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परनारी के गमन से, धर्मनीति हो नाश।
'साधक' मरने पर उसे, मिलता नरक निवास ।। 105 4) अंतरंग भावों और संस्कारों को विकृत करने वाले उपकरणों का मर्यादित प्रयोग करना, जैसे -
टी.वी., चलचित्र, रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेपरिकार्डर, आइ-पॉट आदि । 5) विलासिता के साधनों की मर्यादा करना, जैसे – कीमती वस्त्र, आभूषण, जूते-चप्पल, वाहन
आदि। 6) बाईस अभक्ष्य पदार्थों के सेवन का पूर्ण त्याग करना। 7) लौकिक त्यौहारों को मर्यादित ढंग से मनाना, जैसे - दीपावली में पटाखे, लाइटिंग एवं
स्टिरियो आदि की मर्यादा करना, होली जलाने एवं खेलने का त्याग करना आदि। 8) नववर्ष , वेलेण्टाइन-डे, लिव इन रिलेशन आदि को असभ्य तरीके से नहीं मनाना। 9) लोक दिखावे के लिए भव्य पार्टियाँ आयोजित करने की मर्यादा करना। 10) शृंगार-प्रसाधनों में से जो पशु-उत्पादों से निर्मित हैं, उनका सर्वथा त्याग करना एवं अन्यों की
मर्यादा करना, जैसे - क्रीम, लोशन, तेल, काजल, मस्करा, नेलपॉलिश, परफ्यूम, इत्र, डीऑड्रेण्ट , पाउडर, लिपस्टिक आदि।
जिसके शृंगारों में मेरा, यह महँगा जीवन धुल जाता।
अत्यन्त अशुचि जड़-काया से, चेतन का है कैसा नाता।। 106 11) शौचालय एवं स्नानघर में पशु-उत्पादों से निर्मित प्रसाधनों का सर्वथा त्याग करना एवं अन्यों
की मर्यादा करना, जैसे - साबुन, शेम्पू, फेस-वॉश, टूथ पाउडर, टूथ पेस्ट, मालिश तेल
आदि। 12) अरिहंत, सिद्ध, साधु एवं केवली प्रणीत धर्म - इन चारों की शरणा लेना। 13) अर्हद्भक्ति, गुरु-सेवा, तत्त्व-अध्ययन आदि शुभ प्रवृत्तियाँ अधिकाधिक करना और उनमें भी
आत्म-रमणता का लक्ष्य रखना। 14) पर्वतिथियों, तीर्थयात्राओं आदि प्रसंगों में ब्रह्मचर्य का पालन करना। 15) आमोद-प्रमोद हेतु देश-विदेश की यात्रा करने की मर्यादा रखना।
16) पापभीरु बनना।107 (ख) द्वितीय स्तर : मन्दभोगी - इस स्तर का साधक अपने दृष्टिकोण को सम्यक् कर लेता है
और भोगों में सुख की कल्पना से मुक्त हो जाता है। श्रीमद्देवचन्द्र ने इस दशा का वर्णन इस प्रकार किया है108 -
आरोपित सुख भ्रम टल्यो रे, भास्यो अव्याबाध । समर्यु अभिलाषी पणुं रे, कर्ता साधन साध्य ।।
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अध्याय 11 : भोगोपभोग-प्रबन्धन
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