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116 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन,
145 पावं कम्म नेव कुज्जा, न कारवेज्जा सा.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 172
- आचारांगसूत्र, 1/2/6/1 117 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन,
146 कम्मं चिणंति सवसा, तस्सु दयम्मि उ परव्वसा होति। सा.डॉ.विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 600
___ रुक्खं दुरुहइ सवसो, विगलइ स परव्यसो तत्तो।। 118 वही, पृ. 600
- बृहद्भाष्य, 2989 119 आचारांगसूत्र, 1/1/6/4
147 सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति। 120 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन,
दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति।। सा.डॉ.विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 600
- औपपातिकसूत्र, 56 121 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन,
148 जैनधर्म एवं भारतीय धर्मदर्शन (एम.ए.पुस्तक), पृ. 5/17/1 सा.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 181
149 से आयावादी, लोयावादी, कम्मावादी, किरियावादी 122 मित्तिं भूएहिं कप्पए - उत्तराध्ययनसूत्र, 6/2
- आचारांगसूत्र, 1/1/1/5 123 वैरं मज्झं न केणइ - आवश्यकसूत्र, अ. 4, पृ. 91 150 अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। 124 पर्यावरणबोध, सं.डॉ.कल्पनागांगुली, पृ. 215 - 216
अप्पा मित्तममित्तं च, दुष्पट्ठिय सुपट्ठिओ।। 125 असंजमे नियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं
- उत्तराध्ययनसूत्र, 20/37 - उत्तराध्ययनसूत्र, 31/2
151 पुरिसा! तुममेव तुम मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसि? 126 जे अज्झत्थं जाणइ ............ तुल मन्नेसि
पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमोक्खसि । - आचारांगसूत्र, 1/1/7/2
- आचारांगसूत्र, 1/3/3/6-7 127 न य वित्तासए परं - उत्तराध्ययनसूत्र, 2/20
152 जयं चरे, जयं चिट्टे, जय मासे, जयं सए। 128 डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 575
जयं भुजंतो भासंतो, पावं कम्मं न बंधई।। 129 पर्यावरणबोध, सं.डॉ.कल्पनागांगुली, पृ. 111
- दशवैकालिकसूत्र, 4/62 130 परस्परोपग्रहो जीवानाम् - तत्त्वार्थसूत्र, 5/21
153 पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थ 131 भक्तपरिज्ञा, 93
परिणएणं - वही, 4/4 132 दशवैकालिकसूत्र, 1/1-5
154 वही, 6/27 133 सव्वे पाणा, सव्वे भूया .. .. उद्दवेयव्या
155 वही, 6/28 - आचारांगसूत्र, 1/4/2/4
156 पुढवी भित्तिं सिलं लेलु, नेव भिंदे न संलिहे। 134 जह मम ण पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं ।
विविहेण करण जोएण, संजए सुसमाहिए।। न हणइ न हणावेइ अ, सममणइ तेण सो समणो।।
- वही, 8/4 - अनुयोगद्वारसूत्र, 129, पृ. 454
157 जीव-अजीव तत्त्व, कन्हैयालाल लोढ़ा, पृ. 15 135 दशवैकालिकसूत्र, 1/2
158 गोयमा! जहन्नेणं अंगुला संखेज्जविभागं उक्कोसेण वि 136 वही, 1/4
अंगुलासंखेज्जई भागं 137 वही, 1/3
- जीवाजीवाभिगमसूत्र, 1/13 138 वही, 1/2
159 दाणाणं सेट्ठ अभयप्पमाणं 139 वही, 1/5
- सूत्रकृतांगसूत्र, 1/6/23 140 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन,
160 आचारांगसूत्र, 1/1/2/4 सा.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 180
161 दशवैकालिकसूत्र, 8/5 141 आचारांगसूत्र, 1/3/1/5
162 वही, 4/49 142 अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, पृ. 277
163 आचारांगसूत्र, 1/1/2/1 143 एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु 164 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन, णरए - आचारांगसूत्र, 1/1/2/4
सा.डॉ.विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 593 144 घ्नन्ति जन्तून् गतघृणा घोरां, ते यान्ति दुर्गतिम्
165 उपासकदशांगसूत्र, 1/51, पृ. 47 - योगशास्त्र, 2/39
166 मूपिरिग्रहः - तत्त्वार्थसूत्र, 7/12
167 वही, 7/16 487
अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन
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