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________________ 6.3 भाषिक (वाचिक) अभिव्यक्ति का विशिष्ट महत्त्व ___ यहाँ पर यह कहना युक्तिसंगत होगा कि आज आत्माभिव्यक्ति के लिए मनुष्य के पास अनेकानेक साधन उपलब्ध हैं, फिर भी वाचिक-अभिव्यक्ति का महत्त्व विशिष्ट है। ध्वनि-संकेतों का सर्वाधिक विकसित रूप है – बोलियाँ एवं भाषाएँ। उदाहरणार्थ, संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, रुसी आदि भाषाएँ हैं, जबकि मालवी, छत्तीसगढ़ी, बुंदेलखण्डी, मारवाड़ी आदि बोलियाँ हैं। यद्यपि भाषा का अस्तित्व कब से है, इसका कोई स्पष्ट उत्तर तो नहीं मिलता, फिर भी इतना अवश्य है कि भाषा और बोली का विकास मानव की अतिविशिष्ट उपलब्धि है। भाषा और बोली का विकास होने से मनुष्य जितनी स्वाभाविकता, स्पष्टता एवं सहजता से अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है, उतनी दसरे प्राणी नहीं कर पाते। उदाहरणस्वरूप. अन्य अनक्षरात्मक ध्वनि-संकेतों अथवा शारीरिक संकेतों से किसी वस्तु की स्वादानुभूति उतनी स्पष्टता से व्यक्त नहीं की जा सकती, जितनी शब्दप्रधान भाषा के माध्यम से। अतः आचार्य दण्डी का यह कथन सार्थक है कि यदि वाणी रूपी प्रकाश संसार को प्रकाशित नहीं करता, तो तीनों लोक अंधकार में ही डूबे रहते।20 यह शब्दप्रधान भाषा ही है, जिसे ऑडियो उपकरणों, जैसे - कैसेट, सी.डी., हार्ड डिस्क, पेन ड्राइव आदि में संगृहीत करके प्रसंगानुसार प्रसारित किया जा सकता है। लिपि का आविष्कार होने से इन भाषायी अभिव्यक्तियों को लेखनीबद्ध करके सुरक्षित भी रखा जा सकता है, जो अभिव्यक्तियों के अन्य माध्यमों में सम्भव नहीं है। ज्ञातव्य है कि भगवान ऋषभदेवजी ने लिपि-व्यवस्था का आविष करके अभिव्यक्ति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मूलतः मनुष्य ने नियत व्यक्तियों, वस्तुओं, सूचनाओं, तथ्यों, घटनाओं, भावनाओं एवं अनुभूतियों के लिए नियत शब्द-प्रतीक अर्थात् नाम निर्धारित किए हैं। उदाहरणस्वरूप, ‘पलंग' शब्द वस्तुविशेष का, ‘करुणा' शब्द भावनाविशेष का, “मीठा' शब्द स्वादविशेष का और “दिल्ली' शब्द स्थानविशेष का | है। इन्हीं शब्द-प्रतीकों को व्याकरण के आधार पर संज्ञा. सर्वनाम क्रिया. विशेषण. क्रियाविशेषण आदि अंगों (Parts of Speech) में विभक्त किया गया है। इन्हीं शब्द-प्रतीकों की नियमबद्ध व्यवस्था को भाषा (Language) कहा जाता है, जो श्रोता को वक्ता के द्वारा संप्रेषणीय भावों का ज्ञान कराती है। यद्यपि शब्दों के माध्यम से की जाने वाली यह भाषिक-अभिव्यक्ति सिर्फ सांकेतिक (Symbolic) ही होती है, फिर भी अभिव्यक्ति का इससे अधिक सुस्पष्ट, सहज, स्वाभाविक, सशक्त और सुव्यवस्थित अन्य कोई माध्यम न तो अब तक खोजा जा सका है और न खोजे जाने की कोई सम्भावना प्रतीत होती है। कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि भाषिक-अभिव्यक्ति सभी अभिव्यक्तियों का प्राण है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण है। यह हमारी संस्कृति और सभ्यता की स्पष्ट परिचायक है। यूरिया 311 अध्याय 6: अभिव्यक्ति प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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