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________________ ९९ स्वीकार किया साथ ही अनेक पार्थापत्य श्रमणोंपासको ने भी आपके पास प्रव्रज्या ग्रहण की । इस वर्ष भगवान ने वर्षावास राजगृह में ही किया । २३ वाँ वर्षावास वर्षाकाल पूरा होनेपर भगवान विहार करते हुए क्रमशः कृतंगला नगरी पधारे और छत्रपलास चैत्य में विराजे । यहाँ श्रावस्तो के विद्वान परिव्राजक कात्यायन गोत्री स्कन्धक, भगवान के पास आया और अपनी शंकाओं का समाधान पाकर भगवान के पास प्रव्रजित होगया । भगवान श्रावस्ती से विदेह भूमि की तरफ पधारे और वाणिज्य ग्राम में जाकर वर्षाकाल व्यतीत किया । २४ वाँ चातुर्मास वर्ष ___ वर्षाकाल पूरा होनेपर भगवान वाणिज्य ग्राम से ब्राह्मण कुण्ड के बहुसाल चैत्य में पधारे । यहाँ जमाली अपने पांचसौ साधुओं के साथ भगवान से अलग होगया और उसने अन्यत्र विहार कर दिया । ब्राह्मण कुण्ड' ग्राम से भगवान कौशांबी पधारे, यहाँ सूर्य चन्द्रने पृथ्वी पर उत्तर कर भगवान के दर्शन किये । यहाँ से विहार कर काशी राष्ट्में से होकर भगवान राजगृह के गुणशील उद्यान में पधारे इस वर्ष में भगवान के शिष्य वेहास अभय आदि अनगारों ने विपुल पर्वत पर अनशनकर देवपद प्राप्त किया । २५ वाँ वर्षावास ___भगवान ने इस वर्षका चातुर्मास राजगृह बीता कर चंपा की ओर विहार कर दिया । मगधपति श्रेणिक की मृत्यु के बाद कोणिक ने चम्पा को अपनी राजधानी बनाइ थी । इस कारण मगध का सर्व राजकुटुम्ब चम्पा में ही रहता था । भगवान निर्ग्रन्थ प्रवचन का प्रचार करते हुए चंपा पधारे और पूर्णभद्र उद्यान में ठहरे । भगवान के आगमन का समाचार सुनकर कोणिक बडे राजसी ठाट से भगवान के दर्शन के लिए गया । चंपा के नागरिक भी विशाल संख्या में भगवान के पास गये और भगवान की वाणी सुनी । कइयोंने सम्यक्त्व ग्रहण किया कइयोंने श्रावक व्रत लिये और कई मुनि बने । मुनिधर्म अंगीकार करने वालों में पद्म महापद्म, भद्र सुभद्र पद्मभद्र पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनीगुल्म, आनन्द और नन्द मुख्य थे । ये सभी श्रेणिक के पौत्र थे । जिनपालित आदि धनपतियों ने भी श्रावक धर्म स्वीकार किया । चम्पासे विहार कर प्रभु काकन्दी पधारे। यहाँ क्षेमक, धतिधर आदि ने श्रमण धर्म स्वीकार किया। इसवर्ष का चातुर्मास आपने मिथिला में बिताया । चातुर्मास समाप्ति के बाद आपने अंग देश की ओर विहार किया । इन दिनों विदेह की राजधानी वैशाली रणभूमि बनी हुई थी। एक ओर मगधपति कोणिक और उनके काल आदि सौतेले भाई अपनी अपनी सेना के साथ लड रहे थे, दुसरी और वैशाली पति चेटक राजा और काशी कोशल देश के अठारह गणराजा अपनी अपनी सेना के साथ कोणिक राजा का सामना कर रहे थे । इस युद्ध में कोणिक राजा विजयी हुआ । काल आदि दस कुमार चेटक राजा के हाथों मारे गये । भगवान पुनः चम्पा पधारे । अपने पुत्र के मृत्यु के समाचारों से काली आदि रानियों ने भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की । कुछ समय तक चम्पा में बिराजकर भागवान पुनः मिथिला पधारे । आपने इस वर्ष का चातुर्मास मिथिला में ही बिताया । चातुर्मास समाप्ति के बाद भगवान श्रावस्ती पधारे । यहाँ कोणिक के भाई वेहास (हल्ल) वेहल्ल जिनके निमित्त वैशाली में युद्ध हो रहा था किसी तरह भगवान के पास पहँचे और दीक्षा लेकर भगवान के शिष्य बन गये । भगवान विचरते हुए श्रावस्ती पहँचे और श्रावस्ती के ईशान कोण स्थित कोष्ठक उद्यान में ठहरे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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