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________________ - (2) अहिंसा एवं पर्यावरण-प्रबन्धन का सहसम्बन्ध जैनआचारमीमांसा में पर्यावरण-प्रबन्धन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है - अहिंसा। सभी अध्यात्मवादी धर्म-दर्शनों ने 'अहिंसा' को सर्वश्रेष्ठ माना है। प्रायः सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह आदि सद्गुणों का समावेश भी अहिंसा के व्यापक अर्थ में हो जाता है। अहिंसा को विविध विशेषणों से स्वीकारना भी इसकी श्रेष्ठता का मानदण्ड है, जैसे - ★ अहिंसा परमो धर्म:90 महाभारत ★ अहिंसा परमं दानम् पद्मपुराण ★ अहिंसा परमं तपः92 योगवशिष्ट ★ अहिंसा तीर्थम् उच्यते दानचन्द्रिका ★ धम्ममहिंसा समं नत्थि - भक्तपरिज्ञा ★ धर्मस्य मूलं दया प्रशमरति जैनदर्शन में अहिंसा की जो अतिगहन, अतिसूक्ष्म एवं अतिविस्तृत विवेचना हुई है, वह अनुपम, अद्वितीय, अनुत्तर एवं अतुलनीय है। यह विवेचना पर्यावरण-संरक्षण के लिए अत्यन्त उपकारी है, क्योंकि अहिंसा के पथ पर चलकर ही पर्यावरण-प्रबन्धन के लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है। जैनाचार्यों ने हिंसा के सन्दर्भ में स्पष्ट कहा है कि प्राणवध चण्ड है, रौद्र है, क्षुद्र है, अनार्य है, करुणारहित है, क्रूर है और महाभयंकर है। वर्तमान युग में हिंसा के ये सभी रूप हमारे समक्ष हैं, जिनका दुष्परिणाम है – पर्यावरणीय असन्तुलन और अस्थिरता की लगातार हो रही अभिवृद्धि। इतना ही नहीं, जैनाचार्यों ने यह भी कहा है कि हिंसा के कटुफल को भोगे बिना छुटकारा नहीं है। आज हम अनुभव भी कर रहे हैं कि मानवकृत पर्यावरणीय असन्तुलन एवं अस्थिरता मानव के ही अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। संक्षेप में कहें, तो हम स्वयं ही अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। जैनाचार्यों ने इसका समाधान भी दिया है। वह है अहिंसा, जो व्यक्तिविशेष का नहीं, अपितु समस्त प्राणियों का कुशल करने वाली है। 98 पर्यावरणीय प्रलय के भय से पीड़ित प्राणियों के लिए अहिंसा ही सर्वोत्तम औषधि है। ज्ञानार्णव में पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के रूप में अहिंसा को प्रस्तुत करते हुए कहा गया है – 'अहिंसैव जगन्माताऽहिंसैवानन्दपद्धतिः' अर्थात् अहिंसा ही जगत-माता है और अहिंसा ही आनन्द का मार्ग है।99 आशय स्पष्ट है कि अहिंसा ही विश्व के समस्त प्राणियों के लिए शरणभूत है, क्योंकि इससे उनकी अशान्ति और दुःखों का निवारण होता है तथा आनन्द की प्राप्ति होती है। यह अहिंसा ही मानव और उसके पर्यावरण के मध्य उचित सन्तुलन, स्थिरता एवं सामंजस्य की ज्ञापक है। सार रूप में कहा जा सकता है कि हिंसात्मक और अहिंसात्मक जीवनशैली से हम और हमारा पर्यावरण प्रत्यक्ष प्रभावित होता है। जहाँ हिंसात्मक जीवनशैली से पर्यावरण में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ 449 अध्याय 8 : पर्यावरण-प्रबन्धन 25 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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