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________________ बढ़ाने वाली बातें नहीं करें। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं - 'सज्जन पुरूष, दुर्जनों के निष्ठुर और कठोर वचनों को भी समभावपूर्वक सहन कर लेते हैं। यही कलह रूपी अग्नि को बुझाने का एकमात्र उपाय है। 93 सार रूप में कहा जा सकता है कि व्यक्ति को स्व-पर हितकारी वचनों का ही प्रयोग करना चाहिए। (3) मित वचन जो बोलने की कला नहीं जानता, वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। बोलने की कला का ही एक महत्त्वपूर्ण पहलू है - मित वचन अर्थात् कम बोलना। जो योग्य व्यक्ति होते हैं, वे प्रायः कम, लेकिन समुचित बोलते हैं, जबकि अज्ञ और मूर्खजन अधिक और अर्थहीन बोलते हैं। कहा भी गया है – 'विद्याविहीनाः बहुभाषकाः स्युः। 94 व्यक्ति के पास सुनने के लिए दो कान और बोलने के लिए एक ही जीभ है। इसका संकेत यही है कि सुनो ज्यादा और बोलो कम। वस्तुतः, मुखरता आदमी को छोटा बना देती है। यह उसकी समझदारी की नहीं, अपितु नासमझी की परिचायक है। स्थानांगसूत्र में तो यहाँ तक कहा गया है कि 'मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमन्थू' अर्थात् मुखरता से सत्य का ही विनाश हो जाता है।96 सूत्रकृतांगसूत्र में इसीलिए कहा गया है – 'निरुद्धगं वावि न दीहइज्जा' अर्थात् थोड़े में कही जाने योग्य बात को व्यर्थ ही लम्बी न करें। मित भाषण मानव का महान् गुण है। जब काम की बात कम शब्दों में ही कही जा सकती है, तो बहुमूल्य शब्द-सम्पदा को व्यर्थ की बातों में खोने से क्या फायदा? मेडीकल परीक्षण करने पर यह ज्ञात होता है कि बोलने की क्रिया में शारीरिक ऊर्जा का बड़ी मात्रा में व्यय हो जाता है। आवश्यकता से अधिक बोलने से बौद्धिक ऊर्जा का भी ह्रास होता है। कहा भी गया है - जिस प्रकार घनी पत्तियों वाले पेड़ में फल कम लगते हैं, उसी प्रकार अधिक बकवास करने वाले में बुद्धि का अभाव हो जाता है। अतः सूत्रकृतांग का यह कथन सार्थक सिद्ध होता है कि व्यक्ति को मर्यादा से अधिक नहीं बोलना चाहिए। मितभाषिता एक महान् कला है, क्योंकि अधिक बोलना महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, महत्त्वपूर्ण है - सारगर्भित बोलना। अब्राहम लिंकन का एक प्रसंग प्रसिद्ध है। किसी ने उनसे पूछा – “आप इतना अच्छा भाषण देते हैं, इसके लिए कितनी तैयारी करते हैं?" लिंकन ने कहा – “यह भाषण पर निर्भर है। यदि पंद्रह मिनट बोलना है, तो दो दिन चाहिए और यदि पाँच मिनट बोलना है, तो उसके लिए लम्बी तैयारी चाहिए। यदि दो घण्टे बोलना हो, तो अभी बोल सकता हूँ, उसके लिए कोई तैयारी नहीं चाहिए।” कम बोलने अर्थात् सारभूत और तथ्यपरक बोलने के लिए गहरी विचारणा अपेक्षित है। सूत्रकृतांग में इसीलिए सारगर्भित निर्देश दिया गया है100 - 'अणुवियि वियागरे' अर्थात् जो कुछ जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 328 24 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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