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११-१२ वें पटुधर आर्य सुस्थित और सुप्रबिद्ध ___ ये दोनों भगवान महावीर के संघ के ग्यारहवें एवं बारहवें पट्टधर आचार्य थे । आप आर्य सुहस्ती के युग प्रभावक शिष्य थे। दोनों काकन्दी नगरी के रहनेवाले, राजकुलोत्पन्न व्याघ्रापत्य गोत्रीय थे। दोनों आचार्यों ने भुवनेश्वर (उडोसा) के निकट कुमारगिरि पर्वत पर कठोर कपश्चरण किया था। आर्य सुस्थित गच्छनायक थे, तो आर्य सुप्रतिबद्ध वाचनाचार्य । हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार इनके युग में भी कुमारगिरि पर्वत पर एक लवु साधु सम्मेलन हुआ था और द्वितीय आगमवांचना का सूत्रपात हुवा । आर्य सुस्थित और सुप्रतिबद्ध अपने समय के प्रभावशाली आचार्य थे । आर्य सुस्थित ३१ वर्ष गृहस्थ दशा में १७ वर्ष सामान्यव्रत पर्याय में और ४८ वर्ष आचार्य पद में रहकर ९६ वर्ष का सर्वायु पूर्णकर वीर सं. ३३९ में कुमारगिरि पर्वत पर स्वर्गवासी हुए। १३ वें पट्टधर आय इन्द्रदिन ____ आर्य इन्द्रदिन्न कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण थे । आप आर्य सुस्थित सुप्रतिबद्ध के शिष्य थे । आप के गुरु भ्राता आर्य प्रियगन्थ महा प्रभावक मुनि हुए थे । इन्होंने हर्षपुर में होनेवाले अजमेध का निवारण कर ब्राह्मण विद्वानों को अहिंसक बनाया था । १४ वें पट्टधर दिन्न (दत्त) ___आप आचार्य इन्द्र दिन्न के शिष्य थे । आपका गोत्र गौतम था । आप के शिष्य मण्डल में दो प्रमुख मुनिराज हैं-आर्य ज्ञान्ति श्रेणिक एवं आर्य सिंहगिरी । १५ वें पट्टधर आर्य सिंहगिरि
___ आप कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण ये । आप को जाति स्मरण पूर्व जन्म का स्मरण हुआ था । आपके चार प्रमुख शिष्य हुए हैं-आर्य समित आर्य धनगिरि आर्य वज्रस्वामी और और आर्य अर्हद्दत्त । १६ वें पट्टधर आर्य वर्जस्वामी ____ गौतम गोत्री आर्य वज्र, आर्य समित के भानजे थे । आर्य समित की बहन सुनन्दा का धनगिरि से विवाह हुआ था । सुनन्दा गर्भवती थी कि धनगिरि अपने साले समिति के साथ आर्य सिंहगिरि के पास दीक्षित हो गये । सुनन्दा ने पुत्र को जन्म दिया । यही वज्र हुए । वज्र छ महिने के ही थे तब भिक्षार्थ आये धनागे रे के पात्र में सुनन्दा ने बालक को अर्पणकर दिया । वज्र को पात्र में लिए धनगिरि मुनि सिंहगिरि के पास पहुँचे । वज्र का श्रावकों के यहाँ पालन पोषण होने लगा । आपको जाति स्मरण ज्ञान भी हो गया था । दोक्षा के योग्य होने पर आर्थ सिंहगिरि ने वज्र को मुनि दीक्षा दे दी। आर्य सिंहगिरि ने इन्हें वाचनाचार्य पद से विभूषित किया । आर्य वज्र ने दशपुर में भद्रगुप्त के पास दशपूर्व का अध्ययन किया । वज्रस्वामी अन्तिम दशपूर्व धर थे । अवन्ती में जुभंग देवों ने आहार शुद्धि के लिये परिक्षा ली। वन खरे उतरे। पाटलीपुत्र के धनकुबेर धनदेव की पुत्री रुक्मिणी आपके रूप सौंदर्य से मुग्ध होकर आप से विवाह करना चाहती थी। धनदेव श्रेष्ठी करोडों की सम्पत्ति के साथ पुत्री भी देना चाहता था किन्तु बज्रस्वाभी ने इसका त्याग कर रुक्मिणी को साध्वी बनाया। एक बार उत्तर भारत में भयंकर दुर्भिक्ष पडा । ता आप अपने मुनिगण को आकाशमिनो विद्या के बल से कलिंग प्रदेश में ले गये । ___उत्तर भारत में वी. संवत ५८० में भयंकर दुष्काल पडा । उस समय आपने प्रमुख शिष्य वज्रसेन को साधु संघ के साथ सुभिक्ष प्रधान सोपारक एवं कोंकण देश में भेज दिवा । और साथ में यह भी भविष्यवाणी की कि एक लाख स्वर्ण मुद्रा के विष मिश्रित चावल जिस दिन आहार में तुम्हें मिलेगा उसके दुसरे ही दिन मुभिक्ष हो जायगा । स्वयं आपने साधु समूह के साथ रथावर्त पर्वत पर अनशन कर
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