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________________ मार, मयाली उववालि, पुरूषणेन वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्टदंत गूढदंत, शुद्धदंत, हल्लः द्रुम, द्रुमसेन महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन, पूर्णसेन इन श्रेणिक के तेइस पुत्रों ने और नंदा नन्दमती, नन्दोत्तरा नन्दसेणिया महया सुमरुता, महामरूता, मरुदेवी भद्रा सुभद्रा सुजाता, सुमणा और भूतदिन्ना आदि श्रेणिक की १३ रानियों ने भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की । उस समय भगवान श्रीमहावीर प्रभु के दर्शन के लिये मुनि आर्द्रक गुणशील उद्यान में जा रहे थे । मार्ग में उन्हें गोशालक बौद्ध भिक्षु हस्तितापस आदि अनेक अन्य तीर्थिक मिले । आद्रक ने उन्हें वाद में पराजित किया । वाद में पराजित कुछ हस्तितापसो स्वप्रति बोधित पांच सौ चोरों के साथ आर्द्रक मुनि भगवान से आ मिला । भगवान उन सब को प्रजित किया । इस वर्ष भी भगवान ने वर्षांवास राजगृह में ही बिताया । २०वां चातुर्मास वर्षांकाल पूरा होने पर भगवान ने कोशांबी की ओर विहार किया । मार्ग में आलं भिया नगरी पडती थी । भगवान कुछ काल तक आलंभिया में हो बिराजे । यहां ऋषिभद्र प्रमुख श्रमणोपासक रहते थे । उन्होंने भगवान से प्रश्न पूछे और योग्य समाधान पाकर बडे प्रसन्न हुए । आलंभिया से विहार कर भगवान कोशांबो पधारे । उम समय चण्डप्रद्योतन जो उज्जैनी का राजा था। उसने कोशांबी को घेर लिया था । कोशांबी पर शासन महारानी मृगावती करती थी । उनका पुत्र उदायन नाबालिक था । चण्डप्रद्योतन मृगावती को अपनी रानी बनाना चाहता था । भगवान महावीर के आगमन से मृगावती को बड़ी प्रसन्नता हुई। वह भगवान श्री महावीर के समवशरण में पहुंची। उस समय चण्डप्रद्योतन भी भगवान की सेवा में उपस्थित था । महारानी मृगावती ने आत्म कल्याण का सुन्दर अवसर जानकर सभा के बीच खडी होकर बोली भगवन ! मैं चण्डप्रद्योतन की आज्ञा लेकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूँ। इसके बाद अपने पुत्र उदयन को चण्डप्रद्योतन के संरक्षण में छोडते हुए उससे दीक्षा की आज्ञा मांगी । यद्यपि चण्डप्रद्योतन की इच्छा मृगावती को स्वीकृति देने की नहीं थी पर उस महती सभा में लज्जावस इनकार नहीं कर सका । उस समय अंगारवती आदि चण्डप्रद्योतन की आठ रानियो ने भी दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी । चण्डप्रद्योतन ने उन्हें भी आज्ञा दे दी । भगवान महावीर ने मृगावती अंगारवती आदि रानियों को दीक्षा देकर उन्हें आर्यां चन्दना को सौंप दी । भगवान कोशांबी से विहार कर विदेह को राजधानो वैशाली में पदार्पण किया । आपने यहां चातुर्मास व्यतीत किया । २१ वाँ वर्षावास वर्षांवास पूरा होने पर भगवान ने वैशाली से उत्तर विदेह की ओर विहार किया और मिथिला होते हुए काकन्दी पधारे । काकंदी में धन्य कुमार सुनक्षत्र, कुमार आदि राज कुमारों को दीक्षा दी । काकन्दी से भगवान ने पश्चिम की ओर विहार किया और श्रावस्ती होते हुए काम्पिल्यपूर पधारे काम्पिल्यपूर निवासी कुण्डकोलिक गृहपति को श्रमणोपासक बनाकर अहिच्छत्रा नगरी होते हुए गजपुर पहुंचे यहाँ अनेक व्यक्तियों को प्रतिबोधित कर आप पोलासपुर पधारे । पोलासपुर के अता धनाढ्यच कुम्भकार सग्डालपुत्र जो गोशालक मतानुयाई था उसकी शाला में बीराजे । भगवान श्री महावीर का उपदेश सुनकर सद्दाल पुत्र के आजीविक संप्रदाय का परित्याग का समाचार मिला तो वह अपने संघ के साथ सग्डालपुत्र के पास आया और उसे पुनः आजीविक बनने के लिये समझाने लगा । गोशालक की बातों का सग्डालपुत्र पर जरा भी असर नहीं पडा । गोशालक निराश होकर चला गया । भगवान ने इस वर्ष का चातुर्मास वाणिज्य ग्राम में व्यतीत किया । . २२ वाँ चातुर्मास - वर्षाकाल बीतने पर भगवान राजगृह पधारे यहाँ महाशतक नाम का गाथा पति ने श्रावक धर्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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