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( सौराष्ट्र ) है आपके पिता का नाम कामधि और माता का नाम कलायती है। आर्य देवगिणि
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अपने युग के समर्थ आचार्य थे। आर्य स्कंदिल की वाचक परंपरा के अंतिम वाचनाचार्य और भारत के अंतिम पूर्वधर थे । आपके पश्चात् अन्य कोई पूर्वधर नहीं हुआ । आपका दूसरा नाम देववाचक भी है । नन्दी सूत्र आपके द्वारा ही संकलित एवं निर्मित है। नंदी चूर्णि में इनके गुरु का नाम दुष्यगणी बताया है तो कोई इन्हें लोहित्याचार्य के शिष्य भी मानते है। बलभी पूर (सौराष्ट्र) में वीर संवत ९८० के के आस पास एक वृहद् मुनि सम्मेलन का आयोजन हुवा और उसमें आचार्यश्री देवर्द्धि क्षमाश्रमण प्रस्तुत आगम बांचना में चतुर्थ कालकाचार्य प्रखर अभ्यासी थे और जिन्होंने वीर संवत् अस्थिति में श्रीसंघ के समक्ष कल्पसूत्र का
नेतृत्व में सर्व सम्मत पांचवीं आगमवांचना सम्पन्न हुई। विद्यमान थे, जो नागार्जुन की चतुर्थ वल्लभी वाचना के ९९६ में आनन्दपुर में बलभी वैसोय राजा अवसेन की वांचन किया। बीर सं. २००० में शत्रुंजय पर्वत पर देवर्द्धिक्षमाश्रमण का स्वर्गवास हुआ।
आचार्य देवर्द्धिक्षमाश्रमण के बाद विविध गच्छों और संप्रदायों की पट्टावलियों में अनेक आचार्यों के नाम आते हैं। इनकी कहीं भी एक रूपता दृष्टि गोचर नहीं होती तथा पट्टावलियों में आनेवाले आचार्यों के संबंध में विशिष्ट जानकारी भी उपलब्ध नहीं होती। यहां पूज्य हुकमी चन्द्रजी महाराज की पट्टावली में सुधर्मा स्वामी से देवर्द्धिक्षमाश्रमण तक एवं उनके पश्चात् के आचार्यों की नामावली इस प्रकार हैं१ आचार्यश्री
स्वामी
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सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी
प्रभव स्वामी
शय्यंभव स्वामी
यशोभद्र स्वामी
संभूतिविजय स्वामी
भद्रबाहु स्थूलिभद्र
महागिरि बलिस्सह उमास्वामी
श्यामाचार्य सोवनस्वामी
जीवंधर समेत
नंदिल नागहस्ती रेवंत सिंहगणी
स्कंदिल
हेमवंत
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वैरस्वाम
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स्कंदिल स्वामी
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२४ आचार्य
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नागजित
गोविंद
भूतदिन्न
छोहगणी
दुस्सहगणी देवर्द्धिक्षमाश्रमण
बीर भद्र
शंकर भद्र
यशो भद्र वीरसेन
वीर संग्राम
जिनसेन
हरिसेन जयसेन
जगमाल
देवऋषि
भीमऋषि कर्मऋषि
राजऋषि
देवसेन
शंकरसेन लक्ष्मीसेन
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