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________________ १२२ कवि नानालालजी जैसे राष्ट्र के परम सम्माननीय व्यक्तियों ने आपके प्रवचनों का लाभ उठाया था । आपके प्रवचनों से केवल नेता और विद्वान ही आकर्षित न होते थे वरन सामान्य और ग्राम्य जनता भी आपके प्रवचनों की और आकर्षित होती थी। लगभग २३ वर्ष तक आचार्य पद को वहन कर स. २००० में ता. १०-७-४३ के दिन पांच बजे चोविहार संथारा करके जवाहर रूपी भास्कर की आत्मा ने दुबेलशरीर का बन्धन त्याग कर स्वर्गकी ओर प्रयाण कर दिया । तपस्वी श्री मोतीलालजी महाराज तपस्वी श्री मोतीलाल जी महाराज का जन्म सिंगोली (मेवाड) में हुआ था । आप के पिता का नाम 'उदयचन्दजी' कटारिया और माता का नाम विरदीबाई' था । अठारह वर्ष की आयु में आपने मुनि श्री राजमलजी महाराज से दीक्षा धारण की । वि. सं १९३२ की माघ शुक्ला पंचमी के दिन आपकी दीक्षा हुई । और वि. सं. १९८३ फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन जलगांव में आप स्वर्गवासी हए । आप एक महान उच्चकोटि के तपस्वी थे । आपकी तपस्या प्रायः चलती ही रहती थी। एक से लेकर अडतालीस (सेतालीस को छोड कर) तक के थोक किये थे । आप जैसे उच्च कोटी के तपस्वी थे वैसे ही उत्कृष्ठ सेवा भावी भी थे । आप की सेवा परायणता साधुओं के सामने एक आदर्श उपस्थित करती थी पंडितरत्न मुनि श्री जवाहरलालजी महाराज का जब चित्त विक्षिप्त हो गया था तब आपने उनकी अनुकरणीय सेवा की थी । विक्षिप्त चित्त के कारण मुनि श्री जवाहरलाल जी म. ने आप को बडा कष्ट दिया था अिन्तु आपने उस समय बडी भारी सहन शीलता का परिचय दिया । पू० श्री जवाहरलाल जी महाराज जैसे सम्प्रदाय के अनेक मुनियो पर इनका महान उपकार था । पूज्य श्री घासीलालजी महाराज के आप एक महान शिक्षा गुरु और मार्गदर्शक थे । विषयावतार प्रकृत के गर्भागार में से विश्व के विशाल भूमण्डल पर प्रतिदिन अनेक व्यक्ति जन्म लेते हैं ? और मरते हैं । कौन किसको जानता है ? यों ही आये कुछ दिन रहे और भोगवासना सुख दुःख की अंधेरी गलियों में ठोकरें खा खाकर एक दिन चले गए । जिनका हंसना रोना प्रथम तो अपने तक हि सीमित रहा और यदि आगे भी बढा तो आस पास परिवार के गिने चुने लोगों तक । वे विश्व के सुख दुःख में तदाकार होकर विश्वात्मा का महतीय विराट् रुप प्राप्त न कर सके । वे जन्म के लिए जन्मते हैं और मृत्यु के लिए मरते हैं न उन का जन्म संसार के लिए उपयोगी होता हैं न उनका मरण । वे अन्धकार में से आते हैं । और अन्धकार में ही विलीन हो जाते हैं । किन्तु इसके विपरित महान पुरुषों का जन्म जीवन और मरण सूर्य की तरह होता है । जो जन्म से लेकर अस्त तक संसार को अपने दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करते हैं । यद्यपि सूर्य संसार के लिए एक महान है किन्तु आध्यात्मिक विभूतियों के जीवन उससे भी अधिक महान हैं । इन विरल विभूतियों के जीवन आकाश के सम्मान अनन्त प्रशान्त सागर से गम्भीर और हिमाचल के समान उन्नत होते हैं । उनके जीवन में दैदीप्यमान दिवाकर की दीप्ति और शरदपूर्णिमा के चन्द्रमा की निमेल क्रान्ति होती है । भौतिकवाद के चक्कर में फंसी हई दनियां के अंधकारमय वातावरण में इन विरल विभूतियों के जीवन नीले आसमान में सितारों की तरह चमका करते हैं। ये विभूतियां विश्व के लिए वरदान होती हैं। पाप के भयंकर दावानल से जलती हुई दुनियां को शान्ति प्रदान करने के लिए इनका अवनि पर जन्म होता है । सन्तों के रूप में प्रकृति संसार को सजीव और सर्वोतम वरदान देती है । वस्तुतः सन्त शान्ति के देव दूत हैं । वे दुनियां के खून से लथ पथ उजडे और सुनसान मरुस्थल में शांति की निर्मल मंदाकिनी प्रवाहित करनेवाले अक्षयस्त्रोत हैं । वे विनाश की ओर तेजीसे भागने वाली दुनियां को सावधान करनेवाले लाल प्रकाश स्तम हैं । दुनियां के विशाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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