SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 60 सूत्रकृतांगसूत्र, 1/9/27 86 सय सयं पसंसंता, गरहंता परं वयं । 61 अध्यात्मविद्या, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 129 ते उ तत्थ विउस्सन्ति, संसारं ते विउस्सिया।। 62 मनुस्मृति, 6/47 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/1/2/23 63 वही, 6/48 87 विभज्जवादं च वियागरेज्जा - वही, 1/14/22 64 अध्यात्मविद्या, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 130 88 अढे परिहायती बहु, अहिगरणं न करेज्ज पंडिए 65 स्थानांगसूत्र, 4/4/596 - वही, 1/2/2/9 66 वही, 4/4/596 89 वयसा वि एगे बुइया कुप्पंति माणवा 67 नो तुच्छए नो य विकथतिज्जा - आचारांगसूत्र, 1/5/4/2 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/14/21 90 वही, 2/15/130, पृ. 416 68 बृहद्कल्पभाष्य, 6092 91 वुच्चमाणो न संजले – सूत्रकृतांगसूत्र 1/9/31 69 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, 92 न य वुग्गाहियं कहं कहिज्जा पृ. 35 - दशवैकालिकसूत्र, 10/10 70 सुभासियाए भासाए, सुकडेण य कम्मुणा। 93 दुज्जणवयण चडक्कं, णिठुर कडुयं सहति सप्पुरिसा पज्जण्णे कालवासी वा, जसं तु अभिगच्छति।। - भावप्राभृत, 105 - ऋषिभाषित, 33/4 94 अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, 39/32 71 वइज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं 95 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, - दशवैकालिकसूत्र, 7/56 पृ. 35, 72 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, 96 स्थानांगसूत्र, 6/102 पृ. 36 97 सूत्रकृतांगसूत्र, 1/14/23 73 भासियव्वं हियं सच्चं - उत्तराध्ययनसूत्र, 9/27 98 जीवन की मुस्कान (द्वितीय महापुष्प), 74 जैन भारती (पत्रिका), अप्रेल, 2003, शब्द : सृजन भी, संहार डॉ.प्रियदर्शनाश्री, पृ. 58 भी, पृ. 46 99 नाइवेल वएज्जा – सूत्रकृतांगसूत्र, 1/14/25 75 वही, दिसंबर, 2002, भाषा और हिंसा, पृ. 26 100 वही, 1/9/25 76 सूत्रकृतांगसूत्र, 1/9/29 101 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, 77 न यावि पन्ने परिहास कुज्जा पृ. 35 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/14/19 102 वही, अक्टूबर, 2002, मत बोलो अणगमती वाणी, 78 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/2 पृ. 50 79 अहऽसेयकरी अन्नेसिं इंखिणी 103 वीरप्रभु के वचन, रमणलाल ची. शाह, 1/13/121 - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/2/2/1 104 उत्तराध्ययनसूत्र, 1/4 80 भगवतीआराधना, 373 105 लघुसिद्धांतकौमुदी, अ. 1 81 न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई। 106 बोलने सुनने की कला, डॉ.शीतला मिश्र, पृ. 38 अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई।। 107 बहुयं मा य आलवे - उत्तराध्ययनसूत्र, 1/10 - उत्तराध्ययनसूत्र, 11/12 108 दशवैकालिकनियुक्ति, 211 82 सूत्रकृतांगसूत्र, 1/9/26 109 चरणपडिवत्तिहेउं धम्मकहा - ओघनियुक्तिभाष्य, 7 83 वीरप्रभु के वचन, रमणलाल ची. शाह, 1/3/38 110 वयणं विण्णाणफलं, जइ तं भणिएऽवि नत्थि किं तेण 84 पिट्ठिमसं न खाइज्जा - दशवैकालिकसूत्र, 8/46 - विशेषावश्यकभाष्य, 1513 85 बहु सुणेहिं कन्नेहि, बहु अच्छीहिं पिच्छइ। 111 वही, 1443 न य दि8 सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ।। 112 जैनभारती (पत्रिका), दिसंबर, 2001, क्या कहें? कैसा कहें? - वही, 8/20 कब कहें?, पृ. 45 56 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 360 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy