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________________ १०३ देश के गोबर नामक गांव में वि. सं. पूर्व ५५१ में हुआ था । गौतम गौत्रीय वसूभूति ब्राह्मण आपके पिता थे । माता का नाम पृथ्वीदेवी था । आपने अपनी अलौकिक प्रतिभा और बुद्धि के कारण अल्पकाल में ही चौदह विद्याएँ सीख ली । अपनी प्रतिभा और विद्वत्ता के कारण सारे मगध में सम्मानीय स्थान प्राप्त किया था । आप अपने युग के समर्थ वेदाभ्यासी विद्वान थे । आपके पास ५०० छात्र अध्ययन करते थे । ____ उस समय मध्यमा पावापुरी में सोमिल नाम के एक धनाढ्य ब्राह्मण ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया । उसमें दूर-दूर के विद्वान ब्राह्मणों को यज्ञ में सम्मिलित होने का निमंत्रण पाकर हजारों की संख्या में ब्राह्मण यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए पावा पुरी में आए । उनमें ग्यारह विद्वान-इन्द्रभृति अग्निमूति, वायुमूति । व्यक्तभूति सुधर्माजी मंडि कपुत्र मौर्यपुत्र अकम्पिक, अचलभ्राता, मेतार्य एवं प्रभास विशेष प्रतिष्ठित थे। भगावान महावीर का उस समय पावा पुरी में समवशरण हुआ । महावीर की महिमा से प्रभावित हो कर यें महावीर भगवान के समवशरण में अपने अपने छात्रों के साथ पहूँचे । महावीर के साथ शास्त्रार्थ किया और अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्तकर अपने अपने छात्रों के साथ दीक्षा ग्रहण की उस समय इन्द्रभूति की अवस्था ५० वर्ष की थी। तीस वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में रहने के बाद आपको केवल ज्ञान उप्तन्न हुआ । बारह वर्ष तक केवली पर्यायमें रहने के बाद वाणु वर्ष की अवस्था में एक मासका अनशनकर उन्होंने राजगृह नगर में निर्वाण प्राप्त किया । आपके केवलज्ञान के बाद सुधर्मा स्वामी द्वितीय पट्टधर बने । २ श्रीसुधर्मास्वामी श्रीगौतमस्वामी के केवलज्ञानी बनने के बाद समग्र संघ के आप अधिनायक बने । ये कोल्लाग सन्निवेश के निसासी अग्निवेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनका जन्म वि.सं. ५५१ था । आपकी माता का नाम भद्दिला और पिता का नाम धम्मिल था । ओप अपने युग के समर्थ विद्वान थे । आपके पास ५०० छात्र अध्ययन करते थे । ये सोमिल ब्राह्मण के आमंत्रण से उनके यज्ञोत्सव में सम्मिलित होने के लिए पावा मध्यमा गये थे । वहां भगवान महावीर से शास्त्रार्थ कर आप अपने पांचसौ छात्रों के साथ प्रव्रजित हो गये । उस समय आपकी आयु ५० वर्ष की थी। वीर सं. १३ में अर्थात् अपनी आयु के ९३ वें वर्ष में कैवलज्ञान प्राप्त किया । वीर सं. २० में सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर राजगृह नगर के वैभारगिरि पर मासिक अनशन पूर्वक मुक्त हुए । आप आगम साहित्य के पुरस्कर्ता थे । ३ श्रीजम्बूस्वामी श्रीभगवान महावीर की शासन परम्परा के द्वितीय पट्टधर जम्बूस्वामी बडे प्रभाविक महापुरुष हुए हैं । वीर सं. १६ में सोलह राजगृह के धनाढ्य श्रेष्ठी ऋषभदत्त के घर आपका जन्म हुआ था। आप की माता का नाम धारिणी था । जम्बू अपने माता पिता के इकलोते पुत्र थे । वे बाल्यकाल को पार कर युवा अवस्था प्राप्त हुए । उनका विवाह इम्य सेठकी आठ कन्याओं के साथ होना तय हुआ । उस समय सुधर्मास्वामी अपने शिष्य परिवार के साथ राजगृह पधारे जम्ब् कुमार उपदेश सुनने श्रीसुधर्मा स्वामी के पास पहुँचे । सुघर्मास्वामी को वैराग्यपूर्ण वाणी सुनकर उसने दीक्षा लेने का निश्चय किया । घर आकर उन्हाने माता पिता से दक्षिा की आज्ञा मांगो । माता पिता ने इकलौता सन्तान अपार धन राशि होने से एवं पुत्र स्नेहवश उसे आज्ञा नहीं दो, किन्तु आठ सुन्दर कन्याओं के साथ पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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