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________________ ★ मालिश के लिए तेलादि । ★ उबटन के लिए लेपादि । ★ स्नान के लिए जल । ★ पहनने के लिए वस्त्रादि । ★ विलेपन के लिए चन्दनादि । ★ फूल एवं हार । ★ शरीर -शोभा के लिए आभूषणादि । ★ वायु-शुद्धि के लिए धूपादि । ★ पेय पदार्थ ★ पक्वान्न मिठाई, नमकीन आदि । ★ ओदन - विधिपूर्वक अग्नि पर पकाकर खाए जाने वाले चावल, दलियादि । दाल, सूप आदि तरल खाद्य पदार्थ । ★ सूपदाल ★ घृतादि विकारवर्धक वस्तुएँ। ★ शाक भोजन में खाई जाने वाली सब्जियाँ । ★ माधुरक- मेवा, मधुर फलादि रसीले पदार्थ । ★ भोजन - - 645 - दूध, शरबत, मट्ठा आदि । ★ पीने का पानी । ★ मुखवास - सुपारी, पानादि । ★ वाहन हाथी, घोड़ा, बैलादि ( वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में स्कूटर, मोटर सायकल, ★ उपानह – जूते-चप्पल आदि । ★ शय्यासन - पलंग, पाट, गद्दा, तकिया आदि । ★ सचित्त वस्तु वे खाद्य / पेय पदार्थ, जिनमें जीवन - अस्तित्व अभी विद्यमान है। ★ खाने के द्रव्यों की विविधता । क्षुधा निवारणार्थ खाई जाने वाली रोटी, बाटी आदि । Jain Education International इनमें से ग्यारह पदार्थ शरीर की रक्षा सम्बन्धी एवं पंद्रह पदार्थ शरीर में शक्ति की अभिवृद्धि सम्बन्धी हैं । यह समस्त चर्चा श्रावक के उपभोग - परिभोग व्रत के अन्तर्गत उपासक दशांगसूत्र के प्रथम अध्याय एवं श्रावक प्रतिक्रमण में मिलती है। 112 5) उपभोग - परिभोग परिमाण व्रत का पालन करते हुए पाँच बातों से बचना " ii) बहुध i) त्रसवध सजीवों के वध से बनने वाली वस्तुएँ, जैसे- रेशमी वस्त्र आदि । असंख्य स्थावर जीवों की हिंसा से तैयार होने वाली अथवा त्रसजीव पैदा करके तैयार की जाने वाली वस्तुएँ, जैसे – मदिरा आदि । iii) प्रमाद • आलस्य की अभिवृद्धि करने वाली वस्तुएँ, जैसे अध्याय 11 : भोगोपभोग-प्रबन्धन तामसिक भोजन । — - For Personal & Private Use Only कारादि) — 33 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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