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का पौत्र तथा राजा शतानीक का पुत्र और वैशाली के सम्राट चेटक का दोहिता होता था । वह अभी नागलिक था । अतः राज्य का प्रबन्ध उसकी माता महारानी मृगावती देवी प्रधानों की सलाह से करती थी । यहाँ जयन्ती नाम की प्रसिद्ध श्राविका रहती थी । वह भगवान महावीर का आगमन सुनकर महाराजउदयन, श्रावका जयन्ती, महारानी मृगावती, तथा नगरी के अनेक नागरीकां ने भगवान के दर्शन किये
और उपदेश श्रवण किया । जयन्ती श्राविका ने भगवान से अनेक प्रश्न किये और उनका समाधान पाकर उसने आयें चन्दना के समीप दीक्षा ग्रहण की । भगवान ने वहाँ से श्रमण गण के साथ श्रावस्तो को ओर विहार किया । श्रावस्ती पहुंचकर आप कोष्ठक उद्यान में ठहरे । यहां अनगार सुमनोभद्र और सुप्रतिष्ठित आदि की दीक्षाएँ हुई ।
कोशल प्रदेश से विहार करते हुए श्रमण भगवान श्रीमहावीर विदेह भूमि में पधारे । यहाँ वाणिज्य ग्राम निवासी गाथापति आनन्द ने एवं उनको पत्नी शिवानन्दा ने श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये । इस वर्ष का चातुर्मास आपने वाणिज्यग्राम में व्यतीत किया । १६ वां चातुर्मास ____ वाणिज्य ग्राम का चातुर्मास पूर्ण कर भगवान ने मुनिवरों के साथ मगध भूमि में प्रवेश किया । अनेक ग्राम नगरों को पावन करते हुए आप राजगृह के गुणशील उद्यान में पधारे । यहाँ के सम्राट राजा श्रेणिक सदल बल से भगवान के दर्शन किये । राजगृह के प्रसिद्ध धनपति शालिभद्र ने तथा धन्य कुमार आदि ने भगवान से प्रवज्या ग्रहण की । ___इस वर्ष का चातुर्मास भगवान राजगृह में बिताया । १७ वां चातुर्मास
राजगृह से विहार कर भगवान चपा पधारे । चंपा के राजा दत्त और उसको रानी रक्तवती के पुत्र महचंद कुमार ने आपके उपदेश से दीक्षा ग्रहण की । चंपा से आप विकट मार्ग को पार करते हुए सिन्धु सोवीर की राजधानी वीतभय पधारे । वीतभय का राजा उदायन श्रमणोपासक था । भगवान श्रीमहावीर के दर्शन कर वह बडा प्रसन्न हुआ । कुछ काल वहाँ विराजकर भगवान वाणिज्य ग्राम पधारे । और आपने मुनिवरों के साथ यहीं चातुर्मास पूरा किया। चातुर्मास को समाप्ति के बाद आपने काशी देश की राजधानी बाणारसी की ओर विहार कर दिया । अनेक स्थानों पर निग्रन्थ प्रवचन का प्रचार करते हुए आप बाणारसी पहुँचे और वहाँ कोष्ठक नामक उद्यान में ठहरे । यहाँ के करोडपति गृहस्थ चुलनीपिता और उसकी स्त्री श्यामा तथा सुरादेव और उसकी स्त्री धन्या ने भगवान से श्रावक व्रत ग्रहण किये । और निग्रन्थ प्रवचन के आधार स्तंभ वने । ____बाणारसी से आपने पुनः राजगृह की ओर विहार किया। मार्ग में आलंभिया नगरी आई । भगवान मुनिवरो के साथ आलंभिया के शंखवन उद्यान में ठहरे । यहाँ के हजारों स्त्री पुरुषों ने भगवान का प्रवचन सुना । आलंभिया के प्रसिद्ध धनिक गृहपति चुल्लशतक और उसकी स्त्री बहुला ने श्रावक धर्म स्वीकार किया । यहाँ पोग्गल नाम का एक विभंग ज्ञानी परिव्राजक रहता था उसने भगवान का प्रवचन सुनकर आहती दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा लेकर ग्गारह अंग पढे और कठोर तप करके अन्त में निर्वाण को प्राप्त हुआ ।
आलंभिया से भगवान राजगृह पधारे ओर गुणशील उद्यान में ठहरे । यहां के प्रसिद्ध धनिक मंकाती किंकिम अजन और काश्यप ने निर्ग्रन्थ प्रवचन को सुनकर आप से दीक्षा ग्रहण की ।
भगवान का यह चातुर्मास राजगृह में व्यतीत हुआ । १९वां चातुर्मास--
चातुर्मास के बाद भी भगवान राजगृह में ही धर्म प्रचारार्थ ठहरे । इस सतत प्रचार का आशातोत लाभ हुआ। राजगृह के अनेक प्रतिष्ठित नागरिकोंने भगवान से श्रमणधर्म स्वीकार किया जैसे जालिकु
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