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________________ सन्दर्भसूची 26 वही, अ.1, पृ. 6 27 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 16 1 संस्कृतहिन्दीकोश, वामन शिवराम आप्टे, पृ. 96 28 सर्वार्थसिद्धि, 2/10/275 2 मनुष्याणां वृत्तिरर्थः मनुष्यवती भूमिरित्यर्थः 29 तत्त्वार्थसूत्र, रामजीभाईदोशी, पृ. 2 - कौटिलीय अर्थशास्त्र, पृ. 765 30 (क) तत्त्वार्थसूत्र, 2/24 3 अर्थशास्त्र के सिद्धांत, डॉ.रामरतन शर्मा, पृ. 6 (ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 6/1 4 वही, पृ. 10 31 आहारादिविषयाभिलाषः संज्ञेति 5 वही, पृ. 13 - सर्वार्थसिद्धि, 2/24/308 6 वही, पृ. 17 32 अर्थशास्त्र के सिद्धांत, डॉ.रामरतनशर्मा, पृ. 26 7 वही, पृ. 27 33 आवश्यककथा 8 अदृष्टेऽपि वलयादौ श्रुत्वा तदभिप्राय मात्रे... (अभिधानराजेन्द्रकोष, 6/106 से उद्धृत) - दशवैकालिकसूत्र सटीक अ. 1 (अभिधानराजेन्द्रकोष, 34 पुष्पपराग, मुनिश्रीजयानंदविजय, 1083 1/506 से उद्धृत) 35 मुनि गुण स्वाध्याय, श्रीमद्देवचन्द्र, 2/584 9 सूत्राभिधये - उत्तराध्ययनसूत्र सटीक अ. 1 36 तत्त्वार्थसूत्र, 7/1 (वही, 1/506 से उधृत) 37 युवादृष्टि (पत्रिका), अप्रैल, 2010, अर्थ समस्या भी है, 10 ऋ-गतौ अर्यते, गम्यते, ज्ञायते इत्यर्थः समाधान भी, पृ. 5 - विशेषावश्यकभाष्य बृहद्वृत्ति 38 नीतिवाक्यामृत, 2/1 (वही, 1/506 से उद्धृत) 39 यस्याति वित्तं स नरः कुलीनः, सः पण्डितः सः श्रुतवान् गुणज्ञः । 11 द्रव्ये - आवश्यकबृहवृत्ति स एव वक्ता स च दर्शनीयः, सर्वे गुणाः कांचन-माश्रयन्ति ।। (वही, 1/506 से उद्धृत) - नीतिशतक, आ.भर्तृहरि (वीर प्रभु के वचन, रमणलाल ची. 12 इर्यति पर्यायांस्तैर्वाऽर्यत इत्यर्थो द्रव्यं शाह, पृ. 90 से उद्धृत) - सर्वार्थसिद्धि, 1/17. पृ. 82 40 कहीं रुको कभी रुको, आ.रत्नसुंदरसूरि, पृ. 1 13 मणिकणकादौ – कल्पसुबोधिनी टीका (अभिधानराजेन्द्रकोष 41 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 17 ____ 1/506 से उद्धृत) 42 भारतीय दर्शन, डॉ.उमेश मिश्र, 91 14 राजलक्ष्म्यादौ - स्थानांगसूत्र सटीक 43 (क) भारत की सांस्कृतिक विरासत, (वही, 1/506 से उद्धृत) पुखराज जैन, पृ. 30 15 ग्रंथराजश्रीपंचाध्यायी, 143 (ख) महाभारत, 12/8/21 16 स्वर्ग-अपवर्ग-प्राप्ति कारणभूते (ग) वही, 12/8/23 - उत्तराध्ययनसूत्र सटीक (घ) वही, 12/8/14 (अभिधानराजेन्द्रकोष, 1/506 से उद्धृत) 44 पूज्यते यदपूज्योऽपि, यदगम्योऽपि गम्यते। 17 यतः सर्वप्रयोजन सिद्धिः सोऽर्थः वन्द्यते यदवन्द्योऽपि स प्रभावो धनस्य च।। - नीतिवाक्यामृत, 2/10 -पचतंत्र (वीर प्रभु के वचन, रमणलाल ची. शाह, पृ. 91 से 18 तत्त्वार्थसूत्र, 1/34, 35 उद्धृत) 19 प्रवचनसार, गाथा 124 45 दारिद्र्यं खलु पुरुषस्य जीवितं मरणं। दैन्यान्मरणमुत्तमम् । 20 तत्त्वार्थसूत्र, 5/38, 41 - चाणक्यसूत्र, 257, 506 21 डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 187 46 अमरवदर्थजातमर्जयेत् 22 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 24 अर्थवान् सर्वलोकस्य बहुमतः 23 जैन, बौद्ध और गीता, डॉ.सागरमलजैन, 2/91 महेन्द्रमप्यर्थहीनं न बहु मन्यते लोकः । 24 सुखस्य मूलं धर्मः | धर्मस्यमूलमर्थः । अर्थस्य मूलं राज्यं । - वही, 254-256 राज्यमूलमिन्द्रिय जय। 47 विरूपोऽर्थवान् सुरूपः। - चाणक्यसूत्र, 1-4 कुलीनाद्विशिष्टः। 25 अर्थशास्त्र के सिद्धांत, डॉ.रामरतन शर्मा, पृ. 1 - वही, 258, 260 80 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 608 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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