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बोलें, पहले विचारें, फिर बोलें (Think before you speak)। वस्तुतः, सारभूत बात को संक्षेप में कहने के लिए सारे कचरे हटाकर हीरा चुनना होता है। 101
मितभाषी होने से व्यक्ति उचित समय पर उचित कार्य का निष्पादन कर सकता है, किन्तु जो व्यक्ति बहुत बातूनी होते हैं, वे हर समय, हर जगह और हर प्रसंग में भाषा के पुद्गलों को बिखेरते ही रहते हैं। सार्थक-निरर्थक का उन्हें भान तक नहीं रहता और इससे उनका कोई भी कार्य समयानुसार सम्पादित नहीं हो पाता। आचार्य तुलसी ने संस्कार बोध में कहा भी है 102
व्यर्थ बात में क्यों कभी, करें समय बातेरी की बिगड़ती, रखें सूत्र यह वाचाल व्यक्ति प्रारम्भ में अच्छे संगी-साथी एकत्र तो कर लेता है और जहाँ-तहाँ खूब प्रशंसा भी प्राप्त कर लेता है, लेकिन समय के साथ-साथ उसके संगी-साथी उसे समझ जाते हैं, तब वे जरुरत और स्वार्थ की पूर्ति हेतु उसके साथ रहते हैं और फिर दूर चले जाते हैं। वाचाल व्यक्तियों की समाज में दशा का व्यंग्यात्मक चित्रण करते हुए एक चीनी लेखक चुआंगत्से ने कहा है कि "A dog is not considered a good dog, because he is a good barker" अर्थात् एक कुत्ते को इसीलिए अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि वह बहुत अच्छा भौंकता है। 103 कभी-कभी तो व्यक्ति को अपनी वाचालता स्वयं पर ही भारी पड़ती है। उत्तराध्ययन में वाचालता के दयनीय परिणाम के लिए स्पष्ट कहा है "जिस प्रकार सड़े हुए कानों वाली कुतिया जहाँ भी जाती है, दुत्कार दी जाती है, उसी प्रकार शीलरहित, शरारती और वाचाल व्यक्ति भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है ।" "
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जैनागमों की भाषा सरल - सरस होते हुए भी परिमित है। इनमें अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता। यह जैनाचार्यों के मितभाषी गुण का उत्कृष्ट प्रतिमान है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में सूत्रबद्ध रचनाओं की परम्परा रही है। सूत्र का लक्षण बताते हुए आचार्यों ने कहा है 105
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बरबाद ।
याद ।।
अर्थात् जो कम से कम अक्षर वाले हों, स्पष्ट हों, सारभूत हों, सार्वभौमिक सत्य हों, निर्विवाद हों और अनिन्दनीय हों, उन्हें ही ज्ञानी 'सूत्र' कहते हैं। संस्कृत वैयाकरणों के लिए प्रसिद्ध है कि वे अपनी रचनाओं में से एक भी अनावश्यक अक्षर को निकालने सफल होते, तो पुत्रजन्मोत्सव जैसे आनन्दित होते थे। आज भी इसी शैली की आवश्यकता है, किन्तु इसके लिए हमें फालतू शब्दों के प्रयोगों से बचना होगा। इस हेतु आगे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं 106
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अल्पाक्षरमसन्दिग्धं, सारवत् विश्वतोमुखम् ।
अस्तोभ - मनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः । ।
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अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन
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