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________________ 48 समकाले स्वयमपि प्रभुत्वस्य प्रयोजनं भवति। 79 ईस-अत्थसत्थ-रहचरियसिक्खाकुसले। - वही. 273 - आयरिउ संघदासगणि वसुदेवहिण्डी, 1/36, (प्राचीन जैन 49 अद्रव्य प्रयत्नो बालुका क्वथनादनन्यः । साहित्य में आर्थिक जीवन, डॉ.कमल जैन, पृ. 9 से उद्धृत) - वही, 320 80 अत्थसत्य कुसले - जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, 3/66, पृ. 117 50 नास्तिधनवतां शुभकर्मसु क्षमः। - वही, 354 81 प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, 51 अर्थमूलौ धर्मकामौ। - वही, 91 डॉ.कमल जैन, पृ.9 52 भारतीय जीवनमूल्य, डॉ.सुरेन्द्र वर्मा, पृ. 55, 56 82 भरतायार्थशास्त्रं च, भरतं च ससंग्रहम् । 53 वही, पृ. 57 ___ अध्यायैरतिविस्तीर्णैः, स्फुटीकृत्य जगौ गुरुः ।। 54 वही, पृ. 82 - आदिपुराण, 16/119 55 श्रीमद्भगवद्गीता, 18/34 83 आणंदे कामदेवे य, गाहावइ चुलणीपिया। 56 वही, 16/10, 12, 15 सुरादेवे चुल्लसयाए, गाहावइ कुंडकोलिए। 57 सुत्तनिपात, 26/29 (डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 188 सद्दालपुत्ते महासयए, नंदिणीपिया सालिही पिया। से उद्धृत) - उपासकदशांगसूत्र, 1/2 58 मज्झिमनिकाय, 1/22/4 (वही, पृ. 189 से उद्धृत) 84 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक परिशीलन, 59 दीघनिकाय, 3/8/4 (वही, पृ. 188 से उद्धृत) ___ सा.डॉ. विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 550 60 वही, 3/8/2 (वही, पृ. 188 से उद्धृत) 85 (क) समराइच्चकहा, हरिभद्रसूरि, 246 61 वही, पृ. 82, 83 (ख) धम्मत्थो कामोविन्होहिइ अत्थासो सेसपि 62 भारतीय जीवनमूल्य, डॉ, सुरेन्द्र वर्मा, पृ. 128 - कुवलयमाला कहा, पृ. 57 63 वही, पृ. 127 (ग) जस्सत्थो तस्स सुहं...जस्स अहिंसा समुदिट्ठा 64 त्रिवर्ग तत्र सापाय, जन्मजातंक दूषितम्। - पउमचरियं, 35/66,67 ज्ञात्वा तत्त्वविदः साक्षाद्यतन्ते मोक्ष साधने।। (घ) अभिसेयदाम – कल्पसूत्र, सूत्र 5 - ज्ञानार्णवः, 3/5 (प्राचीन जैन साहित्य में आर्थिक जीवन, डॉ.कमल जैन, पृ. 9, 65 परमात्मप्रकाश, 2/3 11 से उद्धृत) 66 भगवतीआराधना, 1808 86 न्यायसंपन्न विभवः - योगशास्त्र 1/47 67 पुंसोऽर्थेषु चतुर्पु, निश्चलतरो, मोक्ष परं सत्सुखः। 87 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 17 शेषास्तद्विपरीत धर्म कलिता, हेया मुमुक्षोरतः।। 88 कहीं रुको कभी रुको आ.रत्नसुन्दरसूरि, पृ. 5 - श्रावकधर्मप्रकाश (पद्मनंदीपंचविशिका), 7/25 89 प्रो. बी.एल.जैन से चर्चा के आधार पर 68 डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 188 90 वही 69 दशवैकालिकनियुक्ति, 262-264 91 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 33 70 डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 188 92 वही, पृ. 18 71 प्राकृतसूक्तिसरोज 11/7 (डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, 93 प्रो. बी.एल.जैन से चर्चा के आधार पर पृ. 188 से उद्धृत) 94 वही 72 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 20/8 95 महावीर का अर्थशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 82 73 आवश्यकमलयगिरि (प्रथमखण्ड) (अभिधानराजेन्द्रकोष, 1/511 96 Oragnization & Management, R.D.Agrawal, p. 428 से उधृत) 97 do, p. 427 74 अठ्ठप्पत्ती ववहारो - निशीथचूर्णि, 6397 98 do, p. 447 75 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 5/4, पृ. 148 99 do, p. 427 76 बृहत्कल्पभाष्य, 1/388 100 News, Media, Mumbai, December 16, 2009, 77 निमित्ते, अत्थसत्थे अ - नंदीसूत्र, 50, पृ. 95 Sapna Nair 78 अत्थसत्थ मई विसारए - अंगसुत्ताणि, खं. 3, पृ. 4 101 Oragnization & Management, R.D.Agrawal, p. 444 102 उत्तराध्ययनसूत्र, 9/48 609 अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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