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________________ - तत्त्वार्थसूत्र, 7/1 91 पद्मपुराण (अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, पृ. 89 से 67 उपासकदशांगसूत्र 1/48, पृ. 44 उद्धृत) 68 Education for the Environmental concerns, A.B. 92 योगवशिष्ठ (वही, पृ. 89 से उद्धृत) Saxena, p. 206 93 दानचन्द्रिका (वही, पृ. 90 से उद्धृत) 69 एग अन्नयरं तसं पाणं हणमाणे अणेगे जीवे हणइ 94 भक्तपरिज्ञा, 91 - भगवतीसूत्र 9/34, पृ. 570 95 प्रशमरति (अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, पृ. 90 से 70 आचारांगसूत्र, 1/4/4/3 उद्धृत) 71 पुरिसा! सच्चमेव समभिजाणाहि 96 पाणवहो चंडो, रुद्दो, खुद्दो, अणारियो, निग्घिणो, निसंसो - वही, 1/3/3/7 ___ महभयो... - प्रश्नव्याकरणसूत्र, 1/1, पृ. 6 72 उत्तराध्ययनसूत्र : दार्शनिक अनुशीलन, 97 न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खो सा.डॉ.विनीतप्रज्ञाश्री, पृ. 591 - वही, 1/3, पृ. 110 73 वही, पृ. 592 98 अहिंसा निउणा दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो 74 बहुपि लटुं न निहे, परिग्गहाओ अप्पाणं अवसक्किज्जा - - दशवैकालिकसूत्र, 6/8 आचारांगसूत्र, 1/2/5/5 99 ज्ञानार्णवः, 8/32 75 अर्थः प्रयोजनम् गृहस्थस्य क्षेत्र वस्तु, वास्तु, धन, धान्य ....... 100 सूत्रकृतांगसूत्र, 1/1/4/10 तद्विपरीतोऽनर्थ दण्ड - उपासकदशांगसत्रटीका. अभयदेवसरि, 101 जाति देश काल-समयावच्छिन्ना 1/43 (उपासकदशांग और उसका श्रावकाचार, सुभाष - योगदर्शन, 2/31 कोठारी, पृ. 143 से उद्धृत) 102 आचारांगसूत्र, 1/4/1/1 76 देशसर्वतोऽणुमहती - तत्त्वार्थसूत्र, 7/2 103 वही, 1/1/7/7 77 जेण सिया तेण णो सिया 104 तं जहा पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, - आचारांगसूत्र, 1/2/4/3 वणस्सइ काइया, तस काइया। 78 मा पच्छ असाधुता भवे, अच्चेही अणुसास अप्पगं - दशवैकालिकसूत्र, 4/3 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/2/3/7 105 डॉ.सागरमलजैन अभिनन्दनग्रन्थ, पृ. 575 79 उत्तराध्ययनसूत्र, 24/15 106 इच्चेयं छज्जीवणियं, सम्मद्दिट्ठी सया जए। 80 पर्यावरणबोध, सं.डॉ.कल्पनागांगुली, पृ. 24-27 दुलह लभित्तु सामण्णं, कम्मणा न विराहेज्जासि ।। 81 Environment Management, Rosy Joshi, p. 1.5 - दशवैकालिकसूत्र, 4/51 82 do, p. I.5 107 अकरिस्सं चऽहं, कारवेसु चऽहं ............. भवंति 83 पर्यावरणशिक्षा, सं. डॉ.आर.ए.शर्मा, पृ. 246-247 - आचारांगसूत्र, 1/1/1/6 84 अप्पणोय परं नालं, कुतो अन्नाण सासिउं 108 एगे आया - समवायांगसूत्र, 1/3 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/1/2/17 109 हथिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे 85 पर्यावरणबोध, सं.डॉ.कल्पनागांगुली, पृ. 27 - व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 7/8 86 न हु पावं हवइ हिय, विसं जहा जीवियत्थिस्स 110 आचारांगसूत्र, 1/3/3/1 - मरणसमाधि, 6/3 111 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, 87 पुरिसा! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमुच्चसि सा.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 169 - आचारांगसूत्र, 1/3/3/7 112 सव्वे पाणा पिआउया, ........कंचणं । 88 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, सा.प्रियदर्शनाश्री, अ. 7, - आचारांगसूत्र, 1/2/3/4 पृ. 168 113 तुमंसि नाम तं ..... ति मन्नसि। 89 सत्यशीलव्रतादीनामहिंसा जननी मता - वही, 1/5/5/5 114 आचारांग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन, - अमोलसुक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, पृ. 91 सा.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 169 . 90 महाभारत, 1/11/13 115 प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा - तत्त्वार्थसूत्र, 7/8 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 486 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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