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________________ ११२ दिवंगत हुए । इनके चार मुख्य शिष्य थे । आर्य वनसेन आर्य पद्म, आर्यरथ' और आर्य तापस । बज्र स्वामी से वीर सं. ५८४ में वन्नीशाखा निकली । आपका जन्म वीर सं, ४९६ में, वीर सं. ५०४ में दीक्षा, वी. सं. ५४८ में आचार्यपद एवं वीर सं. ५८४ में स्वर्गवास । १७ वें पट्टधर आचार्य वनसेन __ आर्य वज्रस्वामी के पट्टधर शिष्य । आचार्थ वज्रसेन का जन्म सीर सं. ४९२, दीक्षा ५०१, आचार्यत्व ५८४, और स्वर्गवास वीर सं. ६२० में, १२९ वर्ष की आयु में हुआ । आपके नागेन्द्र चन्द्र, निर्वृत्ति और विद्याधर नामक प्रमुख शिष्यों से जो परस्पर सहोदर बन्धु थे वीर सं. ६०६ के आसपास अपने स्वयं के नाम पर चार कुलों का विस्तार हुआ। आर्य वज्रसेन के समय में भी द्वादशवर्षीय भयंकर दुष्काल पडा कथाग्रन्थ कहते हैं कि इतना भयंकर दुष्काल था कि निर्दोष भिक्षा न मिलने के कारण ७८४ साधु अनशन कर के परलोकवासी हो गये । जिनदास श्रेष्ठी ने एक लाख स्वर्णमुद्राओं में एक अंजलि अन्न खरीदा और दलिया में विष मिलाकर समस्त परिवार सहित मरने जा रहा था कि आचार्य वज्रसेन ने शीघ्र ही सुभिक्ष होने की घोषणा करके सवकी प्राण रक्षा की। अगले दिन अत्र से भरे हुए जहाज समुद्र तट पर आ लगे और जिनदार ने सब अन्न खरीदकर सर्वसाधारण में बिनामूल्य वितरण करना प्रारंभ किया। कुछ समय के पश्चात् वर्षा भी हो गई और दुर्भिक्ष के प्राणहारी संकट से देश का उद्धार हो गया । यह दयामूर्ति श्रेष्ठी अपनी समस्त सम्पत्ति जनकल्याणार्थ अर्पण कर अंत में अपने नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति और विद्याधर इन चार पुत्रों के साथ आचार्य वज्रसेन के चरणों में दीक्षित हो गया । आर्य वज्रसेन अपने समय के महान प्रभावक आचार्य थे। १८ वें पट्टधर आर्य रथ स्वामी आर्य वज्रस्वामी के द्वितीय पट्टधर आर्य रथ है। आर्य रथ वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे । ये अपने गुरुभ्राता आर्य वज्रसेन की तरह ही प्रभावशाली थे। आपका दूसरा नाम आर्य जयन्त है, इनसे जयन्ती शाखा का विकास भी हुआ था। इनके पश्चात कल्पसूत्र स्थविरावली में देवद्धिगणी तक अनेक आचार्यो के नाम पट्टधर के रूप में आते हैं परन्तु उनका विशेष्ठ परिचय नहीं मिलता। अतः कल्पस्थविरावली के आधार केवल नामोल्लेख ही किया जाता है१८ आर्य पुष्यगिरि कौशिक गौत्र १९ आर्य फल्गुमित्र गौतम गौत्र २० आर्य धनगिरि वशिष्ठ गौत्र २१ शार्य शिवभूति कुच्छस गोत्र २२ आर्व भद्र काश्यप गौत्र २३ आर्य नक्षत्र काश्यप गोत्र २४ आर्य रक्ष काश्यप गौत्र २५ आर्य नाग गोतम गौत्र २६ आर्य जेहिल वशिष्ठ गौत्र २७ आर्य विष्णु माठर गौत्र २८ आर्य कालक गोतम गौत्र २९ आर्य संपलित " ३० आर्य भट " ३१ " " " ३२ " संघपालित " हस्ती काश्यप गौत्र ३४ आर्य धर्म साक्य गौत्र ३५ ” हस्ती काश्यप गोत्र ३६ " धर्म " ३७ " सिंह " ३८ ” धर्म " " जम्बू गौतम गौत्र ४० , नन्दी काश्यप गौत्र ४१ ” देर्द्धिगणिक्षमाश्रमण माठर गोत्र ४२ ” स्थिरगुप्तक्षमाश्रमण वत्सगोत्र ४३ " आर्य कुमारधर्मगणि ,, ४४ " देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण कास्यपगोत्र आचार्य देवर्द्धि क्षमाश्रमण कास्यप गौत्र के क्षत्रिय कुमार थे । आपकी जन्म भूमि वेरावल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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