लिया । कूए से बहार आने के कुछ क्षण के बाद स्वस्थता का अनुभव किया। घटनाएं छोटी होती है किन्तु कभी कभी जिन्दगी को नया मोड देती है । यह मनुष्य का जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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