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________________ १२४ प्राप्त किया है। उसे जनकल्याण के लिए अनेकों कष्ट सहकर भारत के विभिन्न प्रान्तों में विहार करके प्रसुप्त चेतना को किस प्रकार जागृत किया और समाज के दूषणों को दूर करके उसे पावन और पवित्र बनाया । यद्यपि महापुरुषों का जीवन-काव्य व्यापक सत्य से इस प्रकार अनुप्राणित होता है कि उसकी गरिमा को शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता तथापि गुरु भक्ति वस यह प्रयास किया जा रहा हैं ताकि उनके सुरम्य जीवन के अनुभवों से हम लाभान्वित हो सके प्रेरणा लेकर आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त बनासकें । उनके जीवन का एक पवित्र क्षण भी यदि हमारे जीवन में साकार हो जाय तो हम अपने को धन्य मानेंगे । इसी महती भावना से उत्प्रेरित होकर गुरु गुण संकीर्तन का वह प्राप्त अवसर मै हाथ से नहीं जाने देना चाहता । महापुरुषों के गुण स्तवन से आत्मा निर्मल पथ गामिनी बनती है । आत्मा में गुणो का प्रकाश फैलता है यह एक सनातन सत्य है । जन्मभूमि (राजस्थान) राजस्थान सांस्कृतिक दृष्टि से एक महान आदर्श प्रान्त रहा है । भारतीय सांस्कृति और सभ्यता के मुख को उज्ज्वल करनेवाली प्रचूर विभूतियों से यह भूखण्ड सदैव परिपूर्ण रहा है । यहां की समाजमूलक क्रान्तियों ने समय-समय पर देशव्यापक जन मानस को प्रभावित किया है । सन्तों की समन्वयात्मक अन्तर्मुखी साधना से राष्ट्र का नैतिक स्तर समुन्नत रहा है। उनके आदर्श उपदेश और संयम प्रवाह ने जो उत्कर्ष स्थापित किया उससे शताब्दियों तक मानवता अनुप्राणित होती रहेगी। सन्तों का औपदेशिक साहित्य आज प्राचीन होकर भी नव्य और भावनाओं से परिपूरित है । समीचोन तथ्यों का नूतन मल्यां. कन भावी पीढी को प्रशान्त बना सकता है । राजस्थान की भूमि की विशेषता है कि उसने एक ओर अजेय योद्धाओं को जन्म दिया तो दूसरी ओर ऐसे सन्त भी अवतरित किये जिनकी संयमिक गरिमा आज भी स्वर्णिमपथका सफल प्रदर्शन करने में सक्षम है जिनकी तपश्चर्या की ध्वनि मुमुक्षु साधक को कर्नगोचर हो रही हैं । उन की प्रकाश किरणें और चिन्मय चेतना एसा स्फुल्लिंग है जो सहस्राब्दी तक अमरत्व को लिये हुए हैं। मेवाड की गौरव गाथा राजस्थान का एक भाग मेदपाट (मेवाड) के नाम से प्रसिद्ध है। इसका स्वर्णिम अतीत अत्यन्त गौरवास्पद रहा है । वीरों की कीती गाथा से यहां की भूमि परिप्लावित होती रही है । नारी जाति का उच्चतम आदर्श यहां की एक एसी विशेषता थी जो अन्यत्र दुष्प्राप्य है । मेवाड भूमी का इतिहास वीरों की भव्य परम्परा का प्रकाश पुञ्ज हैं जिनकी आभा ने अंतर्मुखी जीवन को भी प्रकाशित किया है । यह बिना किसी संकोच के कहा जा सकता है कि मेवाड़ की संस्कृति के निर्माण और विकाश में जैनों का योग सबसे अधिक और उल्लेखनीय रहा हैं । प्राचीन इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि एक समय था जबकि सम्पूर्ण पश्चिमी भारत को मेवाडवासी जैनों ने ही संस्कृत के एक सुदृढ सूत्र में बांध रखा था । यहां का जन जीवन आज भी जैन संस्कृति के मूल्यवान तत्त्व से प्रभावित है । पश्चात्वर्ती मुनि समाज के सतत विहार और उपदेश ने और भी जन हृदय को संस्कृति की ज्योति से प्रकाशित किया है । अपरिग्रहि उग्र विहारी जैन मुनियों का सम्बन्ध झोपडों में रहने वाले साधारण मनुष्यों से लगाकर राजमहलों में निवास करने वाले शासक वर्ग तक व्यापक था । उनकी साधना सिक्त वाणी सभी को समान रूप से मार्ग दर्शन करा ती थी । उनका ओज और आध्यात्मिक इतना अनुकरणीय था कि अहिंसा का आलोक स्वतः स्फुरित हुआ करता था । मेवाड़ मेवाड ही क्यों ? सम्पूर्ण भारत को ही लें, जहां भी जैन मुनियों का सतत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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