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________________ Jain Education International सारणी 1 अर्थ प्रबन्धक की पंच भूमिकाएँ जीवन-सोपान अंतरंग वर्तमान वर्तमान पुरूषार्थ गुणस्थान अंतरंग-परिग्रह बहिरंग परिग्रह भाव वर्तमान में इच्छाओं इच्छा आवश्यकता दुःख-सुख का प्रकार असीम 4 1 26 22 तीव्रतम अधिकतम धर्म मिथ्यादृष्टि 1 मिथ्यात्व धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, तीव्रतम अत्यधिक दुःख व तीव्र अधिक अर्थ गुणस्थान 4 अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ सुवर्ण, रजत, कुप्य, अशुभ, अतिअल्प भौतिक सुख मन्द अल्प काम 4 अप्रत्याख्यानी क्रोध-मान-माया-लोभ द्विपद, चतुष्पद मन्दतम मन्दतम अल्पतम 4 प्रत्याख्यानी क्रोध-मान-माया-लोभ 4 संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ 6 हास्य-रति-अरति-भय-शोक-जुगुप्सा 3 पुरूषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद ससीम 4 4 21 33 तीव्रतम अधिकतम धर्म अविरत 4 अप्रत्याख्यानी क्रोध-मान-माया-लोभ धन, धान्य, क्षेत्र, वास्तु, तीव्र अधिक दुःख व तीव्र अधिक सम्यग्दृष्टि 4 प्रत्याख्यानी क्रोध-मान-माया-लोभ सुवर्ण, रजत, कुप्य, अशुभ, अल्प सुख मन्द अल्प गुणस्थान 4 संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ द्विपद, चतुष्पद (भौतिक व आत्मिक) मन्दतम अल्पतम मोक्ष 6 हास्य-रति-अरति-भय-शोक-जुगुप्सा 13 पुरूषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, मन्दतम शुभ For Personal & Private Use Only to काम मन्द शुभ, www.jainelibrary.org अध्याय 10 : अर्थ-प्रबन्धन 75
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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