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आज जबकि हमारे देश का नैतिक स्तर नीचा होता जा रहा है, बालकों के जीवन का सही निर्माण करने की बडी आवश्यकता है क्योंकि बच्चे राष्ट्र की आत्मा हैं, इन्हीं से राष्ट्र पल्लवित पुष्पित हो सकता है इन्हीं में अतीत सोया हुआ है, वर्तमान करवटें ले रहा है और भविष्य के अदृश्य बीज बोये जा रहे हैं । इनके निर्माण में राष्ट्र का निर्माण है । बालकों का जोवन निर्माण केवल पाठशाला में ही नहीं होता किन्तु घर में भी होता है । बालक घर में संस्कार ग्रहण करता है और पाठशाला में शिक्षा । दोनों उसके जीवन निर्माण के स्थल है। अतएव माता-पिता यदि बालक में नैतिकता को उतारना चाहते हैं तो उन्हें
आने घर को भी पाठशाला का रूप देना चाहिए । बालक पाठशाला से जो पाठ सीख कर आता है, तब घर उसके प्रयोग की भूमि तैयार करे । इस प्रकार उसका जीवन भीतर बाहर से एक रूप बनेगा
और उसमें उच्च श्रेणी की नैतिकता पनप सकेगी । तब कहों वह अपनी जिंदगी को शानदार बना सकेगा । ऐसा बालक जहाँ कहों भी रहेगा, वह सर्वत्र अपने देश अपने समाज और अपने माता-पिता का मुख उज्ज्वल करेगा । वह पढलिख कर देश को रसातल की ओर ले जाने का, देश का ह्रास करने का प्रयत्न नहीं करेगा । देश के लिए भार और कलंक रूप नहीं बनेगा, बल्कि देश और समाज के नैतिक स्तर को उँचाई को ऊँची से ऊँची चोटी पर ले जायेगा और अपने व्यवहार के द्वारा उनके जीवन को भी पवित्र बना पाएगा ।
बनोल एक छोटा गाँव होने के कारण वहां कोई पाठशाला थी नहीं अतः प्रकृति की पाठशाला में एक विनम्र विद्यार्थी की तरह बालक घासीलाल ने प्रवेश किया । माता-पिता के उंचे संस्कार हो उसकी सबसे बडी पाठशाला थी । वह अपने घर का एवं प्रकृति का बडे सूक्ष्म रूप से निरीक्षण करने लगा। महापरुषों का विद्यार्थी जीवन किसी स्थान विशेष से आबद्ध नहीं होता । प्रत्येक स्थान उसको पाठशाला है और प्रत्येक क्षण उनका अध्ययन काल । जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त वे नवीन नवीन ज्ञान प्राप्त करते रहते हैं और अपने जीवन में उसका यथोचित्त उपयोग करते जाते हैं । सामान्य व्यक्ति पुस्तकों में लिखी बातों को अपने मस्तिष्क में ठूस लेता है समय पर उन्हें उगल भी देता है परन्तु अपने जीवन में नहीं उतारता । ऐसे व्यक्तियों के लिए ज्ञान भार रूप होता है । महापुरुष ऐसा नहीं करते । वे जो कुछ भी सीखते हैं उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं । उनके लिए सारा संसार ही एक खलो पस्तक है । प्रत्येक घटना प्रत्येक परिवर्तन और प्रत्येक स्वंदन उनके सामने नवीन पाठ लेकर आता है और उन्हें बोध दे जाता है। ___बालक घासीलाल ने प्रकृति की पाठशाला में अनमोल शिक्षा प्राप्त की । उन्होंने प्रकृति देवी की गोद में बैठकर सीखा--क्षमा कष्टसहिष्णुता, उत्साह' अनासक्ति, सन्तोष गुणग्राहकता, निर्भयता, निःष्कपटता, समदृष्टि म्वावलम्बन । प्रकृति देवी ने भी चरित्रनायक को अपनी पाठशाला का सब से बड़ा योग्य छात्र माना । वह भी एक महान सन्त के निर्माण में अपना योगदान प्रदान करने लगी । महापुरुष बननेवाले व्यक्तियों में कतिपय विशेषताएँ जन्मजात हुआ करती हैं जो सर्वसाधारण में नहीं होती । इन्हीं जन्मजात विशेषताओं को बाहरी जगत से मेल कराते हुए तथा उनका विकास करते हुए वे महापुरुष बन जाते हैं ? हमारे
- श्रीघासीलालजी में ऐसी ही कई विशेषताएँ बचपन से ही दिखाई देती थी । जिनसे उनके उज्जल भविष्य का पता चलता था ।
बालक घासीलाल का जीवन सुखद और शान्त था । माता का वात्सल्य, पिता का स्नेह और अपने से बड़ों का प्रेम इसे खूब मिला था । रूप और बुद्धि की विशेषता के कारण ग्राम के अन्य लोग भी
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