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________________ 113 दशवेकालिकसूत्र 8/47 114 जैनभारती (पत्रिका), दिसंबर, 2001, क्या कहें? कैसा कहें? कब कहें?, पृ. 46 115 दशवेकालिकनियुक्ति, 200-291 116 जीवन की मुस्कान (द्वितीय महापुष्प), डॉ. प्रियदर्शनाश्री, पृ. 60 117 भाष्यते इति भाषा प्रज्ञापनासूत्र, 11/831, पृ. 48 वही, 11/831, पृ. 48 118 ओहारिणी भाषा 119 वही, पृ. 49 120 वही, पृ. 49 121 वही, पृ. 49 122 वही, पृ. 49 123 वही, पृ. 49 124 वही, पृ. 49 125 वही, पृ. 50 126 वही, पृ. 50 127 दशवैकालिकसूत्र, 7/1 128 प्रज्ञापनासूत्र, 11/866, पृ. 68 129 वही, पृ. 70 130 वही, पृ. 69 131 वही, पृ. 69 132 वही, पृ. 92 133 नो छायए नो विय लूसएज्जा सूत्रकृतांगसूत्र 1/14/19 - 134 दशवैकालिकसूत्र, 7/2 135 वही, 7/12 136 वही, 7/11 137 वही, 7/13 138 वही, मुनिनथमल, 7/4, पृ. 347 139 वही, 7/5 140 वही, 7/6, 7 141 वही, 7/8 142 वही, 7/9 143 वही, 7/14 144 वही, 7/15-20 145 वही, 7/21 146 वही, 7/22-23 147 वही, 7/27 148 वही, 7/34 361 Jain Education International 149 वही, 150 वही, 7/41 151 आर्त्तरौद्रमपध्यानं, पापकर्मोपदेशिता । हिंसोपकारिदानं च प्रमादाचरणं तथा ।। 7/36-37 152 उत्तराध्ययनसूत्र, 1/14 153 दशवैकालिकसूत्र 7/47 154 वही, 7/50 155 वही, 7/55 156 क्रुद्धो ...सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/2 157 लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं - वही, पृ. 192 158 अप्पणो थवण, परेसु निंदा - वही, पृ. 192 159 कोवाकुल चित्तो जं संतमवि भासति तं मोसमेव भवति दशवैकालिकचूर्ण, 7 1 160 दशवैकालिकसूत्र, 4/12 161 वही मुनिनथमल 4/12, पृ. 141 से उदधृत 162 दशवैकालिकचूर्णि, 7 163 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/2 164 वही, 2/2 165 तं सच्चं भगवं 166 योगशास्त्र, 1/42 167 अध्यात्मविद्या, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 129 168 वही, पृ. 133 169 वही, पृ. 133 170 योगशास्त्र, 1/42 171 अध्यात्मविद्या, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 130 172 वही, पृ. 132 173 देखें, कल्पसूत्र, आनन्दसागरसूरिजी पाँचवीं वाँचना 174 उत्तराध्ययनसूत्र, 21/16 175 सज्झायं च तओ कुज्जा, सव्वं भावविभावणं? योगशास्त्र, 3/73 वही, 2/2 वही, 26/37 176 पियमप्पियं सव्यति तितिक्खएज्जा वही, 21/15 177 सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोक्खणे? पृ. 50 180 आचारांगसूत्र, 2/1/3/3/2 अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन वही, 26/10 178 जैनभारती (पत्रिका), दिसंबर, 2001, क्या कहें? कैसा कहें? कब कहें?, पृ. 45 179 वही, अक्टूबर, 2002 मत बोलो अणगमती वाणी, For Personal & Private Use Only 57 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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