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लुधोविक ने तो यहाँ तक कह दिया कि 'वाचिक-विकास और मानसिक-विकास एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा वाणी की औपचारिक शिक्षा (Formal Education) व्यक्ति की मानसिक क्षमताओं का असाधारण विकास करती है। 29 वस्तुतः भाव और भाषा का, विचार और वाणी का एवं संकल्प और शब्द का अत्यधिक गहन सम्बन्ध है।
वाणी प्राचीनकाल से ही मनुष्य की अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन रही है। यह वह माध्यम है, जिससे कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों एवं समाज से सम्पर्क एवं घनिष्ठता स्थापित करने में सफल हो पाता है। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में, 'वाणी तो संयोजक शक्ति है। वह तो अन्दर की दुनिया और बाहर की दुनिया को, आत्मज्ञान एवं विज्ञान को जोड़ने वाली कड़ी है। इसके अतिरिक्त भाषा का अपना एक लचीलापन भी होता है, क्योंकि इसमें एक ही भाव को अभिव्यक्त करने के लिए कई पर्यायवाची शब्दों का उपयोग करने की सुविधा होती है। इन शब्दों में अर्थ की दृष्टि से आंशिक समानता होने के साथ-साथ आंशिक भिन्नता भी होती है, जिससे भावाभिव्यक्ति को और अधिक सटीक, स्पष्ट एवं सुगम बनाया जा सकता है। यह भी भाषिक-अभिव्यक्ति का अपना वैशिष्ट्य है।
इस प्रकार, भाषिक-अभिव्यक्ति मनुष्य की आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उन्नति का मूल है। इसके विशिष्ट महत्त्व को ध्यान में रखते हुए ही जैनआचारशास्त्रो में संयमित वचन-व्यवहार के लिए अनेक निर्देश दिए गए हैं, जिनका पालन करके व्यक्ति अपने व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवन का उत्थान कर सकता है। इसकी विस्तृत चर्चा आगे की जाएगी।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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