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________________ ११७ ये स्वभावतः विरक्त तो थे ही किन्तु अब तक कुछ कारणों से दीक्षा नहीं ले सके। जबकि क्रियोद्धार के लिए यह आवश्यक था कि उपदेशक पहले स्वयं आचरण करके बताये अतः मार्गशिर्ष शुक्ला ५ सं. १५३६ को ज्ञानजी मुनि के शिष्य सोहनजी मुनि से आपने दोक्षा अंगीकार कर ली अल्प समय में ही आपके ४०० शिष्य और लाखों श्रावक अनुयायी बन गये । अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक आपने धर्म का जय घोष गुन्जा दिया । आपने आगम मान्य संयम धर्म का यथार्थ पालन किया । और इसी का उपदेश दिया । अपने जीवन काल में आपने त्याग धर्म की खूब प्रतिष्ठा बढाई । आपके बढते हुस प्रताप को कुछ इर्षा व्यक्त सह नहीं सके । जब आप अपने शिष्य परिवार के साथ दिल्ली से लौट रहे थे तब मार्ग में अलवर में मुकाम किया । उन्होंने अट्ठम तप किया था । पारणा के दिन किसी ईर्षा विरोधी अभागे विषयुक्त आहार बहरा दिया । महामुनि ने उस आहार का सेवन किया । औदारिक शरीर और वह भी जीवन की लम्बी यात्रा से थका हुआ होने के कारण उस पर विष का तात्कालिक असर होने लगा । विचक्षण पुरुष शीघ्र ही समझ गये कि उनका अन्तिमकाल समीप हैं । किन्तु वे महामानव धैर्य और समता की मूर्ति थे । उन्होंने चोरासो लाख जीवायौनि से क्षमा याचका कर संथारा ग्रहण कर लिया । विकराल काल आपकी सुकीर्ति को सहन नहीं कर सका और देखते देखते चैत्र शुक्ला एकादशी सं. १५४६ के दिन वह युगसृष्टा, महानक्रान्तिकारी धर्मनेता को हमसे छीन लिया । महातपस्वी लोकामुनि के स्वर्गवास के बाद आचार्य भानजी मुनि अत्यन्त निष्ठा पूर्वक लोकमुनि के द्वारा उपदिष्ट मार्ग का प्रचार करने लगे । उनके नेतृत्व काल में मुनिवरों ने अच्छी प्रगति की । ज्ञानी मुनि के स्वर्गवास के पश्चात् उनके पट्ट पर भानजी मुनि प्रतिष्ठित हुए । आचार्य भानजी सिरोही के निकट अरहटवाला - अटकवाडा के निवासी, जाति से पोरवाल. सं. १५३१ में अहमदाबाद में दीक्षा। लोंकागच्छ के प्रथम आचार्य । कुछ पट्टावलियों में इस का दीक्षा काल १५३३ उल्लिखित हैं । आचार्य भीदाजी आचार्य भानजी स्वामी के बाद आप उनके पट्टधर आचार्य बने । आप सिरोही के निवासी थे । ज्ञाति से ओसवाला एवं साथडिया आपका गोत्र धा । स्वर्गस्थ तोला रामजो के भाई थे । अहमदाबाद में सं. १५४० में ४५ जनों के साथ आपने भानजी स्वामी के पास दीक्षा ग्रहण की। आचार्य नूनाजी स्वामी सिरोही के ओसवाल दीक्षा सं. १५४५ या ४६ के आसपास । आचार्य भीमाजी स्वामी पाली निवासी, लौढा गोत्रीय, संयम ग्रहण १५५० आचार्य जगमालजी स्वामी उत्तराधवासी, ओसवाला सुराणागोत्रीय दीक्षा ग्रहण सं. १५५० झांझण नगर में आचार्य सरवाजी स्वामी दिल्ली निवासी श्रीश्रीमालज्ञातीय सिंधूड गोत्रीय, संयम ग्रहणकाल सं. १५५४, इन्होंने एक मास का संथारा किया था । आचार्य विजयमुनि (विजयगच्छ के संस्थापक (समय - १५६५ या १५७० ) ६८ वें आचार्य गोधाजी महाराज ६९ वें आचार्य परशुरामजी महाराज ७० वें आचार्य लोकपालजी महाराज ७१ वें आचार्य मयारामजी महाराज ७२ वें आचार्य दौलरामजी महारज Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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