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________________ 1.4.3 प्रबन्धन की आधुनिक अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ आधुनिक युग में प्रबन्धन के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों ने काल-क्रम से अपनी-अपनी अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं। यद्यपि ये अवधारणाएँ मूलतः भौतिक और विशेष रूप से व्यावसायिक क्षेत्र तक ही सीमित रही हैं और इनमें जीवन के समग्र पहलुओं का समावेश नहीं हो सका है, फिर भी ये किस हद तक जीवन-प्रबन्धन के लिए उपयोगी हो सकती हैं, इसकी चर्चा करने का प्रयत्न भी यहाँ किया गया है, जो इस प्रकार है - (1) हर्बीसन एवं मेयर्स की औद्योगिक अवधारणा - प्रसिद्ध विद्वान् हर्बीसन और मेयर्स के अनुसार, 'प्रबन्धन' उत्पादन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन (Factor) है। यह उत्पादन के मानवीय और गैर-मानवीय घटकों – भूमि (Land), श्रमिक (Labourer), उद्यमी (Entrepreneur), पूंजी (Capital) और मशीन व माल (Machines & Materials) में समन्वय स्थापित करता है, जिससे इन घटकों की कार्यकुशलता और लाभदायकता में वृद्धि होती है।'' यदि इस अवधारणा को औद्योगिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा जाए, तो यह जीवन-प्रबन्धन के लिए भी किसी अपेक्षा से उपयोगी बन सकती है। जीवन-प्रबन्धन का आशय भी जीवन में प्राप्त होने वाले मानव और गैरमानव संसाधनों का उचित समन्वय करना ही है, जिससे जीवन-लक्ष्य की सिद्धि हो सके। (2) फ्रेडरिक डब्ल्यू. टेलर की वैज्ञानिक अवधारणा - इन्हें वैज्ञानिक-विधि पर आधारित प्रबन्धन का जनक भी कहा जाता है। इनके अनुसार, “प्रबन्धन यह जानने की कला है कि क्या करना है और उसे करने का सर्वोत्तम एवं सुलभ तरीका क्या है।"120 इस अवधारणा का आशय यह है कि किसी भी कार्य को करने में अस्पष्टता, अनिश्चितता एवं अनभिज्ञता नहीं रहनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, 'Rule of the Thumb' सिद्धान्त पर आधारित कार्यशैली नहीं होनी चाहिए, बल्कि कार्य को सर्वमान्य, सुनिश्चित एवं सुस्पष्ट सिद्धान्तों एवं प्रयोगों पर आधारित बनाना चाहिए। प्रबन्धन के अन्तर्गत वैज्ञानिक-विधि से अनुसंधान करने एवं नियमों का सम्पादन करने के लिए अवलोकन एवं निरीक्षण (Observation), माप (Measurement), प्रयोग (Experimentation), विश्लेषण (Analysis), युक्ति (Rationality) एवं तर्क (Reasoning) – इन छः साधनों का उपयोग करना चाहिए। जैनदर्शन में भी उपर्युक्त वैज्ञानिक शैली पर आधारित प्रबन्धन-प्रणाली दिखाई देती है। इसमें साधक को सम्यक् लक्ष्य एवं सम्यक् मार्ग के निर्धारण का निर्देश दिया गया है। नियमसार के प्रारम्भ में ही कहा गया है कि जिनशासन में केवल मार्ग और मार्ग के फल (लक्ष्य) का उपदेश दिया जाता है।121 अन्यत्र भी, जैनदर्शन में द्रव्य-विज्ञान, कर्म-विज्ञान, गुणस्थान, मार्गणास्थान, जीवसमास आदि सिद्धान्तों के द्वारा वैज्ञानिक शैली में जीवन-प्रबन्धन के लिए उपयोगी मार्गदर्शन दिए गए हैं। जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 30 30 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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