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________________ इस स्तर से ऊँचा उठने के लिए साधक को निम्न प्रयत्न करने चाहिए - 1) कुसंगति के सेवन से यथासम्भव दूर रहना। 2) पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति का अन्धानुकरण नहीं करना। 3) विलासिता के साधनों का पूर्ण त्याग करना अथवा उन्हें मर्यादित करना। 4) घर-कुटुम्ब में भोगों के लिए नहीं, अपितु कर्त्तव्य-निर्वाह हेतु जीना। सम्यग्दृष्टि जीवड़ा, करे कुटुम्ब प्रतिपाल। अन्तरसुं न्यारो रहे, ज्यों धाय खिलावे बाल।। 109 5) सर्कस, पिकनिक, मेला, फिल्म आदि मनोरंजन के साधनों के सेवन का सर्वथा त्याग करना। 6) स्वस्त्री या स्वपुरूष सेवन की मर्यादा करना।110 7) शुभ-भोगों की गुणवत्ता (Quality) में वृद्धि करना। 8) शुद्ध-भोगों (आत्मसुख) की अनुभूति का अधिकाधिक पुनरावर्तन करना। 9) छोटी-छोटी एवं अल्पकालिक मर्यादाओं को यम के माध्यम से ग्रहण करना। 10) बारह व्रतों को ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना। (ग) तृतीय स्तर : मन्दतरभोगी - इस स्तर के साधक का आत्म-नियन्त्रण अधिक विकसित हो जाता है, जिससे वह विषय-भोगों की वासनाओं से ऊपर उठकर भोगोपभोग को संकल्पपूर्वक मर्यादित कर लेता है। मूलतः वह ब्रह्मचर्य-अणुव्रत, उपभोग-परिभोग-परिमाणव्रत, अनर्थदण्ड-विरमणव्रत आदि बारह व्रतों को ग्रहण कर लेता है। इस स्तर पर किए जाने वाले प्रयत्न निम्न हैं - 1) आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की सीमाएँ निर्धारित करना। 2) पापाचार से यथासम्भव निवृत्ति लेना। 3) प्रतिष्ठा एवं विलासिता की वस्तुओं का संकल्पपूर्वक पूर्ण अथवा आंशिक त्याग करना। 4) भोग एवं उपभोग के अमुक पदार्थों की छूट रखकर शेष पदार्थों का त्याग करते हुए उपभोग-परिभोग व्रत को ग्रहण करना। जैनाचार्यों ने अत्यन्त वैज्ञानिक तरीके से भोगोपभोग व्रत की सुविधा हेतु निम्नलिखित छब्बीस प्रकार के पदार्थों का उल्लेख किया है, जिनकी मर्यादा का निर्धारण प्रत्येक व्रती श्रावक को करना चाहिए। 11 मर्यादा का निर्धारण करते समय इनकी मात्रा आदि की अधिकतम सीमा तय करनी चाहिए। ★ शरीरादि पोंछने का तौलिया आदि। ★ दाँत साफ करने के लिए मंजन आदि। ★ नेत्र, केश आदि की सार-संभाल के लिए आँवला, अरीठा आदि फल। जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 644 32 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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