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________________ ९६ का उपदेश श्रवण किया और आपके उपदेश से प्रभावित हो राजकुमार मेघ कुमार, नन्दिषेण आदि अनेक स्त्री पुरुषोंने आप के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। भगवान ने अपना १३वां चातुर्मास यही व्यतीत किया वर्षावास समाप्त होने के बाद, अपने परिवार के साथ ग्रामानुग्राम में बिहार करते हुए भगवान महावीर ने विदेह की ओर प्रस्थान किया और ब्राह्मणकुण्डग्राम पहुँचे । इसके निकट ही बहुशाल उद्यान था । भगवान अपनी परिषदा के साथ इसी बहुशाल उद्यान में ठहरे । भगवान महावीर के आगमन का समाचार नगरनिवासियों को मिला तो वे बड़ी संख्या में भगवान का उपदेश सुनने उद्यान में गए। भगवान ने उन सब को उपदेश दिया । ऋषभदत्त तथा देवानन्दा की दीक्षा ब्राह्मणकुण्ड ग्राम के मुखिया का नाम ऋषभदत्त था । यह कोडाल गोत्रीय प्रतिष्ठित ब्राह्मण था । इसकी पत्नी देवानन्दा जालंधर गोत्रीय ब्राह्मणी थी । ऋषभदत्त और देवानन्दा ब्राह्मण होते हुए भी जीव अजीव पुण्य पाप आदि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक थे । बहुसाल में भगवान का आवागमन सुनकर ऋषभदत्त बडा प्रसन्न हुआ । वह देवानन्दा को साथ में लेकर, धार्मिक रथ पर आरूढ हो बहुसाल उद्यान में पहुँचा । विधि पूर्वक सभा में जाकर वन्दन नमस्कार कर भगवान का उपदेश सुनने लगा । देवानन्दा भगवान को अनिमेष दृष्टि से देखने लगी । उसका पुत्र स्नेह उमड पडा । स्तनों में से दूध की धारा बह निकली । उसकी कंचुकी भीग गई । उसका सारा शरीर पुलकित हो उठा । देवानन्दा के इन शारीरिक भावों को देखकर गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया भगवन् ! आप के दर्शन से देवानन्दा का शरीर पुलकित क्यों हो गया ? इनके नेत्रों में इस प्रकार की प्रफुल्लता कैसे आ गई ? और इनके स्तनों से दुग्धस्राव क्यों होने लगा ? भगवान ने उत्तर दिया गौतम ! देवानन्दा मेरी माता हैं, और मैं इनका पुत्र हूँ। देवानन्दा के शरीर में जो भाव प्रकट हुए उनका कारण पुत्र स्नेह है । उसके बाद भगवान ने महती सभा के बीच अपने माता देवानन्दा को एवं पिता ऋषभदत्त को उपदेश दिया । भगवान का उपदेश सुनकर दोनों को वैराग्य उत्पन्न हो गया । परिशद् के चले जाने पर ऋषभदत्त उठा और भगवान को वन्दन कर बोला भगवन् ! आपका कथन सत्य है । मैं आपके पास प्रव्रज्या लेना चाहता हूं। आप मुझे स्वीकार कीजिए। उसके वाद ऋषभदत्त ने गृहस्थ वेश का परित्यागकर सुनि वेश पहन लिया और भगवान के समीप सर्व विरति रूप प्रवज्या ग्रहण कर ली । माता देवानन्दा ने भी अपने पति का अनुसरण किया । उसने आर्या चन्दना के पास दीक्षा ग्रहण कर ली भगवान के पास प्रव्रज्या लेने के बाद ऋषभदत्त अनगार ने स्थाविरों के पास सामायिकादि एकादश अंगों का अध्ययन किया और कठोर तप कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। देवानन्दा को भी केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया । इन दोनों ने अन्तिम समय में एक मास का अनशन कर निर्वाण पद प्राप्त किया । भगवान महावीर की पुत्री सुदर्शना ने भी जो जमाली से व्याही थी इसी वर्ष एक हजार स्त्रियों के साथ आर्या चन्दना के पास दीक्षा ग्रहण की । भगवान ने अपना १४ वाँ चातुर्मास वैशाली महानगर में व्यतीत किया । १५व चातुर्मास चातुर्मास समाप्त होने पर भगवान ने वैशाली से वत्सभूमि की ओर विहार किया। मार्ग में अनेक ग्राम नगरों को पावन करते हुए वे कोशाम्बी पहुंचे और नगर के बाहर चन्द्रावतरण उद्यान में ठहरे । कोशाम्बी के तत्कालीन राजा का नाम उदयन था । उदयन बत्सदेश के प्रसिद्ध राजा सहस्रानीक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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