SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१ अतिरिक्त मनुष्य में एक बात और होती है। बालक को वह अपनी वृद्धावस्था का सहारा समझता हैं कि जब मेरे शरीर के अवयव शिथिल पड जाएँगे, तब मेरा पुत्र मेरा आधार बनेगा । यद्यपि कोई कपूत अपने माता-पिता की वृद्धावस्था में सेवा नहीं करता अथवा किसी को बुढापा ही नहीं आता या दुर्भाग्य से पुत्र ही पहने चल बसता है, फिर भी उपर्युक्त कल्पना मनुष्य को आश्वासन अवश्य देती है । इस आश्वासन के बल पर मनुष्य मजे में जी लेता है । आत्मा स्वभावत: अमर है, किन्तु शरीर से वह अमर नहीं रह सकता; अतएव पुत्राभिलाषी व्यक्ति सन्तति के रूप में अमर होना चाहता है । कुछ भी हो, इसमें संदेह नहीं कि पुत्र नेत्रों का प्रकाश है, गृह की शोभा है और पुत्र हीन गृह आनन्द प्रद नहीं होता । प्रभुदत्तजी भी इसी चिन्ता में सदैव निमग्न रहते थे। किन्तु पुत्र की प्राप्ति मनुष्य के प्रयत्न से बाहर की बात हैं - पुण्याधीन है, । पुण्य का योग आया और विमलाबाई ने वि सं १९४१ में अपनी कुक्षि से एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया । पुत्र के जन्म से पितृ हृदय का हुलास उमड़ पड़ा । माता वात्सल्य में भोग गई और सलौने शिशु को ममता से अच्छादित कर पुलका उठी। बालक के जन्म से समस्त परिवार में हर्ष और उल्लास का वातावरण छागया । गोधूमवर्ण, विशाल लाट और कान्तिमयी मुलाकृति वाले बालक पर जिसकी भी दृष्टि पड़ती वह यही कहता यह बालक भविष्य में अवश्य ही कुल को उबल करेगा । इस महापुरुष को जन्म देकर बनोल गाँव को मिट्टी भी पवित्र मन गई । (C उज्ज्वल विस्तृत्र परिवार एवं स्नेही गण इस बालक के जन्म से अपार हर्ष का अनुभव करने लगे । माता-पिता ने पुत्र जन्म की खुशी में उस समय की स्थिति एवं प्रथा के अनुसार जन्म उत्सव किया । स्वजन सम्बन्धीनों को प्रीति भोजन से सम्मानित किया और वृद्ध जनों ने बालक की दीर्घायु के आशीर्वचन बरसाये । प्रसूति स्नान के बाद इस होनहार बालक का नामकरण - संस्कार निष्पन्न हुआ उस अवसर पर गाँव के एक ज्योतिषी को बुलाया। जन्म समय देखकर ज्योतिषी ने बालक की जन्म कुण्डली बनाई । उसका फल बताते हुए ज्योतिषी ने कहा- " श्रीमान्जी ! यह बालक असाधारण है। भविष्य में यह बालक एक उच्च कोटि का होनहार महात्मा और विद्वान होगा । अपनी असाधारण प्रतिभा से समाज को शतकार्य की ओर प्रेरित करेगा ।" ज्योतिषी के मुख से यह बात सुनकर माता-पिता एवं परिवार अन्य स्नेही जनों को कितना हर्ष हुआ होगा इसका माप तो वोही कर पाये होंगे, नाम और राशि के अनुरूप बालक का नाम " घासीलाल " रखा गया। यह एक दार्शनिक सिद्धान्त है कि यह जीवात्मा अनन्त शक्तियों का भण्डार है । अनन्त गुण सम्पदाओं का आकर है परन्तु इस सत्तागत शक्तियों या गुणों का उसमें कब और कैसे विकाश होगो ? कौन जीव किस समय कहां उत्पन्न होकर कैसे विकास करेगा ? यह सब तो भविष्य के गर्भ में निहित है इसका प्रत्यक्ष अनुभव तो समय आने पर ही होता है । जब कि वह व्यक्त दशा को प्राप्त करें। इससे पूर्व तो उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । कौन जानता था कि "बनोल" नाम के गांव में आकर बसे हुए एक साधारण वैरागी परिवार में जन्म लेने वाला 'घासीलाल' नामका यह बोलक भविष्य में श्रमणसंस्कृति की एक विशिष्ट परम्परा के एक महान आचार्य के रूप में विश्व विश्रुत होगा यह कि खर थी कि “ विमलाबाई” जैसी ग्रामीण माता ने जिस बालक को जन्म दिया है भविष्य में वह उसी का गुणगरिमा के प्रभाव से वर्तमान युग में वैसी ही ख्याति प्राप्त करेगी जैसी कि अतीत युग में स्वनाम धन्य त्याग - रत्न पुत्रों को जन्म देने वाली माताओं ने प्राप्त की हैं । वैसे तो बालक निसर्ग का सुन्दर उपहार होने से स्वभावतः ही सुन्दर और प्रिय लगता है। इस पर भी विशेष पुण्य सामग्री लेकर आये हुए बालकों की मनभावनी मोहकता का तो कहना ही क्या ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy