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________________ १२३ प्रांगन में सुख शान्ति के संचार का श्रेय सन्तों को हि हैं । सन्तों का परम पावन चरित्र सुख का मार्ग प्रदर्शन कराने वाला अनूठा आकाश दीप हैं उनकी जगमगाती हुई जीवन ज्योति जगत को नव जीवन प्रदान करती है । जब तक दुनियाँ इन सन्तों के बताए हुए मार्ग पर चलती हैं तब तक सुख और शांति का साम्राज्य अविच्छिन्न रूप से बना रहता है । जब तक संसार दानवीय चंगुल में फसकर संतो और उनके बताए हुए मार्ग का उपहास और अवहेलना करती है । तब तक दुःख का दानव उसकी छाती पर चढ कर अट्टहास करता रहता है। दुनियां कराहती है शांति पाने के लिए तडफडाती है और दुःख से मुक्ति पाने के लिए तिलमिलाती है । ऐसी अवस्था से संत हो दुनियां को उबारते हैं । वे स्वयं कष्टों को झेलकर दुनियां को दानवीय चंगुल से मुक्त करते हैं । वे अपने चरित्र और उपदेश के द्वारा सोई हुई मानवता को पुनः जागृत करते हैं । वे मानव समाज में जागृति का पवन फूंक कर प्रबल प्रेरणा प्रदान करते हैं । ऐसे परोपकारी सन्तों को पाकर दुनिया धन्य हो जाती है । ऐसे आध्यात्मिक महापुरुषों के जीवन में एसे जीवनतत्त्व होते हैं जिनके द्वारा अगणित प्राणी नवीन चेतना और नवस्फुरण प्राप्त करते हैं । जिस प्रकार दीप से अगणित दीप प्रकाशि हो सकते हैं । इसी तरह एक महापुरुष के जीवन तत्त्व से अगणित महापुरुष बन सकते हैं। श्रध्देय पज्य आचार्य श्री घासीलालजी महाराज आध्यात्म-साधना गगन के एक एसे जाज्वल्यमान तेजस्वी नक्षत्र के समान थे । जो तर संयम त्याग को दिव्य प्रभा लेकर जैन जगत में अवतीर्ण हुए और अपने प्रखर प्रकाश से जैन समाज को चमत्कृत और प्रकाशित कर रहे थे। इन्होंने जिस दिन से तप त्यागमय साधना का जीवन अपनाया जिस दिन से साधुवृत्ति स्वीकार की उस दिन से लेकर आज २०२९ के पोष कृष्णा आमावश्या तक उसे उसी शान से निभाया । सिंह वृत्ति से साधुत्व लियां और सिंह वृत्ति से ही पालन किया । इनका मुनि जीवन स्वच्छ निर्मल और परम उज्जवल था । इनकी वाणी मधुर एवं अति प्रिय थी । इन्होंने स्वयं ज्ञान की साधना की और दूसरों को भी खुलकर ज्ञान का दान दिया । इन महापुरुष की दृष्टि इतनी उदार और व्यापक थी कि इनके लिए कोई पर ही नहीं बलके सबको समान दृष्टि से देखना यह इनका सहज स्वाभाविक महान् गुण था । धर्म, दर्शन; व्याकरण, कोषः काव्य न्याय और ज्योतिष शास्त्र के आप प्रकाण्ड पण्डित थे। संस्कृत प्राकृत, अपभ्रंश आदि प्राचीन भाषाओं के एवं हिन्दी मराठी, गुजराती अरबी फारसी उर्दू आदि सोलह भाषाओं के ज्ञाता थे । शास्त्रार्थ में आप परम कुशल थे आप की वक्तृत्व शैली मन मुग्ध कारी थी। सद्भाव, सदाचार. स्नेह, सहयोग शुद्धात्मवाद और सहिष्णुता का महत्व सबको समझाने और इन्हीं सद्गुणों को क्रियान्वित करने कराने में ही आपने अपना पवित्र जीवन व्यतित किया । अन्ध विश्वास अन्ध परम्परा, देवताओं के नाम होनेवाली पशुहत्या जातिवाद स्वार्थान्धता, उच-नीच विषयक विषमतादि दुर्गुणों का आप ने बडे वेग में युक्ति युक्त खण्डन किया और भद्र भावनाओं का प्रचार प्रसार कर जनता में जीवन ज्योति जागृत की । महापुरुषों के जीवन सरीता के उस उद्गम स्रोत के समान होता हे जो आरम्भ में तो लघु होता है किन्तु आगे बढकर अन्य जल स्रोतों का सहयोग पाकर विशाल ओर विराट हो जाता हैं इस प्रकार महापुरुष का जीवन भी प्रारंभ में लघु था । किन्तु ज्ञान चरित्र के विशाल स्रोतों का सहयोग पाकर विशाल और विशालतर बन गया । पाठक स्वयं इन महापुरुष का जीवन चरित्र पढकर यह अनुभव कर लेंगे कि इन्होंने अनेक संघषों के बावजूद भी अपने जीवन को किस प्रकार विशाल बनाया है विकट परिस्थिति में भी ये अपने स्वीकृति पथ पर किस प्रकार अविचल रहे हैं । अपनी दीर्घ साधना से जो कुछ भी इन्होंने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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