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कलंबुआ के अधिकारी मेघ और काल हस्ती जमीदार होते हुए भी आसपास के गाँवों में डाका डालते थे । जिस समय भगवान वहां पहुंचे काल हस्ती डाकुओं के साथ डाका डालने जा रहा था । इन दोनों को देखकर डाकुओंने पूछा-तुम कोन हो ?” इन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया । कालहस्ती ने विशेष शंकित होकर भगवान को पिटवाया और प्रत्युत्तर न मिलने से बन्धवाकर मेघ के पास भेज दिया।
मेघ ने महावीर को गृहस्थाश्रम में एक बार क्षत्रियकुण्ड में देखा था । उसने महावीर को देखते ही पहिचान लिया और तुरंत मुक्त करवा कर बोला-भगवान् ! क्षमा कीजिये ! आपको न पहिचानने से यह अपराध होगया है । ऐसा कहकर उसने भगवान का बहुमान किया और उन्हें विदा किया ।
अभी बहुत कर्म भगवान को क्षय करना बाकी है। और अनार्य देश में कर्म निज्झरा के सहायक अधिक मिलेंगे । यह सोचकर भगवान ने राढ भूमि की और विहार कर दिया । यहाँ पर अनार्य लोगों की अवहेलना निंदा, तर्जना और ताड़ना आदि अनेक उपसर्गो को सहते हुए आपने बहुत से कर्मो की निझरा कर डाली । भगवान राढ़भूमि की तरफ से लौट रहे थे उसके सीमा प्रदेश के पूर्णकलश नामक अनार्य गाँव से निकलकर आप आर्य देश सीमा में आ रहे थे । रास्ते में चोर मिले उन्होंने भगवान के दर्शन को अपशकुन मान कर उन पर आक्रमणकर दिया । इन्द्रने तत्काल उपस्थित होकर चोरों के आक्रमण को निष्फल कर दिया ।
आपने आर्य देश में पहुँच कर मलयदेश की राजधानी भद्दिल नगरी में पांचवाँ चातुर्मास व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्ति पर भगवान ने भद्दिल नगर के बाहर पारणा किया और वहाँ से चलकर आप कवलि समागम पधारे !
भगवान कयलि समागम से अम्बूसंड और तंबाय सन्निवेश गये । तंबाय सन्निवेश में नन्दिषेण पापित्य से गोशालक की तकरार हुई । तंबाय सन्निवेश से भगवान कूपिय सन्निवेश गये । यहाँ पर
आपको गुप्त चर समझकर राजपुरुषों ने पकडा और पीटा और कैद करलिया । निजया और प्रगलभा नामकी एक परिव्राजिका को जब इस बात का पता चला तो वह तत्काल राजपुरुषों के पास पहुंची और उन्हें भगवान महावीर का परिचय दिया । भगवान महावीर का वास्तविक परिचय जब राज पुरूषों को मिला तो उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की । और भगवान को वन्दन कर उन्हें विदा किया ।
कुपित सन्निवेश से भगवान ने वैशाली की और विहार किया । गोशालक ने इस समय आपके साथ चलने से इन्कार कर दिया । उसने कहा आपके साथ रहते हुए मुझे बहुत कष्ट उठाना पडता है, परन्तु आप कुछ भी सहायता नहीं देते । इसलिये मैं आपके साथ नहीं चलूगा । भगवान ने कुछ नहीं कहा । भगवान क्रमशः वैशाली पहुंचे ओर लोहे के कारखाने में ठहरे । यहाँ एक लोहार भगवान के दर्शन को अमंगल मानकर हथौडा लेकर उन्हें मारने के लिये दौडा । परन्तु उसके हाथ पांव वही स्तंभित हो गये ।
वैशाली से आप ग्रामाक सन्निवेश पधारे । वहाँ बिभेलक यक्ष ने आपकी खूब महिमा की । ग्रामाक से शालिशीर्ष पधारे । यहाँ कटपूतना नामकी व्यंतरी ने आपको बडा कष्ट दिया । अन्त में वह भगवान की प्रशंशक वनी ।
शालीषीर्ष से विहार कर भद्दिया नगरी पधारे और छठा चातुर्मास आपने भद्दिया में ही व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्ति के बाद चातुर्मासिक तप का पारणा नगरी के बारह किया । वहाँ से आपने मगध देश की ओर विहार कर दिया ।
सातवां चातुर्मास आपने मगध देश की नगरी आलंभिया में व्यतीत किया । चातुर्मास समाप्ति कर
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