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________________ सन्दर्भसूची 1 जैनभाषादर्शन, डॉ.सागरमलजैन, पृ. 1 2 प्रबंधन के सिद्धांत एवं व्यवहार, डॉ. जी. डी. शर्मा, पृ. 424 3 वाणीसम्प्रेषण, डॉ. हंसराज पाल, पृ. 3 4 प्रबंधन के सिद्धांत एवं व्यवहार, डॉ. जी.डी. शर्मा, पृ. 425 5 वही, पृ. 425 6 वही, पृ. 425 7 वही, पृ. 426 8 जैनभाषादर्शन, डॉ.सागरमलजैन. प्र. 1 9 प्रज्ञापनासूत्र, 11/869, पृ. 72 10 तत्त्वार्थसूत्र, रामजी भाई दोशी, 5/24, पृ. 346 11 भाषालक्षणो द्विविधः साक्षरोऽनक्षरश्चेति — सर्वार्थसिद्धि 5/24/572, पृ. 224 12 अध्यात्मविद्या, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 129 13 वाणीसम्प्रेषण, डॉ. हंसराज पाल, पृ. 1 14 वही, पृ. 1 15 जैनभाषादर्शन, डॉ.सागरमलजैन, पृ. 1 16 वही, पृ. 1 17 तत्त्वार्थसूत्र, 5/21 18 वाणीसम्प्रेषण, डॉ. हंसराज पाल, पृ. 1 19 जैनभाषादर्शन, डॉ.सागरमलजैन, पृ. 1 20 बोलने सुनने की कला, डॉ. शीतला मिश्र, पृ. 4 21 जैनभाषादर्शन, डॉ.सागरमलजैन, पृ. 1 22 बोलने सुनने की कला, डॉ. शीतला मिश्र, पृ. 9 23 वही पृ. 5 24 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, पृ. 34 25 वही, पृ. 34 26 बोलने सुनने की कला, डॉ. शीतला मिश्र, पृ. 6 27 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, पृ. 35 28 स्थानांगसूत्र, 4/2/241 29 तत्वार्थसूत्र 6/24 30 स्थानांगसूत्र, 9 / 69 31 वही, 1/91-108 359 Jain Education International 32 जीवन की मुस्कान, (द्वितीय महापुष्प), डॉ प्रियदर्शनाश्री, पृ. 58 33 स्थानांगसूत्र, 6/102 34 दशवैकालिकसूत्र 6/12 35 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 1/2, पृ. 50 36 न कया वि मणेण पावएण्णं पावगं किंचिवि झायव्वं । पावियाए पावगं न किंचिवि वईए भासियव्वं । - दशवैकालिकपूर्णि, 2/1, पृ. 178 37 प्रज्ञापनासूत्र, 11/900, पृ. 93 38 आचारांगसूत्र, 1/6/5/2 39 अन्नं भासइ अन्नं करेई त मुसावाओ निशीथचूर्णी, 3988 40 जीवन की मुस्कान (द्वितीय महापुष्प), डॉ. प्रियदर्शनाश्री, पृ. 58 41 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, पृ. 35 42 वही, पृ. 36 43 श्रीपालचरित्र, पं. काशीनाथ जैन, पृ. 169 44 कल्पसूत्र, आ.आनंदसागरजी म.सा., पृ. 44 45 बोलने सुनने की कला, डॉ. शीतला मिश्र, पृ. 1 46 अणुवियि वियागरे - सूत्रकृतांगसूत्र, 1/9/25 47 अध्यात्मविद्या, आ. महाप्रज्ञ, पृ. 126 48 वही, पृ. 125 49 प्रज्ञापनासूत्र, 11/866, पृ. 69 ततो 50 पुव्विं बुद्धीए पासेत्ता, अचक्खुओ व नेयारं, बुद्धिमन्ने व्यवहारभाष्य, पीठिका, 76 वक्कमुदाहरे । गिरा । । 51 योगशास्त्र, 1/37 52 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, सए पृ. 36 53 वही. पू. 35 54 दशवैकालिकसूत्र 9/3/7 55 आचारांगसूत्र 2/1/1/6/2 56 सूत्रकृतांगसूत्र 1/2/2/1 57 जैनभारती (पत्रिका), अगस्त, 2004, बोलो वचन विचार, अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन पृ. 36 58 मनुस्मृति, 4/138 59 वृन्दसतसई, 100 (हिन्दीसूक्ति- संदर्भकोश, महो चन्द्रप्रभसागर, पू. 174 से उद्धृत) For Personal & Private Use Only 55 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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