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________________ 1.4.2 प्रबन्धन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रबन्धन (Management) को एक नवीन विषय माना जाता है, किन्तु प्रबन्धन का अस्तित्व तो प्राचीनकाल में भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा। वस्तुतः, जब से मानवीय सभ्यता का विकास प्रारम्भ हुआ, तब से ही किसी न किसी रूप में प्रबन्धन का प्रयोग होता रहा। अन्तर इतना है कि प्राचीनकाल में जिसे नीति, मर्यादा, कल्प, व्यवस्था, शासन, अनुशासन कहा जाता था, वर्तमान में वह 'प्रबन्धन-विधा' के रूप में जनप्रचलित और लोकप्रसिद्ध हो रही है। प्राचीन युग में विकास के प्रथम चरण में मनुष्य ने आजीविका, सुरक्षा आदि के लिए परस्पर सहयोग की आवश्यकता महसूस की और सामाजिक व्यवस्था की नींव डाली। उसने व्यक्तिगत और सामूहिक विकास के लिए लक्ष्य निर्धारण, नीति-निर्माण, नियम, कार्यविधि, तकनीक आदि प्रबन्धन-तत्त्वों का उचित प्रयोग भी किया। इस तथ्य की पुष्टि अनेकानेक साक्ष्यों से होती है, जो हमें लगभग पाँच हजार वर्ष पुराने अवशेषों और शिलालेखों के माध्यम से मिलते हैं। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सभ्यता, सिन्धु-घाटी की सभ्यता, सुमेरियन सभ्यता, इजिप्ट के पिरामिड, चीन की सिविल सर्विस, रोम के कैथोलिक चर्च, अशोककालीन चक्र-स्तम्भादि, सिकन्दर की युद्धकला, चन्द्रगुप्त का शासनतन्त्र, राजा सम्प्रति की धार्मिक व्यवस्था, नालन्दा, तक्षशिला आदि के विश्वविद्यालय तथा राजा कुमारपाल की धर्म-प्रभावना आदि इसके प्रमाण हैं। इतना ही नहीं, ऐतिहासिक कथा और पुराण साहित्य में भी भगवान् ऋषभदेव, भरत चक्रवर्ती, राम, श्रीकृष्ण आदि की प्रबन्धन-शैलियों का वर्णन मिलता है। उस समय जहाँ प्रबन्धन के सैद्धान्तिक पक्ष या विचार पक्ष को 'नीति' कहते थे, वहीं प्रायोगिक पक्ष या आचार पक्ष को 'व्यवस्था' या 'अनुशासन' कहते थे। कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल से ही प्रबन्धन की उपयोगिता निर्विवाद रूप से मान्य रही है। आधुनिक युग में 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में पाश्चात्य देशों में इसका विकास पुनः प्रारम्भ हुआ, जिसका श्रेय रॉबर्ट ओवन (1771-1858), चार्ल्स बेवेज (1792-1871), हेनरी वर्नुन पूअर, हेनरी रॉबिन्सन टॉवने (1844-1924), जेम्स वॉट (1796-1848), बाउल्टन (1770-1842), केप्टन हेनरी मेटकेल्फ (1847–1917) आदि को जाता है। 118 लगभग 20वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् प्रबन्धन का एक विज्ञान के रूप में सुव्यवस्थित और विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रारम्भ हुआ, जिसका मुख्य श्रेय सर एफ.डब्ल्यु. टेलर को जाता है। ___ इस प्रकार, किसी भी कार्य के सफल सम्पादन हेतु प्रबन्धन के तत्त्वों का प्रयोग भूतकाल में होता था, वर्तमान में हो रहा है और भविष्य में भी होता रहेगा। अध्याय 1: जीवन-प्रबन्धन का पथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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