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________________ ८७ विचलित नहीं कर सका । अन्त में कई क्रूर प्राणिकों के रूप बना बना कर भगवान को कष्ट दिया लेकिन भगवान के मन को वह क्षुब्ध नही कर सका । अंत में वह भगवान की दृढता एवं अपूर्व क्षमता के सामने हार गया । वह शांत होकर क्षमाशील भगवान के चरणों में गिर पडा और अपनी क्रूरता के लिये भगवान से क्षमा याचना करने लगा भगवान के प्रभाव से शूलपानी यक्ष की क्रूरता जाती रही और वह सदा के लिये दयावान बन गया । ३ - चित्र कोकिल उस दिन भगवान ने पिछली रात में एक मुहूर्त भर निद्रा ली जिसमें उन्होंने निम्न दस स्वप्न देखे - १-अपने हाथ से ताल पिशाच को मारना २ – अपनी सेवा करता हुआ श्वेत पक्षी को अपनी सेवा करते हुए ४ – सुगन्धित दो पुष्पमालाएँ ५ - सेवा में उपस्थित गोवर्ग ६ - पुष्पित - कमलोवाला पद्मसरोवर ७-समुद्र को अपनी भुजा से पार करना ८ - उदीयमान सूर्य की किरणों का फैलना ९- अपनी आतों से मानुष्योत्तर पर्वत को लपेटना १०- मेरु पर्वत पर चढना । रात्री को शूलपानी का अट्टास सुनकर गाँव के लोगों ने यह अनुमान कर लिया था कि शूलपानी यक्षने भगवान को मार डाला है। और गीत गान करते हुए सुना तब समझा कि यह पक्ष महावीर की मृत्यु की खुशी में अब आनन्द मना रहा है ॥ अस्थिक गांव में उत्पल नामका एक निमित्त वेत्ता रहता था। वह किसी समय पार्श्वनाथकी परम्परा का साधु था । बाद में गृहस्थ होकर निमत्त ज्योतिष से अपनी आजीविका चलाता था । उत्पलने जब सुनाकि शूलपानी यक्ष के देवालय में भगवान महावीर ठहरे हैं तो उसे बडी चिन्ता हुई और अशुभ कल्पनाओं में सारी रात बीताकर सबेरे ही इन्द्रशर्मा पूजारी एवं अन्य ग्रामवालों के साथ शूलपानि यक्ष के मन्दिर में पहुंचा। वहाँ पहुचते ही उत्पलने देखाकि महावीर के चरणों में पुष्प गन्धादि द्रव्य चढे हुए हैं । यह दृश्य देख ग्रामवासी और उत्पल नैमित्तिक के आनन्द की सीमा न रही। वे भगवान के चरणो में गिर पड़े और भगवान के गुणगान गाने लगे। उन्होंने भगवान से कहा भगवन् ! आपने यक्ष की क्रूरता मिटाकर ग्राम निवासियों पर महान् उपकार किया है । सचमुच आप धन्य है । उत्पल हर्षावेश में बिना कहे ही भगवान के दस स्वनों का फल बताते हुए कहने लगा- १. आप मोहनीय कर्म का अन्त करेंगे । २. शुक्लध्यान में आप सदा रहेंगे । ३. आप द्वादशाङ्गी का उपदेश देंगे । ४. चतुर्विध संघ आपकी सेवा करेगा । ५. संसार समुद्र को आप पार करेंगे । ६. अल्प समय में ही केवलज्ञान होगा। ७. तीन लोक में आपका यश फैलेगा । ८. समवशरण में विराज कर आप देशना देंगे । ९. समस्त देवदेवेन्द्र आपकी सेवा करेंगे । १०. आपने दो पुष्प की माला देखी है लेकिन उसका फल मै नहीं जानता । अपने इस स्वप्न का फल खुद भगवान ने बतलाते कहा—-उत्पल ! इस स्वप्न का फल यह है कि मैं साधु और गृहस्थ ऐसे दो धर्म की प्ररूपणा करूंगा । हुए यह प्रथम वर्षावास भगवान ने १५-१५ उपवास की आठ तपस्याओं से पूर्ण किया। मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को भगवान ने अस्थिक गांव से विहार कर दिया । भगवान मोराक सन्निवेश पधारे । वहाँ वहाँ अच्छेदक नामका एक पाखण्डी रहता था । वह ज्योतिष मंत्र तंत्रादि से अपनी आजीविका चलता था । उसका सारे गांव में अच्छा प्रभाव था । उसके प्रभाव को सिद्धार्थ व्यन्तर सह नही सका । इससे प्रभु की पूजा कराने के विचार से उसने गांव वालों कों चमत्कार दिखाया इससे लोग अच्छेदक की उपेक्षा करने लगे । अपनी महत्ता घटते देख वह भगवान के पास आया और प्राथना करने लगा देव आप अन्यत्र चले जाईए कारण आप के यहां रहने से मेरी आजिविका हो नष्ट हो जायेगी और मैं दुखी हो जाउंगा ऐसी परिस्थिति में भगवान ने वहाँ रहना उचित नहीं समझा और वहां से विहार कर दिजा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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